बुंदेलखंड में क‍िसानों के ल‍िए वरदान बनी बेर और इमली की खेती, कम लागत में ज्यादा मुनाफा

बुंदेलखंड में क‍िसानों के ल‍िए वरदान बनी बेर और इमली की खेती, कम लागत में ज्यादा मुनाफा

वैसे तो देसी बेर का बुंदेलखंड से पुराना नाता है, लेकिन छोटे किसानों की आय को बढ़ाने के लिए, अब उद्यान विभाग ने हाइब्रिड किस्म के 'एप्पल बेर' की खेती से किसानों को जोड़ने की पहल की है. विभाग का दावा है कि बहुत कम पानी और मामूली देखभाल करके कम लागत में होने वाली बेर की खेती, बुंदेलखंड के छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है.

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बुंदेलखंड में क‍िसानों के ल‍िए वरदान बनी बेर और इमली की खेती, कम लागत में ज्यादा मुनाफाएप्पल बेर की खेती को बुंदेलखंड में दिया जा रहा है बढ़ावा

जलवायु परिवर्तन की चुनौती को देखते हुए यूपी में उद्यान विभाग ने मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के मुताबिक बागवानी फसलों के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की मुहिम तेज की है. इसके तहत बुंदेलखंड में बेर, इमली और कैंथ को किसानों की आय का जरिया बढ़ाने का जरिया बनाने का माध्यम बनाया है. उद्यान विभाग के चित्रकूट एवं  झांसी मंडल के उप निदेशक विनय कुमार ने 'किसान तक' को इस परियोजना के बारे में बताया. उन्होंने बताया क‍ि किस तरह हाइब्रिड किस्म के एप्पल बेर की खेती छोटे किसानों की आय बढ़ाने का जरिया बन सकती है.

उनका कहना है कि इस मुहिम में बेर के साथ इमली और कैंथ के औषधीय एवं दैनिक उपभोग में इस्तेमाल को देखते हुए इन फलों को फिर से खेतों की मेड़ और अन्य खाली जगहों पर जगह दिलाने की बात की जा रही है. कुल म‍िलाकर बुंदेलखंड के क‍िसानों के ल‍िए इमली और बेर की खेती फायदे का सौदा बन रही है, ज‍िसमें कम लागत में ज्यादा मुनाफे के रास्ते खुल रहे हैं.  

बुंदेलखंड में बेर का व्यावसायिक उत्पादन 

उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड में वैसे तो बेर, इमली और कैंथ जैसे देसी फलों की उपज कुदरती रूप से खूब होती है, लेकिन ये ग्रामीण इलाकों में घरेलू इस्तेमाल तक ही सीमित रहते हैं. कुमार ने बताया कि बुंदेलखंड की जलवायु, मिट्टी और पानी की उपलब्धता को देखते हुए विभाग ने दो साल पहले यहां हाइब्रिड किस्म के एप्पल बेर के व्यावसायिक उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया है. इसी तर्ज पर इमली और कैंथ की भी हाइब्रिड प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

बेर की उपज भरपूर, दाम भी बढ़‍िया

उन्होंने बताया कि एप्पल बेर की दो किस्में बुंदेलखंड में प्रोत्साहित की जा रही हैं. इनमें टमाटर जैसे आकार का कश्मीरी एप्पल बेर जो सेव की तरह लाल रंग का होता है. दूसरा हरे रंग का एप्पल बेर जो आकार और मिठास में लाल एप्पल बेर की ही तरह होता है.

कुमार ने बताया कि बुंदेलखंड में किसानों काे एप्पल बेर की व्यावसायिक खेती कराने के लिए विभाग द्वारा पौध वितरण से लेकर प्रश‍िक्षण तक पूरी मदद की जाती है. इसमें 1 हेक्टेयर जमीन में 3 मीटर के फासले पर लगभग 1111 पौधे लगाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि एक साल के भीतर ही इनमें प्रति पेड़ 15 किग्रा तक फल आने लगते हैं. दूसरे साल में एक पेड़ से 70 - 80 किग्रा तक और तीसरे साल में फल की मात्रा बढ़ कर 1 कुंतल तक हो जाती है. 

लागत कम मुनाफा ज्यादा   

कुमार ने बताया कि इस साल बाजार में एप्पल बेर की किसानों को 30 से 35 रुपये प्रति किग्रा तक कीमत मिली. इस लिहाज से अगर देखा जाए तो 1 हेक्टेयर में एप्पल बेर लगाने वाले किसान को 3 साल के भीतर सालाना 10 लाख रुपये तक की आय हो सकती है.

उन्होंने कहा कि इस फसल को किसान, खासकर छोटे किसान बेहद कम लागत पर लगा सकते हैं. सरकार की ओर से किसानों को एप्पल बेर की पौध पर अनुदान दिया जाता है. पौध लगाने के बाद इसमें सामान्य देखभाल करके ही एप्पल बेर का बाग तैयार किया जा सकता है. 

इमली की खेती में भी छुपा है किसानों की आय में इजाफे का सूत्र
इमली की खेती भी लुभा रही हैै बुंदेलखंड के किसानों को

खाड़ी देशों में भी है मांग 

उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड में किसानों के पास बेकार पड़ी अनुपजाऊ जमीनों की बहुतायत है. इस तरह की जमीन पर किसान एप्पल बेर लगा कर इसे अपनी अतिरिक्त आय का जरिया बना सकते हैं. इसके अलावा खेतों की मेड़ और  खलिहानों में भी खाली पड़ी जमीन पर इन्हें लगाया जा सकता है.

कुमार ने कहा कि अभी एप्पल बेर की सबसे ज्यादा आपूर्ति महाराष्ट्र से होती है. अगर बुंदेलखंड में इसकी उपज के लिए अनुकूल परिस्थ‍ितियों का लाभ उठाकर इसे किसान अपनाएं ताे किसान न केवल अपने देश की मांग को पूरा कर सकते हैं बल्क‍ि खाड़ी देशों सहित अन्य देशों से होने वाली मांग की आपूर्ति भी कर सकेंगे.

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