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PMFBY: फसल बीमा योजना में अप्लाई कंडीशन से यूं ही नहीं परेशान हैं क‍िसान

PMFBY: फसल बीमा योजना में अप्लाई कंडीशन से यूं ही नहीं परेशान हैं क‍िसान

फसल बीमा योजना की शुरुआत अच्छी मंशा के साथ की गई थी, लेक‍िन, नौकरशाहों और बीमा कंपन‍ियों ने ऐसी शर्तें लागू कर दी हैं क‍ि उससे क‍िसान परेशान है और बीमा कंपनियां मालामाल. क्या 33 फीसदी से कम नुकसान को नुकसान नहीं माना जाना चाह‍िए? और जब सर्वेयर के पास नुकसान नापने की कोई मशीन नहीं होती तो वो कैसे तय देता है नुकसान का प्रत‍िशत? 

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क‍िसानों को कैसे म‍िलेगा फसल बीमा का लाभ? क‍िसानों को कैसे म‍िलेगा फसल बीमा का लाभ?

बेमौसम बार‍िश, आंधी और ओलावृष्ट‍ि से बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान (Crop Loss) हुआ है. इसके बाद राज्य सरकारों ने यह कहते हुए मुआवजे का एलान कर द‍िया है क‍ि क‍िसानों को च‍िंता करने की कोई जरूरत नहीं है. लेक‍िन, क्या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana) या फ‍िर राज्यों की ओर से गैर बीम‍ित क‍िसानों के ल‍िए घोष‍ित मुआवजा पाना आसान है? दरअसल, दोनों की शर्तें ऐसी हैं क‍ि क‍िसानों को आसानी से मुआवजा नहीं म‍िलता. नुकसान को इतना कम करके दिखाया जाता है कि या तो किसान को मुआवजा मिलता ही नहीं, या फिर मिलता भी है तो रकम ना के बराबर होती है. प‍िछले छह साल में बीमा कंपन‍ियों ने करीब 40 हजार करोड़ रुपये की कमाई यूं ही नहीं की है. 

फसल बीमा योजना शुरू करने की मंशा बहुत अच्छी है. लेक‍िन नौकरशाहों और बीमा कंपन‍ियों ने म‍िलकर ऐसी शर्तें तैयार की हैं क‍ि उसमें क‍िसान परेशान रहता है और बीमा कंपन‍ियां मालामाल. इस योजना में समय-समय पर सरकार ने कई बदलाव क‍िए हैं. लेक‍िन, ज‍िन दो बदलावों की सबसे ज्यादा मांग उठती है उन पर कोई व‍िचार नहीं क‍िया गया. कोई भी क‍िसान फसल बीमा का प्रीम‍ियम इंड‍िव‍िजुअल देता है. लेक‍िन, जब प्राकृत‍िक आपदा आने के बाद क्लेम लेने की बारी आती है तब उसके ल‍िए पंचायत को यून‍िट मानकर उसमें नुकसान का सर्वे क‍िया जाता है और उसके आधार पर ही क्लेम म‍िलता है. इस कंडीशन से क‍िसान बहुत परेशान हैं.  

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क‍िसानों को कैसे म‍िलेगी राहत 

क‍िसान शक्त‍ि संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि हर खेत में नुकसान का सर्वे अलग-अलग होना चाह‍िए. जब क‍िसान ने अपने खेत में बोई गई फसल का प्रीम‍ियम द‍िया है तो नुकसान होने पर पूरे गांव या पंचायत को यून‍िट मानने का क्या तुक है. आमतौर पर सर्वेयर पूरे पंचायत के उस खेत से नुकसान का सैंपल लेते हैं जहां पर सबसे कम नुकसान द‍िखता है. अगर हर खेत के नुकसान का सर्वे नहीं हो सकता है तो वहां से सैंपल ल‍िया जाना चाह‍िए जहां पर सबसे ज्यादा नुकसान हुआ हो. तब जाकर क‍िसानों को इस योजना का सही मायने में फायदा म‍िलेगा. 

नुकसान के प्रत‍िशत पर बड़ा सवाल

इस योजना में सुधार करके इसे क‍िसानों के फेवर में बनाए जाने की सख्त जरूरत है, खासतौर पर क‍िसानों की परेशानी और बीमा कंपन‍ियों की कमाई को देखते हुए. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय चाहे तो शर्तें बदल सकता है. इस योजना में दूसरी सबसे बड़ी परेशानी 33 फीसदी नुकसान होने की शर्त है. यानी 32.5 फीसदी नुकसान पर मुआवजा नहीं म‍िलेगा, लेक‍िन 33.5 फीसदी नुकसान होने पर मुआवजा म‍िल जाएगा. इसकी शर्त को हटाया जाना चाह‍िए. क्योंक‍ि नुकसान तो नुकसान है चाहे वो 10 फीसदी हो या 50 फीसदी. नुकसान के ह‍िसाब से मुआवजा म‍िलना चाह‍िए. 

क्या नुकसान नापने का कोई मीटर है?

क‍िसी खेत में फसल का नुकसान हो गया तो पटवारी अनुमान लगाता है क‍ि क‍ितने फीसदी नुकसान हुआ. पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि पहले तो पटवारी फसल का व‍िशेषज्ञ नहीं होता क‍ि वो बता पाए क‍ि नुकसान क‍ितना हुआ. पटवारी तो यह बता सकता है क‍ि क‍िस खेत का क्या नंबर है और उसका एर‍िया क्या है. इसल‍िए सर्वे के समय पटवारी के साथ कृष‍ि व‍िभाग के अध‍िकारी भी हों, तब सही मायने में नुकसान का सही आकलन हो पाएगा. 

दूसरी बात यह है क‍ि क्या सर्वेयर के पास नुकसान नापने की कोई मशीन होती है? पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि मुझे नहीं लगता क‍ि ऐसी कोई मशीन बनी है. बस आकलन करके बताया जाता है क‍ि नुकसान क‍ितना हुआ. अब यह सोचने वाली बात है क‍ि कोई आदमी क‍िसी खेत को देखकर कैसे बता सकता है क‍ि उसमें नुकसान 32.5 फीसदी हुआ या 33.5 फीसदी. जब पटवारी अनुमान ही लगाएगा और इसका कोई वैज्ञान‍िक आधार नहीं है तो करप्शन के भी चांस बढ़ जाते हैं. इसल‍िए सर्वे और नुकसान के आकलन की व्यवस्था में बड़ा सुधार होना चाह‍िए.  

प्रीम‍ियम काटने की भी मनमानी

पहले फसल बीमा योजना स्वैच्छ‍िक नहीं थी. क‍िसान क्रेड‍िट कार्ड (KCC) बनवाने वाले क‍िसानों के बैंक अकाउंट से ऑटोम‍ेट‍िक प्री‍म‍ियम काट ल‍िया जाता था. चाहे क‍िसान बीमा करवाना चाहता हो या नहीं. उसकी कोई मर्जी नहीं चलती थी. जबक‍ि कंपन‍ियां यह मनमानी कर रही थीं. क‍िसान संगठनों की मांग पर इसे सभी किसानों के लिए स्‍वैच्‍छिक बना दिया गया है. 

लेक‍िन, अध‍िकार‍ियों ने यहां भी कंपन‍ियों की सहूल‍ियत वाली कंडीशन लागू कर दी. नई व्यवस्था में केसीसी लेने वाले क‍िसान को अपने बैंक मैनेजर को एक पत्र ल‍िखकर रबी और खरीफ दोनों सीजन में बताना होगा क‍ि उसे बीमा नहीं चाह‍िए. तब जाकर उसके अकाउंट से पैसा नहीं कटेगा. वो अगर पत्र ल‍िखना भूल गया तो न चाहते हुए भी पैसा काट ल‍िया जाएगा. 

हालांक‍ि, प्रीमियम को लेकर किसानों के अंशदान में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. क‍िसानों को खरीफ फसलों पर 2 फीसदी, रबी फसलों पर 1.5 और बागवानी नकदी फसलों पर अधिकतम 5 फीसदी प्रीमियम देना होता है. इन सब शर्तों के बीच क‍िसानों के सामने एक बड़ा सवाल यह है क‍ि वो आख‍िर करे क्या? फसल बीमा न करवाए तो द‍िक्कत और करवाए तो शर्तों का दुष्चक्र. 

बीमा कंपन‍ियों के फायदे का ह‍िसाब-क‍िताब.
बीमा कंपन‍ियों के फायदे का ह‍िसाब-क‍िताब.

यूं ही नहीं फायदे में हैं बीमा कंपन‍ियां

ब्लॉक स्तर पर फसल बीमा कंपन‍ियों के कार्यालय बनाने की लंबे समय से मांग हो रही है. लेक‍िन क‍िसी कंपनी का कोई एक प्रत‍िन‍िध‍ि तक नहीं होता. ज‍िलों में भी कंपन‍ियों का कोई अध‍िकारी नहीं होता. न तो उनके कार्यालय हैं. क‍िसान अपनी समस्या आख‍िर क‍िसे बताएं. फसल नुकसान का सर्वे राजस्व व‍िभाग के कर्मचारी करते हैं, ज‍िनकी सैलरी आम लोगों के टैक्स से सरकार देती है. जबक‍ि वो काम बीमा कंपनी का कर रहे होते हैं. देश में 742 ज‍िले हैं. अगर सरकार हर ज‍िले में फसल बीमा कंपन‍ियों के कार्यालय खुलवा दे तो लोगों को रोजगार भी म‍िलेगा और क‍िसानों को सहूल‍ियत भी. 

क‍ितनी तेजी से बढ़ रहा फसल बीमा कारोबार

प‍िछले छह साल में बीमा कंपन‍ियों ने 40112 करोड़ रुपये की कमाई की है. यानी हर साल 6685 करोड़ रुपये के आसपास. इतनी मोटी कमाई यूं ही नहीं हुई है. कंपन‍ियों का खर्चा न के बराबर है और लाभ भरपूर म‍िल रहा है. फसल बीमा का कारोबार क‍ितनी तेजी से बढ़ रहा है इसे आप एक आंकड़े से समझ सकते हैं. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के मुताब‍िक 2015-16 के दौरान बीमा सेक्टर में फसल बीमा की ह‍िस्सेदारी महज 6 फीसदी थी, जो 2021-22 में बढ़कर 14 फीसदी हो गई है. 

क‍िसानों को क‍ितना क्लेम म‍िला

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 से 2021-22 तक बीमा कंपनियों को कुल 170127.6 करोड़ रुपये का प्रीमियम मिला है. इसके बदले किसानों को 130015.2 करोड़ रुपये का क्लेम मिला. ऐसे में फायदे में कौन है? केंद्र, राज्य और किसानों ने मिलकर बीमा कंपन‍ियों को छह साल में जितना प्रीमियम द‍िया है उतने में सरकारें खुद मुआवजा बांट सकती थीं. क‍िसानों को प्रीम‍ियम भी नहीं देना होता और उसके बाद 15000 करोड़ रुपये सरकार के खजाने में बच भी जाते.

क्या बदलाव कर रही है सरकार 

पीएम फसल बीमा योजना में बदलाव की प्रक्रिया अब भी जारी है. ज‍िसका ज‍िक्र करना बहुत जरूरी है. अब तक इस योजना के ल‍िए कोई एक हेल्पलाइन नंबर नहीं है. देश में फसल बीमा करने वाली 18 कंपन‍ियां हैं, यानी 18 हेल्पलाइन होती हैं. ज‍िस क्षेत्र में जो कंपनी काम करती है वहां पर उसी की हेल्पलाइन पर फोन करके 72 घंटे में फसल नुकसान की जानकारी देनी होती है वरना मुआवजा नहीं म‍िलता.

लेक‍िन, अब केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय इसकी एक हेल्पलाइन बनाने के काम में जुटा है. इसकी टेस्ट‍िंग पूरी हो गई है. इसी तरह हर ब्लॉक में ऑटोमेट‍िक वेदर स्टेशन (AWS) और हर इंश्योरेंस यूनिट यानी हर ग्राम पंचायत स्तर पर ऑटोमेट‍िक रेन गेज (ARG) लगाए जाने की शुरुआत की गई है. ताक‍ि बार‍िश का सही डाटा म‍िले और उससे नुकसान का अंदाजा लगाना आसान हो. 

हालांक‍ि, इन सबके मुकाबले क‍िसानों के ल‍िए ज्यादा फायदे वाला बदलाव कम से कम 33 फीसदी नुकसान वाली शर्त हटाने और हर खेत में फसल क्षत‍ि का अलग-अलग सर्वे करने से होगा. देखना ये है क‍ि क‍िसानों की यह मांग सरकार कब पूरा करती है.     

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