पीएम किसान योजना में मूल शर्त है खेती (Photo-Kisan Tak). प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम (PM-Kisan Scheme) की 14वीं किस्त का पैसा ट्रांसफर हो गया है. इसके साथ ही करीब 2.6 लाख करोड़ रुपये इस योजना पर खर्च हो गए हैं. लेकिन अब तक इसका फायदा भूमिहीन, बटाईदार और पट्टेदार किसानों को नहीं मिला है. जबकि ऐसे किसान असल में खेती करते हैं और उनकी जीविका उसी से चलती है. खेती के लिए उनका संघर्ष जमीन वाले किसानों से कहीं अधिक है. राष्ट्रीय किसान नीति-2007 में कृषि श्रमिकों, बटाईदारों और पट्टेदारों को भी किसान माना गया है. इसलिए बटाईदार और किरायेदार किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड और पीएम फसल बीमा योजना का लाभ तो मिलता है, लेकिन, पीएम किसान योजना का पैसा नहीं मिलता. इसलिए यह मुद्दा संसद तक में कई बार उठ चुका है. लेकिन सरकार ने इसे लेकर अब तक कोई पहल नहीं की है, इसलिए भूमिहीन किसान सालाना 6000 रुपये की मदद पाने से अब तक वंचित हैं.
राजस्थान के दौसा से बीजेपी सांसद जसकौर मीणा संसद में भूमिहीन किसानों को पीएम किसान स्कीम का लाभ न दिए जाने का कारण पूछ चुकी हैं. तेलंगाना से कांग्रेस सांसद उत्तम कुमार रेड्डी भी इस बारे में सवाल उठा चुके हैं. ओडिशा की कालिया स्कीम और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर ‘रायथू भरोसा’ स्कीम के तहत भूमिहीन किसानों की भी पहचान कर उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है. हालांकि, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि इसका लाभ लेने के लिए कृषि योग्य भूमि का स्वामित्व मूलभूत मानदंड है.
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खेती-किसानी को आगे बढ़ाने में भूमिहीन किसानों का संघर्ष जमीन वाले किसानों के मुकाबले कहीं बहुत अधिक है. क्योंकि उन्हें जमीन का किराया भी देना है. इसके बावजूद वो इस योजना से वंचित हैं. दूसरी तरफ केंद्र सरकार उन सभी किसान परिवारों को पीएम किसान स्कीम का पैसा देती है जिनके नाम कृषि योग्य जमीन है, भले ही वो उस पर खेती न भी कर रहे हों.
जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा कहते हैं कि पीएम किसान योजना और सब्सिडी आदि की सबसे ज्यादा जरूरत भूमिहीन किसानों को है. क्योंकि, जमीन का किराया देने की वजह से उनकी खेती महंगी पड़ती है. जमीन न होने के बावजूद ऐसे किसान कृषि व्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं. उधर, ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव विजू कृष्णन ने कहा है कि जो भी बटाईदार और भूमिहीन किसान हैं उनका सर्वे करवाकर सरकार उन्हें सभी कृषि योजनाओं का लाभ दे या फिर योजना की शर्तों में ब दलाव करे.
बहरहाल, सवाल ये है कि आखिर ऐसे कितने किसान हैं जो जमीन के अभाव में बटाई पर या रेंट पर खेत लेकर खेती करते हैं. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा कृषि परिवारों की जमीन और पशुधन संख्या की स्थिति पर 2019 में करवाए गए एक सर्वे में हैरान करने वाली बात सामने आई है. इसके मुताबिक साल 2018-19 के दौरान देश में कुल जोत का करीब 17.3 फीसदी भाग बटाईदार और किरायेदार किसानों के पास था. हालांकि, केंद्र सरकार सरकार के पास भूमिहीन किसानों का सही डाटा नहीं है. क्योंकि ऐसे किसानों का कोई सर्वे नहीं हुआ है.
राष्ट्रीय किसान आयोग (स्वामीनाथन कमीशन) ने अपनी सिफारिश में कहा है कि जहां कहीं भी व्यवहार्य हो भूमिहीन कृषक परिवारों को प्रति परिवार न्यूनतम एक एकड़ भूमि उपलब्ध कराई जानी चाहिए. जो उन्हें घरेलू उद्यान, पशुपालन के लिए स्थान उपलब्ध कराएगी. लेकिन राजस्थान को छोड़कर कहीं और इस मसले पर कोई खास नहीं हुआ है. अगर आयोग की सिफारिश के मुताबिक भूमिहीनों को जमीन दी जाए तो उन्हें ऐसी कई योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकता है.
इसी सात जुलाई को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने भी इसी तरह का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कृषि मंत्रालय के चिंतन शिविर में कहा कि भारत में लाखों किसान ऐसे हैं जो खेती करते हैं लेकिन उनके पास जमीन नहीं है. दूसरी ओर ऐसे भी किसान हैं जिनके पास सौ दो सौ एकड़ जमीन है लेकिन वह खेती नहीं करते.
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