कृषि उपज के दामों में उतार-चढ़ाव से किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान होता है, जबकि बिचौलिए उसका फायदा उठाकर मोटी कमाई करते हैं. अगर दाल, चावल, खाद्य तेल और सब्जियां महंगी हो जाएं तो उपभोक्ता परेशान होते हैं और अगर सस्ती हो जाएं तो किसान. जैसे कभी टमाटर और प्याज का बढ़ा दाम राजनीतिक मुद्दा बन जाता है तो कभी प्याज के दाम में कमी से सत्ताधारी पार्टियों को चुनावों में सियासी कीमत चुकानी पड़ती है. इस समय सोयाबीन का कम दाम सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है, क्योंकि इसके दूसरे सबसे बड़े उत्पादक सूबे में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में केंद्र सरकार ने एक ऐसी तरकीब निकाली है जिससे किसानों और कंज्यूमर दोनों को खुश रखा जा सके. हालांकि, सरकार की कोशिश कामयाब होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा.
बहरहाल, सरकार ने उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को खुश रखने के लिए मूल्य समर्थन योजना (PSS) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) को पीएम आशा (PM-AASHA) यानी प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान में मिला दिया है. दावा है कि इससे न केवल किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम दिलाने में मदद मिलेगी, बल्कि उपभोक्ताओं को किफायती भाव पर आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित होगी. पीएम-आशा में अब मूल्य समर्थन योजना (PSS), मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF), मूल्य घाटा भुगतान योजना (PDPS) और बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) शामिल हो गए हैं.
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मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत एमएसपी नोटिफाइड दलहन, तिलहन और खोपरा की खरीद इसी सीजन यानी 2024-25 से बढ़ाई जाएगी. पहले इसके तहत राज्य के उत्पादन का सिर्फ 25 फीसदी उपज खरीदी जा सकती थी लेकिन अब इसे बदलकर राष्ट्रीय उत्पादन का 25 प्रतिशत कर दिया गया है. ऐसे में अब उन सूबों में ज्यादा खरीद हो सकेगी जिनमें इन फसलों का ज्यादा उत्पादन होगा. राज्यों को किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने और संकटपूर्ण बिक्री को रोकने के लिए किसानों से एमएसपी पर इन फसलों की अधिक खरीद करने में मदद मिलेगी.
मूल्य घाटा भुगतान योजना (पीडीपीएस) यानी भावांतर के लिए कवरेज को राज्य तिलहन उत्पादन के मौजूदा 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया है. साथ ही किसानों के लाभ के लिए इसके कार्यान्वयन की अवधि को 3 से बढ़ाकर 4 महीने कर दिया गया है. लेकिन, इसमें एक और बड़ा बदलाव घाटे की भरपाई के संबंध में किया गया है जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है.
एमएसपी और बाजार बिक्री मूल्य के बीच अंतर का मुआवजा एमएसपी के 15 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है, जो पहले 25 फीसदी था. यानी अब एमएसपी और बाजार भाव के बीच दाम में सिर्फ 15 फीसदी के अंतर की ही भरपाई होगी. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि व्यापारी इसका नाजायज फायदा न उठाएं. भावांतर के चक्कर में वो दाम ज्यादा न गिराएं. आमतौर पर एमएसपी और बाजार भाव में 15 फीसदी का ही अंतर रहता है.
दलहन, तिलहन और नारियल की खरीद के लिए मौजूदा सरकारी गारंटी को बढ़ाकर 45,000 करोड़ रुपये कर दिया है. यह कोष तब मदद करेगा जब बाजार में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे गिरेंगी, जिससे किसानों से एमएसपी पर खरीद बढ़ाई जाएगी. तिलहन और दलहन की पर्याप्त सरकारी खरीद न हो पाने की वजह से किसान इसकी खेती का दायरा नहीं बढ़ा रहे हैं. बहरहाल, सरकार तिलहन, दलहन की कितनी खरीद करने जा रही है ये भी जान लीजिए.
मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के विस्तार से दालों और प्याज के रणनीतिक सुरक्षित भंडार को बनाए रखने, जमाखोरी करने वालों को हतोत्साहित करने और उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर कृषि उपज की आपूर्ति करने में मदद मिलेगी. जब भी बाजार में कीमतें एमएसपी से ऊपर होंगी, तो बाजार मूल्य पर दालों की खरीद उपभोक्ता कार्य विभाग (डीओसीए) द्वारा की जाएगी. सुरक्षित भंडार के रखरखाव के अलावा, पीएसएफ के तहत रियायती दर पर टमाटर, भारत दाल, भारत आटा और भारत चावल की बिक्री की जाएगी.
बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) के तहत खराब होने वाली बागवानी फसलों को उगाने वाले किसानों को लाभकारी दाम दिया जाएगा. सरकार ने इसकी कवरेज को उपज के 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया है. एमआईएस के तहत उपज की खरीद के बजाय किसानों के खाते में सीधे भावांतर भुगतान करने का एक नया विकल्प जोड़ा गया है.
इसके अलावा, टॉप (टमाटर, प्याज और आलू) फसलों के मामले में, सबसे अधिक कटाई के समय पर उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के बीच कीमत के अंतर को पाटने के लिए, सरकार ने नेफेड और एनसीसीएफ जैसी एजेंसियों द्वारा ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज पर किए जाने वाले खर्च को वहन करने का निर्णय लिया है. जिससे न केवल किसानों को सही कीमत मिलेगी बल्कि बाजार में उपभोक्ताओं के लिए टॉप फसलों की कीमतों में नरमी भी देखने को मिलेगी.
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