केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों अलग मूड में दिख रहे हैं. वो दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं लेकिन आजकल इंजीनियर वाले अंदाज में कृषि मंत्रालय के पेच कस रहे हैं. बीते कई घटनाक्रम इसकी गवाही दे रहे हैं. वो चाहे कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी रिसर्च बॉडी आईसीएआर यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़े वैज्ञानिक हों या फिर कृषि मंत्रालय के अधिकारी. कुल मिलाकर वो खेतीबाड़ी वाले इस मंत्रालय को अपने हिसाब से पटरी पर दौड़ाने के लिए इससे जुड़े लोगों को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. जिसमें दो बातें सबसे अहम हैं. एक तो वैज्ञानिकों और किसानों के बीच गैप न हो और दूसरा योजनाओं को इतना पेचीदा न बनाया जाए कि उसका आम लोग फायदा न उठा सकें.
चौहान अपने अधिकांश कार्यक्रमों में खेती-किसानी से जुड़े अधिकारियों को उनके काम के तौर-तरीकों को लेकर आईना दिखा रहे हैं. जिसमें वो कामकाज में जटिलता कम करने और सही डायरेक्शन में आगे बढ़ने की नसीहत दे रहे हैं. ताजा वाकया पूसा में आयोजित कृषि मंत्रालय के एक कार्यक्रम का है. इस कार्यक्रम में मंच से ही शिवराज सिंह चौहान ने नए कृषि सचिव को इस बात के निर्देश दिए कि वो एग्रीकल्चर इफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) में सभी सूबों की मैपिंग करें कि किस जगह किस तरह के एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है.
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कृषि मंत्री ने इस योजना से जुड़े अधिकारियों से दो टूक कहा कि जहां पर वेयर हाउस की जरूरत है वहीं पर वेयरहाउस बनें. ऐसा न हो कि वो बनकर खाली पड़े रहें और बनवाने वालों को नुकसान हो. इसलिए जहां पर कोल्ड चैन या पैक हाउस की जरूरत है वहां पर इन्हीं चीजों का निर्माण करवाया जाए. हर जगह गोदाम ही बनवाने की जरूरत नहीं है. इसीलिए राज्यवार पोस्ट हार्वेस्ट यानी फसलोपरांत कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत की मैपिंग करने के निर्देश दिए.
चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश में सीएम रहते उन्होंने यह कोशिश की थी कि एआईएफ से ज्यादा से ज्यादा ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो, जिसका इस्तेमाल करके किसान अपनी आय बढ़ा सकें. लेकिन, अब मध्य प्रदेश में वेयरहाउस इतने हो गए हैं कि वो भर नहीं पा रहे हैं. इसलिए यह ध्यान रखना. जिस सूबे में जिस चीज की जरूरत है उसमें वही बनाना. मध्य प्रदेश में ज्यादा वेयरहाउस बनने से वहां पर एक नई समस्या पैदा हो गई है. हमें लोग बताते हैं कि वेयरहाउस खाली पड़े हैं. इसलिए ऐसा इंफ्रा मत बनाना कि बनवाने वालों को दिक्कत हो जाए.
चौहान ने बातों ही बातों में अधिकारियों को यह संदेश दे दिया है कि कामकाज को सरल करना है. किसी भी योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया को इतना जटिल नहीं बनाना है कि लोग उसका फायदा ही न ले सकें. कृषि मंत्री ने कहा किहम सिंगल विंडो की बात जरूर करते हैं, लेकिन सिंगल विंडो एक और विंडो हो जाती है दस-बारह विंडो के बाद. यहां चले जाओ, वहां चले जाओ...कई लोग तो योजनाओं को लेकर बहुत उत्साह दिखाते हैं लेकिन बाद में वो जटिलताओं की वजह से सब छोड़कर निकल लेते हैं कि कौन चक्कर में पड़े. वो कृषि निवेश पोर्टल पर टिप्पणी कर रहे थे.
इसी तरह कृषि क्षेत्र में निवेश की प्रक्रियाएं बहुत जटिल हैं. जरूरत ऐसी व्यवस्था बनाने की है कि एक जगह उनको सारी सुविधाएं ठीक से मिल जाएं. कृषि निवेश पोर्टल में यह संभव होगा. भटकना नहीं पड़ेगा. हम कोशिश कर रहे हैं कि लोगों के लिए योजनाओं का लाभ लेना आसान हो. एग्री इंफ्रा फंड को ही लीजिए. पहले कहते थे कि इस फंड का इस्तेमाल करके आप आटा तो बना सकते हो लेकिन, आटा से ब्रेड नहीं बना सकते. आटा से बिस्किट नहीं बना सकते थे. अब ऐसा नहीं होगा. इस फंड से आटा भी बनेगा और ब्रेड-बिस्किट भी बना सकते हैं.
इससे पहले चौहान ने 16 जुलाई को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों और इसका मैनेजमेंट करने वालों को आड़े हाथों लिया था. उन्होंने कहा था कि भारत की तरक्की में आईसीएआर के अहम योगदान से कभी भी इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, अब हालात वैसे नहीं हैं, जैसे होने चाहिए. वैज्ञानिक काम करते हैं यह सच है, लेकिन किसान व्यवहारिक काम करता है यह भी सच है. हम आकलन करके देखें कि क्या वैज्ञानिकों और किसानों के बीच पूरा तालमेल है? चौहान को यहां तक कहना पड़ा था कि वो कृषि मंत्री की कुर्सी पर बोझ बनने नहीं आए हैं.
कृषि मंत्री ने कहा कि विकसित भारत विकसित कृषि और समृद्ध किसानों के बिना नहीं बन सकता. खेती के बिना भारत का काम नहीं चल सकता. इसलिए हम खेती में कई नए प्रयोग करेंगे. किसान हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत हैं. इस बात का एहसास कोविड के वक्त हुआ, जब सारी गतिविधियां बंद थीं लेकिन किसान अपने खेत में काम कर रहा था. उस दौरान खेती ने ही भारत की अर्थव्यवस्था को बचाने का काम किया.
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