पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए हरियाणा कृषि विभाग ने एक बड़े कदम की घोषणा की. कृषि विभाग ने कहा कि पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी. इसके अलावा, उनके खेत के रिकॉर्ड में एक "रेड एंट्री" दर्ज की जाएगी, जिससे उन्हें अगले दो सीजन के लिए ई-खरीद पोर्टल के माध्यम से अपनी फसल बेचने से रोका जा सकेगा.
17 अक्टूबर, 2024 को जारी किया गया यह आदेश फसल अवशेष (पराली) जलाने से खराब होने वाली एयर क्वालिटी और पर्यावरण के नुकसान के बारे में चल रही चिंताओं के जवाब में आया है. निर्देश में कहा गया है कि 15 सितंबर, 2024 के बाद से धान की फसल के अवशेष (पराली) जलाने के दोषी पाए जाने वाले सभी किसानों को संबंधित कानूनों के तहत कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ेगा. यह उपाय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को सौंपी गई एक रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें बताया गया है कि 14 अक्टूबर तक 232 किसानों के नाम के खिलाफ पहले ही रेड एंट्री दर्ज की जा चुकी थी.
14 अक्टूबर को आयोजित एक बैठक में इन नए उपायों को लागू करने के महत्व पर जोर दिया गया. इस बैठक में विभिन्न जिलों के उपायुक्त शामिल थे. बैठक के दौरान हरियाणा के कृषि विभाग ने खुलासा किया कि 15 सितंबर से 13 अक्टूबर के बीच पराली जलाने से संबंधित आग की 468 घटनाएं दर्ज की गई थीं. हालांकि, वेरिफिकेशन में कुछ गड़बड़ सामने आईं, 173 मामलों में कोई आग नहीं लगी और चार आग गैर-कृषि भूमि पर या कचरा जलाने के कारण लगी.
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पराली जलाने से निपटने के लिए हरियाणा सरकार ने 3,224 नोडल अधिकारी तैनात किए हैं और 2018-19 के कृषि सीजन से किसानों को रियायती दरों पर फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीन उपलब्ध कराए हैं. राज्य सरकार इस मशीन की खरीद पर इंसेंटिव भी दे रही है. राज्य सरकार की ओर से सीआरएम मशीन का उपयोग करने के लिए 1,000 रुपये प्रति एकड़ और धान की पराली को गौशालाओं तक पहुंचाने के लिए 500 रुपये प्रति एकड़ का इंसेंटिव दिया जा रहा है.
हरियाणा के कई गांवों में किसानों और आम लोगों को पराली नहीं जलाने को लेकर जागरूक किया जा रहा है. स्कूलों में भी बच्चों को जागरूक किया जा रहा है ताकि वे पराली न जलाने का मैसेज अपने माता-पिता को दे सकें. डीडीए कृषि विभाग ने कहा कि जिला नूंह में लगभग 13000 हेक्टेयर भूमि में धान की फसल है. नूंह जिले में धान का जो रकबा है उस पूरे क्षेत्र में हाथ से कटाई की जाती है. किसान हाथ से कटाई करने के बाद पराली को अपने पशुओं को चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
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नूंह आसपास के इलाके से राजस्थान तक के पशुपालक धान की पराली को खरीद कर ले जाते हैं. कुल मिलाकर सर्दी का मौसम शुरू होते ही एनसीआर एक तरह से गैस का चैंबर बन जाती है और यही कारण है कि प्रदूषण की वजह से लोगों का दम घुटने लगता है. लेकिन हरियाणा के नूंह जिले में इसी पराली को किसान जलाने के बजाय पशु चारे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. हरियाणा का यह अनोखा जिला है, जहां पराली सिरदर्द नहीं बल्कि मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.
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