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PMFBY: फसल बीमा कंपन‍ियां मालामाल...और शर्तों के मकड़जाल से क‍िसानों का बुरा हाल

PMFBY: फसल बीमा कंपन‍ियां मालामाल...और शर्तों के मकड़जाल से क‍िसानों का बुरा हाल

Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana: यूं ही नहीं फसल बीमा कंपन‍ियों ने स‍िर्फ छह साल में ही कर ली 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कमाई. फसल नुकसान होने पर सर्वे का काम राज्य सरकार के कर्मचारी करते हैं, ब्लॉक की बात छोड़‍िए ज‍िलों में भी नहीं हैं इनके कार्यालय. खर्च कम और मुनाफा ज्यादा.   

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आसान नहीं है फसल बीमा का क्लेम पाना (Photo-Kisan Tak). आसान नहीं है फसल बीमा का क्लेम पाना (Photo-Kisan Tak).

बीमाधड़ी: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत बहुत अच्छी मंशा के साथ की गई थी. कोश‍िश थी क‍ि प्राकृत‍िक आपदा की सूरत में यह क‍िसानों के ल‍िए सुरक्षा कवच बने. लेक‍िन, क्या फसल नुकसान की समस्या झेल रहे सभी क‍िसानों को यह योजना राहत पहुंचा पा रही है? इस सवाल का जवाब अध‍िकांश क‍िसान 'ना' में देते हैं. वजह यह है क‍ि इस योजना की शर्तें कंपन‍ियों के पक्ष में ज्यादा और क‍िसानों के पक्ष में कम हैं. बीमा कंपन‍ियों की इन्हीं शर्तों के दुष्चक्र में फंसकर क‍िसान 'बीमाधड़ी' के श‍िकार हो रहे हैं. 'क‍िसान तक' की बीमाधड़ी सीरीज की तीसरी कड़ी में हम बताएंगे क‍ि कैसे फसल बीमा कंपन‍ियों ने प‍िछले छह साल में ही 40 हजार करोड़ रुपये से अध‍िक की र‍िकॉर्ड कमाई की है. 

एक तरफ फसल नुकसान का क्लेम लेने के ल‍िए क‍िसानों के जूते-चप्पल घ‍िस रहे हैं तो दूसरी ओर बीमा कंपन‍ियां मालामाल हो रही हैं. कुछ क‍िसानों का दर्द देखकर तो ऐसा लगता है क‍ि जैसे क‍िसानों का बीमा नहीं बल्क‍ि कंपन‍ियों की कमाई का बीमा हुआ पड़ा है. क‍िसानों की फसल का नुकसान होने पर पता नहीं क्लेम कब म‍िलेगा या म‍िलेगा ही नहीं, लेक‍िन कंपन‍ियों का मुनाफा तो तय मान‍िए. क‍िसानों को कहीं 100 रुपये का क्लेम म‍िल रहा है तो कहीं 200 रुपये का. 

क‍िसानों को कौन द‍िलाएगा न्याय?

बीमाधड़ी से क‍िसी भी राज्य के क‍िसान बचे नहीं हैं. फसल बीमा कंपन‍ियों ने अपनी शर्तों के मकड़जाल में कृष‍ि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी के क्षेत्र बाड़मेर (राजस्थान) के क‍िसानों को भी लपेट ल‍िया था. जबक‍ि चौधरी खुद उस कृष‍ि मंत्रालय के राज्य मंत्री हैं ज‍िसके अधीन यह योजना चलती है. ऐसे में उन्होंने दबाव बनाकर अपने क्षेत्र के क‍िसानों को न्याय द‍िलवा द‍िया, वहां क्लेम की रकम बढ़ गई. वरना ज्यादातर जगहों के क‍िसान इन कंपन‍ियों के शर्तों के आगे बेबश ही रहते हैं. उदाहरण के ल‍िए हरियाणा के जींद न‍िवासी सूरजमल नैन को ही लीज‍िए. ज‍िन्हें 6 साल की लंबी लड़ाई के बाद कंज्यूमर कोर्ट से न्याय म‍िला. लेक‍िन कोर्ट के आदेश के सवा महीने बाद भी कंपनी ने उन्हें क्लेम की रकम नहीं दी.

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क‍ितने फायदे में बीमा कंपन‍ियां

फरवरी, 2016 में फसल बीमा योजना की शुरुआत से लेकर 2021-22 तक यानी छह साल में बीमा कंपन‍ियों को 1,70,127.6 करोड़ रुपये का प्रीमियम म‍िला, जबक‍ि बदले में किसानों को स‍िर्फ 1,30,015.2 करोड़ रुपये का क्लेम मिला. इस प्रीम‍ियम में क‍िसानों, राज्यों और केंद्र सरकार सबकी ह‍िस्सेदारी है. केंद्र के मंत्री अक्सर बीमा कंपन‍ियों को म‍िलने वाले स‍िर्फ उस प्रीम‍ियम की बात करते हैं जो क‍िसानों की ओर से द‍िया जाता है. बाकी प्रीम‍ियम को वो अंधेरे में रखते हैं.  

अब फसल बीमा प्रीम‍ियम को आंकड़ों के उजाले में देखने की एक कोश‍िश करते हैं. दरअसल, पीएम फसल बीमा योजना के तहत किसानों से रबी की फसलों के लिए स‍िर्फ 1.5 फीसदी, खरीफ के लिए 2 प्रत‍िशत और कमर्शियल क्रॉप एवं बागवानी फसलों के लिए 5 फीसदी प्रीमियम लिया जाता है. शेष रकम प्रीमियम सब्सिडी के रूप में केंद्र और राज्य म‍िलकर बराबर-बराबर देते हैं.   

केंद्र सरकार की ओर से द‍िए गए आंकड़ों के मुताब‍िक बीमा कंपन‍ियों ने छह साल में ही 40112 करोड़ रुपये की कमाई की है. हर साल लगभग 6685 करोड़ रुपये. पहले इसकी ड‍िटेल समझ‍िए, उसके बाद बताएंगे क‍ि कैसे इतनी कमाई संभव हो रही है. यह बात ब‍िल्कुल सच है क‍ि क‍िसानों ने छह साल में स‍िर्फ 25251.8 करोड़ रुपये का प्रीम‍ियम भरा. लेक‍िन राज्यों और केंद्र ने म‍िलकर जो प्रीम‍ियम सब्स‍िडी दी वो 1,44,875.8 करोड़ रुपये है. 

इस तरह कुल प्रीम‍ियम 1,70,127.6 करोड़ रुपये का हुआ. आख‍िर जो राज्यों और केंद्र की ओर से बीमा फसल बीमा कंपन‍ियों को म‍िल रहा है वो भी तो देश के टैक्सपेयर्स का पैसा है. वह पैसा आसमान तो आया नहीं है. ऐसे में आप खुद समझ‍िए क‍ि फायदे में कौन है? क‍िसान या बीमा कंपन‍ियां?  

फसल बीमा कंपन‍ियों की कमाई का ह‍िसाब-क‍िताब (Photo-Kisan Tak).

खुद बीमा योजना चलाए सरकार

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं क‍ि केंद्र, राज्य और किसानों ने मिलकर बीमा कंपन‍ियों को छह साल में जितना प्रीमियम द‍िया है वो रकम लगभग 1.45 लाख करोड़ रुपये है. जबक‍ि क‍िसानों को 1.30 लाख करोड़ रुपये का क्लेम म‍िला है. कंपन‍ियों का कुछ खास खर्च नहीं है, क्योंक‍ि सारा काम तो केंद्र और राज्य के अध‍िकारी म‍िलकर कर रहे हैं. ऐसे में इतनी रकम से सरकारें खुद मुआवजा बांट सकती थीं. क‍िसानों को प्रीम‍ियम भी नहीं देना होता और उसके बाद करीब 15000 करोड़ रुपये सरकार के खजाने में बच भी जाते. इस योजना में स्ट्रक्चरल फॉल्ट है. ज‍िसकी वजह से क‍िसान परेशान हैं और बीमा कंपन‍ियां मालामाल.  

हर ब्लॉक में अपना ऑफ‍िस खोलें कंपन‍ियां

मशहूर कृष‍ि अर्थशास्त्री देव‍िंदर शर्मा का कहना है क‍ि फसल बीमा योजना में कई सारे सुधार करने की जरूरत है. वरना क‍िसान परेशान रहेंगे और फसलों के बीमा के नाम पर कंपन‍ियां चांदी कूटती रहेंगी. कम से कम सरकार बीमा कंपन‍ियों से हर ब्लॉक में उनके कार्यालय खुलवाए. सर्वेयर रखवाए और क‍िसानों की श‍िकायत सुनने के ल‍िए कर्मचारी रखे. इससे हजारों युवाओं को गांवों में रोजगार म‍िलेगा और क‍िसानों का काम भी आसान होगा. जब बीमा कंपन‍ियों ने छह साल में ही 40 हजार करोड़ रुपये कमाई की है तब तो सरकार को उनसे यह काम जरूर करवाना चाह‍िए. 

कैसे हो रही कंपन‍ियों की इतनी कमाई  

  • साल 2021-22 में 8610 करोड़ रुपये के क्लेम रिपोर्ट क‍िए गए और 7557.7 का भुगतान क‍िया गया. 
  • 2020-21 में 19261.3 करोड़ के दावे र‍िपोर्ट हुए और भुगतान हुआ स‍िर्फ 17931.6 करोड़ का. 
  • 2019-20 में 27628.9 करोड़ के र‍िपोर्ट क‍िए दावों के व‍िपरीत 26413.2 करोड़ ही भुगतान हुआ. 

क्यों आसान नहीं है क्लेम पाना

  • बीमा इंडीव‍िजुअल होता है, हर खेत के ल‍िए क‍िसान अलग प्रीम‍ियम जमा करता है, लेक‍िन जब क्लेम देने की बारी आती है तो खेत को इंश्योरेंस यून‍िट मानने का पैमाना खत्म हो जाता है. क्लेम समूह में आकलन के ह‍िसाब से म‍िलता है. कुछ फसलों में पटवार मंडल तो कुछ में गांव को एक यून‍िट माना जाता है. इस वजह से काफी क‍िसान नुकसान के बावजूद बीमा क्लेम से वंच‍ित रह जाते हैं. क‍िसान संगठन लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं क‍ि हर खेत में नुकसान का अलग-अलग आकलन होना चाह‍िए. लेक‍िन कंपन‍ियां इसे मानने को तैयार नहीं हैं.   
  • क‍िसान फसल बीमा की क‍िसी बात को लेकर परेशान होता है तो वह अपनी समस्या क‍िसे बताएगा, इसका टोल फ्री नंबर के अलावा कोई समाधान नहीं है. बीमा कंपन‍ियों के टोल फ्री नंबर की हकीकत क‍िसी बीम‍ित क‍िसान से छ‍िपी नहीं है. बीमा कंपन‍ियों का क‍िसी भी ज‍िले और ब्लॉक में ऑफिस तक नहीं है. कोई प्रत‍िन‍िधि भी नहीं है. फसल खराब होने पर सर्वे का काम पटवारी या लेखपाल करते हैं. यानी राजस्व व‍िभाग के कर्मचारी. ऊपर से योजना का प्रचार भी सरकार ही कर रही है. यानी पूरा सरकारी तंत्र बीमा कंपन‍ियों को फायदा कमवाने में जुटा हुआ है. क‍िसान ज‍ितना क्लेम करता है या ज‍ितना उसका नुकसान होता है उतना मुआवजा कभी नहीं म‍िलता.
  • इस योजना में एक बड़ी परेशानी कम से कम 33 फीसदी नुकसान होने की शर्त की है. यानी 32.5 फीसदी नुकसान पर मुआवजा नहीं म‍िलेगा, लेक‍िन 33.5 फीसदी नुकसान होने पर मुआवजा म‍िल जाएगा. इसकी शर्त को क‍िसान हटाने की मांग कर रहे हैं. क्योंक‍ि नुकसान तो नुकसान है चाहे वो 5 फीसदी हो या 100 फीसदी. नुकसान के ह‍िसाब से मुआवजा म‍िलना चाह‍िए.
  • यह भी बड़ा सवाल है क‍ि पटवारी क्यों नुकसान का अनुमान लगाता है क‍ि फसल में क‍ितने फीसदी नुकसान हुआ. क‍िसान नेता पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि पटवारी फसल का व‍िशेषज्ञ नहीं होता क‍ि वो बता पाए क‍ि नुकसान क‍ितना हुआ. पटवारी तो यह बता सकता है क‍ि क‍िस खेत का क्या नंबर है और उसका एर‍िया क्या है. इसल‍िए सर्वे के समय पटवारी के साथ कृष‍ि व‍िभाग के अध‍िकारी भी हों, तब सही मायने में नुकसान का सही आकलन हो पाएगा. उसके पास कोई मीटर तो है नहीं क‍ि उससे सही-सही नुकसान का पता चले. इन शर्तों को बदला नहीं गया तो फ‍िर क‍िसानों के ल‍िए क्लेम पाना इतना आसान नहीं होगा.

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