भारत में ऑर्गेनिक खेती (organic farming) को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है. इसमें सरकार के साथ-साथ किसान भी दिलचस्पी ले रहे हैं. सरकार कई तरह की स्कीमें चलाती हैं जिसकी मदद से किसान खेती से लेकर उपज की बिक्री तक में फायदा उठा सकते हैं. सरकारी प्रोत्साहन और किसानों को हो रहे लाभ के चलते भारत में ऑर्गेनिक खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है. 2014 में 11.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ऑर्गेनिक फार्मिंग होती थी जो 2022 में बढ़कर 29.17 लाख हेक्टेयर हो गई. इसमें और भी बढ़ोतरी देखी गई है.
राज्य से लेकर केंद्र सरकार के स्तर पर ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस खेती से पैदा होने वाली उपज की सप्लाई बढ़ाने के साथ ही निर्यात बढ़ाने पर भी पूरा जोर है. देश का उत्तर पूर्वी क्षेत्र इस मामले में कहीं आगे है. सरकार का लक्ष्य है कि 2024 तक मौजूदा ऑर्गेनिक खेती में अतिरिक्त 20 लाख हेक्टेयर रकबे को शामिल कर लिया जाए. इस दिशा में कुछ सरकारी स्कीमें बेहतर रोल निभा रही हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.
परंपरागत कृषि विकास योजना में क्लस्टर आधारित ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाता है. इसमें पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम सर्टिफिकेशन का रोल अहम बनाया गया है. इस स्कीम में ऑर्गेनिक खेती के लिए क्लस्टर बनाया जाता है, किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है, सर्टिफिकेशन और मार्केटिंग को बढ़ावा देते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है. इस योजना में किसानों को प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये तीन साल तक के लिए मदद राशि के तौर पर दिया जाता है. इसमें 31,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि ऑर्गेनिक इनपुट के तौर पर दी जाती है.
यह स्कीम उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए है जिसका नाम है मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्टर्न रीजन (MOVCDNER) है. इस स्कीम में उत्तर पूर्वी राज्यों में थर्ड पार्टी सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाता है. निर्यात को ध्यान में रखते हुए फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन की मदद ली जाती है. ऑर्गेनिक खेती पर आने वाले खर्च के रूप में किसानों को तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 25000 रुपये की मदद राशि दी जाती है. यह पैसा ऑर्गेनिक खाद और बायो फर्टिलाइजर पर खर्च होता है. स्कीम के तहत ऑर्गेनिक उपज के व्यवसाय का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए 2 करोड़ रुपये लोन मिलता है.
यह स्कीम राज्य सरकारों, सरकारी एजेंसियों के लिए है. इसमें फल और सब्जियों का कचरा प्रबंधन और एग्रो कंपोस्ट प्रोडक्शन प्लांट लगाने के लिए 190 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाती है. इसी तरह प्राइवेट कंपनियों या किसी इच्छुक व्यक्ति को इस तरह के प्लांट लगाने के लिए 33 लाख रुपये तक का लोन दिया जाता है.
नेशनल मिशन ऑन ऑयलसीड एंड ऑयलपाम स्कीम के अंतर्गत किसानों को खेती के लिए सब्सिडी दी जाती है. अगर कोई किसान तिलहन और पाम ऑयल की खेती करता है तो उसे बायो फर्टिलाइजर, राइजोबियम कल्चर, फॉस्फेट सॉल्यूबलाइजिंग बैक्टीरिया, जिंक सॉल्यूबलाइजिंग बैक्टीरिया, एजेटोबैक्टर, माइकोराइजा और वर्मी कंपोस्ट के लिए प्रति हेक्टेयर 300 रुपये की सहायता राशि दी जाती है.
नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत किसानों को बायो फर्टिलाइजर जैसे कि राइजोबियम या पीएसबी खाद को बढ़ावा देने के लिए प्रति हेक्टेयर 300 रुपये की मदद राशि दी जाती है. इसी तरह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) की शुरुआत की गई है जिसमें रासायनिक खाद मुक्त खेती की जाती है. खेतों में प्राकृतिक चीजें डालकर उपज ली जाती है. आंध्र प्रदेश और केरल में बीपीकेपी के तहत बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
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