छत्तीसगढ सरकार ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा चलाए गए Green Skill Development Program को राज्य की जरूरतों के मुताबिक कौशल विकास से जोड़ते हुए नए तरीके से शुरू किया है. इसमें जनजातीय युवाओं को जंगल की वनस्पति और जीव जगत से जुड़ा पारंपरिक ज्ञान आधुनिक तकनीकी कौशल से जोड़कर दिया जाएगा. इससे न केवल राज्य के Tribal Youth के लिए रोजगार के नए अवसर मुहैया होंगे बल्कि वे अपनी वन संपदा और प्राकृतिक धरोहर को सहेजने में भी अपना अमूल्य योगदान दे सकेंगे. इस काम को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी Forest Department को सौंपी गई है. वन विभाग पहले से ही जनजातीय वनवासियों के हित संरक्षण और पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए कुछ योजनाएं चला रहा है. इनमें जनजातीय युवाओं को जैव विविधता संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाते हुए उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की रणनीति के तहत यह पहल शुरू की गई है.
छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किए गए ग्रीन स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम में जनजातीय युवाओं के लिए Skill Development Training को जोड़ कर इस कार्यक्रम को व्यापक रूप दिया है. कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी इस अनूठी पहल का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय युवाओं को वन संपदा का संरक्षण कर अपनी आजीविका के नए साधन जुटाने के हुनर से लैस करना है.
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वनस्पति एवं वन विज्ञान के तहत पैरा टैक्सोनॉमी एक ऐसी विधा है, जिसमें जैविक अनुसंधान के लिए विभिन्न प्रजातियों की त्वरित पहचान और वर्गीकरण किया जाता है. जैव विविधता से भरपूर छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में यह विधा विशेष रूप से उपयोगी है.
इस विधा का प्रशिक्षण लेने के बाद प्रशिक्षित युवा नेशनल पार्क गाइड, पर्यटक गाइड और Nature Camp Manager बनने के साथ वन औषधियों के पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान से भी लैस हो सकेंगे. इसके अलावा इन प्रशिक्षित युवाओं को बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं में भी रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकेंगे.
इस कार्यक्रम की उपयोगिता के बारे में वन मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि यह पहल छत्तीसगढ़ की जैव विविधता को संरक्षित करने में जनजातीय युवाओं की भागीदारी तय करेगी. इससे न केवल युवाओं के रोजगार की संभावनाओं बढी है, बल्कि वन संपदा से जुड़े पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित कर इसे अगली पीढ़ी को सौंपने का भी अवसर मिला है.
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पहले बैच में भाग लेने वाले 53 प्रतिभागियों में से 12वीं या स्नातक शिक्षा प्राप्त 40 जनजातीय युवा थे. ये मूल रूप से कांकेर, कोंडागांव, केशकाल, भानुप्रतापपुर और नारायणपुर जैसे विभिन्न वन-मंडलों से आए थे. गत 18 अगस्त को संपन्न हुए पहले प्रशिक्षण में प्रतिभागियों ने जंगल सफारी के गुर सीखने के क्रम में मोहरेगा, सिरपुर, अर्जुनी, बारनवापारा और उदंती वन्यजीव अभयारण्य में जाकर विभिन्न वन्य जीवों की प्रजातियों की पहचान और उनका Documentation करना भी सीखा.
प्रशिक्षण के दौरान 93 प्रकार के मैक्रोफंगी, 153 प्रकार की वनस्पतियाँ, 47 औषधीय पौधे और 187 प्रकार के बीजों की पहचान कर उनका दस्तावेजीकरण करना सिखाया गया. इस कार्यक्रम में जनजातीय महिलाओं को भी शामिल करने का प्रावधान है. इसमें कोंडागांव जिले के बड़ेराजपुर विश्रामपुरी गांव की 22 वर्षीय दिव्या मरकाम ने भी प्रशिक्षण लिया. उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक जनजातीय क्षेत्र की महिला के रूप में विशेष शिक्षा और रोजगार के अवसर सीमित रहे हैं. पैरा टैक्सोनॉमी के इस प्रशिक्षण से रोज़गार के नए अवसर मिलेंगे एवं जनजातीय महिला सशक्तिकरण भी होगा.
प्रशिक्षण की सफलता को देखते हुए छत्तीसगढ़ वन विभाग इस कार्यक्रम का विस्तार राज्य के अन्य हिस्सों जैसे जगदलपुर, सरगुजा, बिलासपुर और दुर्ग में भी करने की योजना बना रहा है. वन विभाग ने आगामी प्रशिक्षण सत्रों के लिए पहले बैच के प्रतिभागियों को Master Trainer के रूप में अपनी सेवाएं देने का फैसला किया है. इससे न केवल पहले बैच के प्रतिभागियों को अनुभव और रोजगार के अवसर मिलेंगे, बल्कि कार्यक्रम की निरंतरता और स्थिरता भी सुनिश्चित होगी.
कश्यप ने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम ने जैव विविधता संरक्षण में पहले ही पड़ाव में अहम परिणाम दिए हैं. प्रतिभागियों ने अपने वन क्षेत्र में कई दुर्लभ वनस्पति और जीवों की प्रजातियों की पहचान कर उनका दस्तावेजीकरण किया है. इसमें पीले चमकदार खोल वाला एक अनूठा कछुआ और दुर्लभ पौधे जैसे Gloriosa superba, Ophioglossum और Nervilia शामिल हैं.
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