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मक्के की खेती ने सरकार को परेशानी में डाला, पानी बचाने की मुहिम पर छाए संकट के बादल

मक्के की खेती ने सरकार को परेशानी में डाला, पानी बचाने की मुहिम पर छाए संकट के बादल

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में मक्का ब्रीडर के प्रिंसिपल डॉ सुरिंदर संधू ने कहा, "गेहूं के बाद मक्का बोने का चलन विनाशकारी है क्योंकि हर तीसरे दिन किसान अपने खेतों में पानी डाल रहे हैं. इससे धान की तरह ही एक और तबाही मच जाएगी. ताज्जुब इस बात को लेकर है कि डार्क जोन (जहां पानी कम है) में आने वाले जिलों के किसान भी यही तरीका अपना रहे हैं.

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पंजाब में वसंत मक्के की खेती से जल संकट पैदा हो रहा है पंजाब में वसंत मक्के की खेती से जल संकट पैदा हो रहा है

पंजाब के जालंधर में इन दिनों मक्के (Spring Maize या वसंत मक्का) की खेती बहुतायत में हो रही है. जालंधर में इसके रकबे में बड़ी वृद्धि देखी जा रही है. इस मक्के की खेती से जहां किसानों में खुशी है, तो वहीं सरकारी विभाग सकते में है. सरकारी विभाग के लिए वसंत मक्के की खेती सोच में डालने वाली साबित हो रही है. इसकी वजह है जल संकट. दरअसल, वसंत मक्के की खेती में पानी की बहुत जरूरत होती है. यह मक्का पानी बहुत सोखता है और खेत में कई बार सिंचाई देनी होती है. यहां तक कि भूजल स्तर पर नीचे चला जाता है. यही वजह है कि वसंत मक्के की खेती ने सरकार, खासकर कृषि विभाग को परेशानी में डाल दिया है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकार जहां पानी बचाने की मुहिम चला रही है, वहीं वसंत मक्के जैसी फसलें जमीन का पानी सोख रही हैं.

'दि ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट बताती है, जालंधर में 2020-21 में 9,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में वसंत मक्के की खेती हुई थी जो अभी बढ़कर 15,526 हेक्टेयर में फैल गई है. कपूरथला जिले में भी मक्के की खेती का यही हाल है. लेकिन सवाल है कि जब वसंत मक्के की खेती में इतनी पानी की जरूरत होती है तो किसान इसे क्यों लगाते हैं. इसका जवाब है कि प्रति हेक्टेयर अधिक उपज मिलती है और मक्के का दाम भी अच्छा मिल जाता है. इस लालच में किसान पानी की बचत को दरकिनार कर वसंत मक्के की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. इससे सरकारी कोशिशों पर संकट के बादल छा रहे हैं.

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खरबूज छोड़कर मक्के की खेती

रिपोर्ट कहती है, जालंधर के शाहकोट इलाके में कई किसान पहले खरबूज की खेती करते थे और उससे आमदनी कमा रहे थे. लेकिन इन किसानों ने अधिक मुनाफे की लालच में वसंत मक्के की खेती शुरू कर दी है. कपूरथला के दोना इलाके में भी यही हाल है. इससे एक तरफ जालंधर के कई इलाकों में खरबूजे का रकबा घट गया है, तो दूसरी ओर पानी पीने वाली मक्के की फसल बहुतायत में उगाई जाने लगी है. 

क्या कहते हैं पंजाब के किसान?

शाहकोट के किसान अमर सिंह ने कहा कि पिछले कई वर्षों में कम लाभ के कारण उन्होंने खरबूजे की खेती के रकबे को 50 एकड़ से घटाकर 10 एकड़ से कम कर दिया है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में मक्का ब्रीडर के प्रिंसिपल डॉ सुरिंदर संधू ने कहा, "गेहूं के बाद मक्का बोने का चलन विनाशकारी है क्योंकि हर तीसरे दिन किसान अपने खेतों में पानी डाल रहे हैं. इससे धान की तरह ही एक और तबाही मच जाएगी. ताज्जुब इस बात को लेकर है कि डार्क जोन (जहां पानी कम है) में आने वाले जिलों के किसान भी यही तरीका अपना रहे हैं.

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कृषि एक्सपर्ट की क्या है राय?

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खरबूजे की तुलना में वसंत मक्के को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. मुख्य कृषि अधिकारी जसवंत राय ने कहा कि विभाग ने किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया और वसंत मक्का को बढ़ावा नहीं दिया. उन्होंने कहा, "हम वसंत मक्का की कमियों से अवगत कराने के लिए किसानों के साथ कैंप और बैठकें करते हैं."