किसानों के बीच मशरूम की खेती का चलन अब तेजी से बढ़ रहा है. फसल लागत से 8 से 10 गुना तक मशरूम की खेती में फायदा होता है. वहीं अब सोनभद्र में भी किसान बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती करने लगे हैं. जिले में मशरूम की खेती और इसके बिक्री का एक बड़ा केंद्र भी बनने जा रहा है. इस केंद्र पर किसानों और स्वयंसेवी महिलाओं को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ खेती की लागत का 40 से 50 फ़ीसदी तक अनुदान भी उपलब्ध होगा. डीएमएफ कोटे से जिले का पहला मशरूम यूनिट चैंबर तैयार होने वाला है.
उद्यान परिसर में स्थापित मशरूम उत्पादन केंद्र का जिला अधिकारी चंद्र विजय सिंह ने निरीक्षण किया और उत्पादन की बेहतरी के लिए पाली हाउस तकनीक अपनाने पर जोर भी दिया. मशरूम के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए स्वयंसेवी समूह की महिलाओं के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ने की कोशिश भी उद्यान विभाग के द्वारा की जा रही है. मशरूम को प्राथमिक उच्च, प्राथमिक विद्यालय के मिड डे मील के साथ ही औद्योगिक परियोजनाओं में संचालित मेस के उपयोग में लाया जाएगा.
सोनभद्र जिले के राजकीय पौधशाला परिसर में जिला खनिज निधि से निर्मित मशरूम उत्पादन इकाई और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 1000 वर्ग मीटर में पाली हाउस का निर्माण किया जा रहा है. जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि मशरूम इकाई में उत्पादन के लिए कंपोस्ट बैग तैयार कर लिए गए हैं और उत्पादन का कार्य भी शुरू हो गया है. जिले का पहला मशरूम यूनिट चैंबर है जो जिले के कृषकों को प्रशिक्षण के लिए एक डेमो के रूप में तैयार किया गया है. यहां से आम जनता तैयार मशरूम को आसानी से खरीद सकते है. इससे किसानों की आमदनी भी कई गुना बढ़ेगी।
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मशरूम का उत्पादन काफी आसान है. प्रति बैक से 2 किलो तक मशरूम तैयार होता है. उत्पादन केंद्र पर फिलहाल 1600 बैग तैयार किए गए हैं जिससे 32 क्विंटल मशरूम उत्पादित होता हैं. मशरूम में उच्च क्वालिटी के एंटीऑक्सीडेंट, प्रोटीन ,विटामिन बी कांप्लेक्स, फाइबर होता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को मशरूम मजबूत बनाता है.
सोनभद्र जिले में मशरूम के उत्पादन में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है. समूह की महिलाएं जो प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं उन्हें इस महीने में शामिल किया गया है. मशरूम में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. इसलिए मिड डे मील में स्कूलों के माध्यम से बच्चों को उपलब्ध कराने के निर्देश भी जिलाधिकारी ने दिए हैं. मशरूम को अस्पतालों के मरीजों के भोजन में भी शामिल करने की तैयारी हो रही है. मशरूम से एनीमिया और कुपोषण दोनों से लड़ने में सहायक है. इसके अलावा महिलाओं को रोजगार के साथ-साथ उनकी बेहतर आमदनी का जरिया भी मशरूम होगा. पाली हाउस तकनीक मशरूम के उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है. पाली हाउस के जरिए किसी भी मौसम में मशरूम की फसल को उगाया जा सकता है.
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