जैविक खेती की मांग आज के दौर में तेजी से बढ़ रही है और इसका बाजार भी धीमी गति के साथ आगे बढ़ रहा है. हालांकि, यह कोई नया खेती का मॉडल नहीं है, बल्कि हमारे पूर्वज लंबे समय से रसायनमुक्त खेती करते आ रहे हैं. लेकिन बदलते समय के साथ अधिक उत्पादन की चाह में हमने रासायनिक खेती की ओर रुख किया, जिसका परिणाम मिट्टी की उर्वरता में कमी और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में सामने आया है. हालांकि, अब सरकार रसायनों से दूर रहकर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक कर रही है. इसी दिशा में बिहार सरकार पिछले पांच वर्षों से गंगा नदी के किनारे बसे राज्य के 13 जिलों में जैविक कॉरिडोर बनाकर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रही है. आज इस कॉरिडोर में हजारों एकड़ भूमि पर जैविक तरीके से खेती की जा रही है.
सरकार द्वारा साल 2020-21 में जैविक कॉरिडोर योजना की शुरुआत की गई थी. वहीं, बीते पांच सालों के दौरान इस कॉरिडोर में खेतों से बहकर गंगा नदी में जाने वाले रसायनिक तत्वों की मात्रा में कमी आई है. साथ ही गंगा के पारिस्थितिक तंत्र को होने वाला नुकसान कम होता जा रहा है. इसके अलावा इस क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण हो रहा है. वहीं, राज्य के 20,000 से ज्यादा किसान इस योजना से जुड़कर जहरीले रसायनों से मुक्त फसलें और कृषि उत्पाद उपजा रहे हैं. हाल के समय में करीब 19,594 एकड़ से ज्यादा जमीन पर जैविक खेती की जा रही है.
बिहार के करीब 13 जिलों में गंगा नदी के किनारे जैविक कॉरिडोर की बनाकर खेती की जा रही है. जिसमें बक्सर, भोजपुर, पटना, नालंदा, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, भागलपुर, मुंगेर और कटिहार जिला शामिल हैं. जहां किसान सरकारी मदद और अपनी मेहनत के बल पर खेतों में से रसायमुक्त फसल का उत्पादन कर रहे हैं.
बिहार सरकार द्वारा 2020-21 में शुरू हुई यह योजना पूर्व में 2022-23 तक के लिए थी. लेकिन, इस समयावधि में मिली शानदार सफलता के कारण राज्य सरकार ने इसे 2025 तक के लिए बढ़ा दिया था. जैविक कॉरिडोर योजना के तहत खेती करने वाले किसानों को प्रथम वर्ष में 11,500 रुपये प्रति एकड़ अनुदान मिलता है. दूसरे और तीसरे वर्ष में मिलने वाला अनुदान 6500 रुपये प्रति एकड़ है. वहीं, कॉरिडोर में जैविक खेती को कलस्टर के रूप में बढ़ावा दिया जाता है. इससे बिहार कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली का बेहतर प्रबंधन, मिट्टी के स्वास्थ्य और गुणवत्ता का संरक्षण, हानिकारण पदार्थों का कृषि में इस्तेमाल से परहेज कर कृषि के नए तरीके पेश कर रहा है.
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