महाराष्ट्र में इसी महीने विधानसभा चुनाव है. चुनाव में खेती-किसानी का मुद्दा भी अहम है क्योंकि बहुत पहले से यहां प्याज, गन्ना और दूध का मसला उठता रहा है. अब इस कड़ी में एक नया मुद्दा जुड़ गया है जिसका नाम है सोयाबीन. महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है और किसान भविष्य के खर्च की प्लानिंग करके इसकी खेती करते हैं. लेकिन अंत में जब मंडियों में सही रेट न मिले तो उनके पूरे प्लान पर पानी फिर जाता है. महाराष्ट्र में ऐसी ही स्थिति है क्योंकि किसानों को सोयाबीन का सही रेट नहीं मिल रहा है जिससे उनमें नाराजगी है. लिहाजा, पार्टियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
सोयाबीन की खेती में लातूर का बड़ा नाम है. यहां के किसान शिवराज शिंदे 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहते हैं, इस बार बारिश तो अच्छी रही, लेकिन रेट अच्छा नहीं है. 39 साल के किसान शिंदे ने अपने कुल 45 एकड़ जमीन में से 30 एकड़ में सोयाबीन की खेती की है. इससे उन्हें 300 क्विंटल उपज मिली है. यानी प्रति एकड़ उन्हें 10 क्विंटल की पैदावार मिली है जो कि पिछले साल के 7 क्विंटल से अधिक है. अच्छी उपज के बावजूद शिंदे खुश नहीं हैं क्योंकि लातूर मंडी में सोयाबीन का बाजार भाव 4200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है. साल भर पहले यही भाव 4900 रुपये क्विंटल था. सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है.
शिंदे कहते हैं, दो साल पहले सोयाबीन का भाव 5800-5900 रुपये क्विंटल हुआ करता था, अगस्त 2021 में यह भाव तो 10,000 रुपये क्विंटल तक पहुंच गया था. इस भाव ने शिदे को खुश कर दिया और उन्होंने 2022 और 2023 की पूरी उपज को रोक कर रख ली. इस उम्मीद में कि आगे चलकर बढ़िया भाव मिलेगा. मगर मामला उलटा पड़ गया. कहां 8000 रुपये क्विंटल भाव मिलने की उम्मीद थी और कहां उन्हें मजबूरी में 4500 रुपये क्विंटल पर उपज बेचनी पड़ी. शिंदे कहते हैं, इस साल मैंने जरा भी उपज नहीं बेची है और उम्मीद करता हूं कि भाव अब और ज्यादा नहीं गिरेगा. साल 2020-21 के मुकाबले खाद्य तेलों के आयात शुल्क में भारी कटौती की वजह से सोयाबीन सहित अन्य तिलहन फसलों के दाम में भारी गिरावट देखी जा रही है.
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शिंदे अपने इलाकों के बाकी किसानों से बेहतर किसान हैं, जिन्होंने 15 एकड़ में गन्ना भी उगाया है और आने वाले सीजन में सोयाबीन की कीमत पर इसे 40 एकड़ तक बढ़ाने की योजना बना रहे हैं. वह ऐसा इसलिए कर सकते हैं क्योंकि उन्हें पास के तवारजा बांध और अपने खुद के बोरवेल से सिंचाई की सुविधा मिलती है. मंजारा सहकारी कारखाने को सप्लाई किए जाने वाले गन्ने में कीमत का आश्वासन मिलता है.
हालांकि, शिंदे की तरह दूसरे किसान महादेव पवार के लिए यह सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिन्होंने लातूर तालुका के रायवाड़ी में अपनी पूरी तरह से वर्षा आधारित 10 एकड़ जमीन पर सोयाबीन बोया है. उन्होंने उच्च उपज देने वाली KDS-753 किस्म से 126 क्विंटल फसल ली है, जो पिछले साल के 49 क्विंटल से अधिक है. “पिछले साल, मॉनसून खराब था. जुलाई में मेरी फसल अंकुरित नहीं हुई और मुझे अगस्त में MAUS-612 (एक अन्य किस्म) फिर से बोनी पड़ी, जिससे कम उपज हुई. इस साल, बारिश बहुत अच्छी हुई और मैं जून के मध्य तक KDS-753 किस्म बो सका. लेकिन अगर अच्छी फसल के लिए उचित मूल्य नहीं मिल पाता, तो बंपर फसल का क्या फायदा?”, पवार ने चुटकी लेते हुए कहा.
महाराष्ट्र के किसानों ने इस खरीफ सीजन में सोयाबीन के तहत 50.52 लाख हेक्टेयर (एलएच) क्षेत्र में बुवाई की. यह कपास (40.84 एलएच), गन्ना (11.67 एलएच) और सभी खाद्यान्न (50.12 एलएच) सहित किसी भी फसल से अधिक था. सोयाबीन उगाने वाले मुख्य जिले लातूर (4.99 एलएच), धाराशिव (4.53 एलएच), नांदेड़ (4.42 एलएच), बुलढाणा (4.41 एलएच), बीड (3.48 एलएच), वाशिम (2.99 एलएच), परभणी (2.80 एलएच), यवतमाल (2.72 एलएच), अमरावती (2.64 एलएच), हिंगोली (2.58 एलएच), अकोला (2.35 एलएच) और जालना (2.14 एलएच) हैं. ये 12 मराठवाड़ा और पश्चिमी विदर्भ जिले अकेले राज्य के 288 विधानसभा क्षेत्रों में से 67 को कवर करते हैं. ऐसे में समझना आसान है कि सोयाबीन का गिरता भाव पार्टियों की राजनीति को कैसे प्रभावित करने की क्षमता रखती है.
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श्रवण शिंदे ने कहा, "चुनाव (20 नवंबर) में सोयाबीन की कीमतें निश्चित रूप से हमारे लिए एक मुद्दा हैं." धाराशिव जिले के उमरगा तालुका के कासगी गांव के इस छह एकड़ के किसान ने लातूर एपीएमसी में 4,270 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 27 क्विंटल सोयाबीन बेचा. "मुझे यह कीमत 80 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद मिली और सोयाबीन में केवल 10 प्रतिशत नमी थी. अधिक नमी वाली फसल 4,000 रुपये या उससे कम में बिक रही है," शिंदे ने कहा, जिनके पास अभी भी 21 क्विंटल सोयाबीन है.
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