महाराष्ट्र सरकार ने जिस जोश के साथ साल 2023 में एक रुपये में फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी, उसे पिछले दिनों बंद करने का ऐलान कर दिया गया है. 1 रुपये की फसल बीमा योजना की जगह अब राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को लागू कर दिया गया है. अब किसानों को फसल बीमा में प्रतिशत के आधार पर प्रीमियम अदा करना होगा. कई लोगों का कहना था कि सरकार ने बोगस क्लेम और वित्तीय बोझ के चलते इस योजना को बंद करने का फैसला किया है. लेकिन इसे बंद करने की कुछ और वजहें भी हैं.
नए ऐलान के बाद किसानों को 1 रुपये की जगह अब खरीफ के लिए इंश्योर्ड अमाउंट का 2 प्रतिशत और रबी और नकद फसलों के लिए क्रमशः 1.5 फीसदी और 5 फीसदी प्रीमियम का भुगतान करना होगा. एक रुपये में फसल बीमा की शुरुआत महायुति सरकार में मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे ने की थी. अब सीएम देवेंद्र फडणवीस ने इसे बंद करने के अपने फैसले पर पिछले दिनों मुहर लगा दी.
मार्च 2023 में शिंदे सरकार ने महाराष्ट्र में पीएमएफबीवाई का एक वर्जन शुरू किया था. इस नए रूप ने साल 2016 में शुरू की गई केंद्रीय योजना में मिल रहे प्रीमियम में किसानों को और ज्यादा सब्सिडी मिलने लगी थी. असल में महाराष्ट्र में फसल बीमा को पूरी तरह से फ्री कर दिया गया, जिसमें प्रतीका के तौर पर एक रुपये को छोड़कर किसान के पूरे प्रीमियम का खर्च सरकार ही उठाती थी. किसानों को सरकार की तरफ से दी जाने वाली इस खास छूट का मकसद उन्हें राहत देना और गांवों तक बीमा की पहुंच को बढ़ाना था.
राज्य भर में फसल बीमा आवेदनों में भारी वृद्धि हुई और अधिकांश दावे फर्जी निकले. 2022 में, 1 रुपये वाली योजना शुरू होने से पहले, पीएमएफबीवाई के तहत 1.04 करोड़ आवेदन आए थे, जिनमें से कुछ यानी 11,731 फर्जी या अयोग्य पाए गए. 1 रुपये की योजना के बाद, 2023 में आवेदनों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई और आंकड़ा 2.42 करोड़ पर पहुंच गया. इनमें से जांच करने पर 3.80 लाख दावे बाद में फर्जी पाए गए. यह सिलसिला साल 2024 में भी जारी रहा और कृषि विभाग ने जनवरी 2025 तक 4 लाख से ज्यादा दावा आवेदनों को फर्जी या हेरफेर किए गए पाए जाने के बाद खारिज कर दिया.
कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) के जरिये से बड़ी संख्या में फर्जी आवेदन दायर किए गए थे. ये सर्विस सेंटर, ऐसे डिजिटल एक्सेस पॉइंट के तौर पर काम कर हैं जो लोगों को सरकारी-संबंधित आवेदन जमा करने में मदद करते हैं. सीएससी ऑपरेटर्स ने फर्जी नाम और लैंड डिटेल्स का प्रयोग किया. अक्सर भूमि मालिकों को इसकी जानकारी दिए बिना. फर्जी दावों की पहचान ने डेटा की सुरक्षा और योजना के तहत वैरीफिकेशन की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए.
साल 2024 की खरीफ फसल के समय तक योजना के गलत प्रयोग का पैमाना साफ हो गया. कृषि विभाग ने आवेदन के चरण में दावों का फिजिकल वैरीफिकेशन और क्रॉस-वैरीफिकेशन शुरू कर दिया. नीति प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए, एग्री कमिश्नर रावसाहेब भागडे के नेतृत्व में 25 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था. इसका काम धोखाधड़ी की सीमा का मूल्यांकन करना और सुधारात्मक कार्रवाई की सिफारिश करना था.
जनवरी 2024 में कृषि विभाग को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने कई सख्त उपायों की सिफारिश की.
सरकार ने कहा है कि इंश्योरेंस सिस्टम की अखंडता को बनाए रखने, सार्वजनिक धन की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि केवल वास्तविक और योग्य किसानों को ही लाभ मिले, इस योजना को खत्म करना आवश्यक था.
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