बिहार की राजधानी पटना इन दिनों सियासी सरगर्मियों से सराबोर है. वहीं , राजधानी का वीरचंद पटेल मार्ग, जो कभी महज ट्रैफिक के लिए जाना जाता था, आजकल वहां गाड़ियों की भीड़ ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक हलचलों की रफ्तार भी थमी हुई है. हर मोड़ पर चुनावी बिसात बिछी हुई है, और हर पार्टी के दफ्तरों में टिकट की दौड़ लगी हुई है. लेकिन सियासत केवल बड़े नेताओं तक सीमित नहीं है. बल्कि पटना की चाय दुकानों पर भी खासा राजनीतिक ‘चौपाल’ सज चुका है, जहां जातीय समीकरणों से लेकर विकास के वादों तक की चर्चा गरम है.
सुबह 8 बजे का वक्त था, वीरचंद पटेल मार्ग के किनारे एक चाय दुकान के बाहर 65 वर्षीय बुजुर्ग ने चाय की चुस्कियों के साथ गहरी राजनीतिक बात करते हुए कहा कि "नेता चाहे करोड़ों खर्च करे, जीत उसी की होगी जो जातीय समीकरण समझेगा क्योंकि बिहार में नेतागिरी बिना एक दूसरे जाति को बुरा भला कहे बिना नहीं चमकने वाली है.
वहीं, उनके बगल में खड़े 23 वर्षीय आलोक, मोबाइल पर सोशल मीडिया खोलकर बोले बिहार बदल रहा है. अबकी चुनाव विकास, स्वास्थ्य, नौकरी, रोजगार और उद्योग के मुद्दे पर होगा. यह केवल दो उम्रों की बात नहीं, बल्कि दो सोचों की सीधी टक्कर है. एक तरफ वर्षों की जमी हुई राजनीतिक समझ, तो दूसरी ओर युवा पीढ़ी की नई अपेक्षाएं.
राजधानी के राजनीतिक दफ्तरों में इन दिनों खासी चहल-पहल है. विधानसभा चुनाव को लेकर नेता पार्टी दफ्तरों के बाहर लंबी लाइन लगाए खड़े हैं. मानो ये कार्यालय नहीं, कोई परीक्षा केंद्र हो और 'एडमिट कार्ड' (चुनावी टिकट) मिलने की आस लिए सब इंतजार में हों. वहीं, वीरचंद्र पटेल मार्ग पर स्थिति सबसे अधिक दिलचस्प है, जहां प्रमुख दलों के कार्यालय मौजूद हैं. सामाजिक कार्यकर्ता सुदीप्त सिंह तंज कसते हैं "पहले नेता को पार्टी बुलाकर चुनाव लड़ने को कहती थी, अब नेता खुद टिकट के लिए लाइन में खड़े हैं, वो भी धनबल के साथ!"
"किसान तक" की टीम पटना के उन इलाकों में पहुंची जहां गांवों से रोज़ाना युवा सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए भिखना पहाड़ी, महेंद्रू और नया टोला जैसे मोहल्ले की ओर आते हैं. वहीं चाय की चुस्की के साथ विकास कुमार भट्ट, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, कहते हैं "सरकार वही अच्छी जो विकास की बात करे, योजनाएं बनाए और जनता की सुने. जिस दिन सरकार जनता की सुनना छोड़ दे तो उस राज्य की जनता को भी उस सरकार का हाथ छोड़ देना चाहिए.
वहीं चाय बना रहे अमित कुमार स्पष्ट कहते हैं कि "यहां कोई किसी का भला करने नहीं आता, सब अपने फायदे में लगे हैं. अपना कल्याण खुद ही करना होगा.
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