19 मार्च को केंद्र सरकार,पंजाब सरकार और किसान संगठनों के बीच चंडीगढ़ में सातवें दौर की बातचीत हुई. इसके तत्काल बाद पंजाब सरकार ने संगठन के प्रमुख किसान नेताओं जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवन सिंह पंधेर, अभिमन्यु कोहाड़, काका सिंह कोटडा और अन्य को हिरासत में ले लिया. मीटिंग के बाद जिस सौहार्दपूर्ण माहौल की बात कही जा रही थी. बातचीत के लिए अगला दौर 4 मई को रखने की बात कही गई थी. उससे इतर यह घटना बेहद चौंकाने वाली है. एकाएक किसान नेताओं को हिरासत में लेना क्या पंजाब की आप सरकारी सोची समझी चाल है या मुख्यमंत्री भगवंत मान ने लोगों के समर्थन के लिए एक दांव खेला है. या कहीं इसके पीछे अंदरखाने किसी तरह की कोई सेटिंग तो नहीं है...आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि इस घटनाक्रम के पीछे क्या कारण हो सकते हैं.
पंजाब सरकार का इस कदम के पीछे सीधे तौर पर जो मकसद दिखाई दे रहा है वो है रास्ता खोलना. चूंकि किसान संगठन पंजाब के खनौरी और शंभू बॉर्डर पर लंबे समय से बैठे हैं. इससे पंजाब का सीधे तौर पर दिल्ली से संपर्क पिछले एक साल से कटा है. व्यापार भी प्रभावित हो रहा है. आवागमन में दिक्कत आ रही है. व्यापारी लगातार सीएम भगवंत मान से अपील कर रहे हैं कि यातायात सुचारू किया जाए.
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सरकार ने इसी कारण की आड़ लेकर दोनों प्रदर्शन स्थलों को खाली कराने की रणनीति बनाई. इसी के लिए किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया. हालांकि सरकार की तरफ से इसे एहतियाती कदम बताया गया. इसका मतलब यह हो सकता है कि सरकार प्रदर्शन को कमजोर करने और नेतृत्व को हटाकर आंदोलन की गति को धीमा करने की कोशिश कर रही है. शीर्ष नेतृत्व को हिरासत में लेने से किसानों का संगठित विरोध कमजोर पड़ेगा और बॉर्डर खाली कराने में आसानी होगी.
जिस तरह से दिल्ली में आप की सरकार गई. खुद केजरीवाल तक चुनाव हार गए. अब उनके बड़े नेताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई दिखाई दे रही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि पंजाब की मान सरकार या केजरीवाल की तरफ से कोई गोपनीय समझौता किया गया हो. किसानों कि गिरफ्तारी का डेंट केंद्र की जगह आप सरकार उठाए. इसके बदले किसी तरह की रियायत उनके नेताओं को दी जाए. हालांकि यह बात दूर की कौड़ी हो सकती है. लेकिन सियासत में कुछ भी असंभव नहीं है. इस तरह के सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं.
मुख्यमंत्री भगवंत मान का बयान कि "विरोध प्रदर्शन व्यापारियों, व्यवसायियों, छात्रों और कर्मचारियों को असुविधा पहुंचा रहे हैं" और "पंजाब धरना-प्रदर्शन राज्य बनता जा रहा है" इससे सरकार की सोच साफ दिखाई देती है. हो सकता है सरकार पर जनता, व्यापारी समुदाय का दबाव बढ़ रहा हो. किसान नेताओं को हिरासत में लेकर सरकार यह संदेश देना चाहती हो सकती है कि वह राज्य में व्यवस्था बहाल करने के लिए सख्त कदम उठाने को तैयार है. यह कदम जनता के एक वर्ग को आश्वस्त करने का प्रयास भी हो सकता है.
AAP दिल्ली मे जिस तरह चुनाव हारी उसके बाद पार्टी का किसानों पर से भरोसा ही उठ गया है. AAP दिल्ली ग्रामीण की सभी सीटें हारी. इसके अलावा पंजाब के ग्रामीण इलाकों में भी AAP की मान सरकार लगातार अलोकप्रिय होती दिखाई दे रही है. ऐसे में किसी बड़े मुद्दे को पकड़कर लोगों को साथ जोड़ने से एक सुनियोजित कदम हो सकता है. पंजाब के लोगों को असुविधा हो रही है यह वजह बताकर वे एक तरह से शहरी तबके और व्यापारी वर्ग को अपने साथ जोड़ने में सफल हो सकते हैं. किसानों के खिलाफ पुलिस एक्शन की एक वजह लुधियाना वेस्ट सीट पर उपचुनाव भी हो सकता है. आम अदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हाल ही में लुधियाना का दौरा किया था. यहां की इंडस्ट्री और बिजनेस कम्युनिटी ने दोनों को स्पष्ट रूप से बताया था कि किस तरह से किसान आंदोलन और राजमार्गों की नाकेबंदी व्यापार और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है.कुछ साइट्स पर इस संबंध में खबरें भी चल रही हैं कि अरविंद केजरीवाल को लुधियाना के व्यापारियों से फीडबैक मिला था कि अगर किसानों का जमावड़ा नहीं हटा तो वे आम आदमी पार्टी को वोट नहीं देंगे, क्योंकि उनका कारोबार प्रभावित हो रहा है. दिल्ली गंवा चुके केजरीवाल पंजाब में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. इसीलिए यह त्वरित एक्शन हुआ.
पिछले दिनों मीटिंग में किसानों के साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान की जोरदार भिड़ंत हो गई थी. मान गुस्से में मीटिंग से बाहर निकल गए थे. उसके बाद से किसानों और सरकार के बीच एक तरह का वॉकयुद्ध ही शुरू हो गया था. किसान संगठन ने आप के मंत्री और विधायकों के घरों के सामने प्रदर्शन किया था. 26 मार्च को पंजाब विधानसभा का घेराव करने का भी आह्वान किया है. किसान यूनियन के राजिंदर सिंह ने तो कहा था कि मान ने जिस तरह से अपने घर बुलाकर किसानों को धमकाया है. उसी से नाराज होकर आज हम पूरे पंजाब में आप विधायकों के घरों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने साफ कहा था कि मान किसानों के प्रति अपनी भाषा को ठीक करें. इसे लेकर कहीं सरकार ने तय कर लिया हो कि किसानों को सबक सिखाया जाए. उन्हें राज्य सरकार की ताकत दिखा दी जाए.
भगवंत मान की सरकार पर केंद्र और विपक्षी दलों से भी दबाव हो सकता है, जो शंभू और खनौरी बॉर्डर पर लंबे समय से चले आ रहे गतिरोध को राज्य सरकार की नाकामी के रूप में पेश कर सकते हैं. किसान नेताओं की हिरासत इस बात का संकेत हो सकती है कि सरकार अपनी सख्त छवि बनाना चाहती है ताकि यह न लगे कि वह आंदोलन के आगे झुक रही है. यह कदम AAP की उस छवि को मजबूत करने की कोशिश हो सकता है, जिसमें वह जनता की परेशानियों को प्राथमिकता देती हुई दिखे.
किसान नेताओं जैसे जगजीत सिंह डल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर, अभिमन्यु कोहाड़ का आंदोलन में बड़ा प्रभाव है। इनकी गिरफ्तारी से आंदोलन का नेतृत्व कमजोर हो पड़ेगा, जिससे प्रदर्शनकारी बिखर सकते हैं. मोहाली के नए एयरपोर्ट चौक और चंडीगढ़ बॉर्डर जैसे रणनीतिक स्थानों से हिरासत में लिया जाना दर्शाता है कि पुलिस ने सुनियोजित तरीके से कार्रवाई की. यह सरकार की ओर से आंदोलन को नियंत्रित करने या खत्म करने की कोशिश का हिस्सा दिखाई दे रहा है.
पुलिस और सरकार को यह आशंका भी हो सकती है कि शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चल रहा प्रदर्शन उग्र रूप ले सकता है, खासकर अगर बॉर्डर खोलने की कोशिश के दौरान किसानों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव होता। नेताओं को हिरासत में लेकर सरकार ने पहले ही स्थिति को नियंत्रण में लेने की कोशिश की हो सकती है ताकि बड़े पैमाने पर हिंसा या अव्यवस्था से बचा जा सके। मोहाली-चंडीगढ़ बॉर्डर से तस्वीरें इस बात का संकेत देती हैं कि पुलिस पूरी तरह सतर्क है.
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कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसान नेताओं की गिरफ्तारी के पीछे सरकार की मुख्य वजह बॉर्डर खाली कराने की रणनीति दिख रही है. जिसके पीछे मान सरकार की अलोकप्रियता को कम करना. शहरी तबके का समर्थन हासिल करना. सख्त सरकार की छवि वापस पाना. केंद्र सरकार से किसी तरह की रियायत पाना. किसान आंदोलन कमजोर करना जैसी बातें दिखाई दे रही हैं. हालांकि यह कदम फौरी तौर पर तो प्रभावी दिख सकता है. लेकिन दीर्घ काल में इससे किसानों का असंतोष भड़केगा. सरकार को सख्ती के साथ-साथ बातचीत और समाधान की दिशा में भी कदम उठाने चाहिए. वरना यह टकराव बहुत कुछ हालिस करने की जगह बहुत कुछ खो देने की स्थिति ना ले आए.
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