संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और किसानों से जुड़े अन्य मसलों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत 26 जनवरी को देश के कई जिलों में ट्रैक्टर मार्च निकालकर किसान शक्ति प्रदर्शन करेंगे. इस बीच आज 11 जनवरी को एमएसपी कमेटी की बैठक हो रही है. सवाल यह है कि क्या नए किसान आंदोलन की आहट के बीच सरकार एमएसपी को लेकर कोई फैसला लेगी या फिर यह बैठक भी बेनतीजा ही खत्म हो जाएगी. एमएसपी कमेटी का गठन हुए आज 549 दिन हो गए हैं, यानी पूरे 18 महीने. इसके बावजूद अब यह कमेटी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. क्योंकि इसमें कुछ घोर किसान विरोधी भी घुसे हुए हैं.
कमेटी के कुछ सदस्य चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले रिपोर्ट सौंप दी जाए, ताकि सरकार उस पर फैसला ले. जिससे कि किसानों के गुस्से को शांत किया जा सके. ज्यादा से ज्यादा किसानों को एमएसपी का फायदा मिले. उनकी फसलों का लाभकारी मूल्य मिले. लेकिन, कुछ सदस्य ऐसे हैं जिनकी सोच यह है कि एमएसपी देने से देश बर्बाद हो जाएगा. किसानों को उचित दाम मिला तो कंज्यूमर का क्या होगा. ऐसे ही सदस्यों की वजह से यह कमेटी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है. जबकि किसान संगठनों की असली लड़ाई ही एमएसपी की गारंटी पर आकर अटकी हुई है. देखना यह है कि आज पूरे दिन के मंथन से कमेटी किसी नतीजे पर पहुंचेगी या नहीं.
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केंद्र सरकार कोरोना काल में 5 जून 2020 को कृषि सुधारों के नाम पर दो नए कृषि कानून और एक कानून में सुधार के लिए तीन कृषि अध्यादेश लेकर आई. तीन जून 2020 को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में अप्रूवल के बाद तीन नए कृषि कानून अध्यादेश के रूप में वजूद में आए. इसके खिलाफ किसानों ने करीब एक साल तक दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन किया. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर 19 नवंबर 2021 को तीनों कृषि कानून की वापसी की घोषणा कर दी.
तब उम्मीद की जा रही थी कि किसान दिल्ली की सीमा से अपने टेंट उठाएंगे और घर चले जाएंगे, लेकिन वे कानून वापसी के नोटिफिकेशन, एमएसपी की गारंटी और बिजली संशोधन विधेयक जैसे मुद्दों पर लिखित आश्चवासन मिलने का इंतजार कर रहे थे. सरकार ने इसके लिए एक पत्र निकाला. वह तारीख थी 9 दिसंबर 2021 की. तब किसान आंदोलन को 378 दिन हो चुके थे. पत्र मिलने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन स्थगित कर दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे और इसी पत्र के आधार पर 12 जुलाई 2022 को केंद्र सरकार ने एमएसपी को पारदर्शी बनाने, क्रॉप डायवर्सिफिकेशन और नेचुरल फार्मिंग के लिए एक कमेटी का गठन किया. तब से लगातार कमेटी की बैठकों का दौर चल रहा है. हालांकि, अब तक यह कमेटी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है कि किसानों को एमएसपी की गारंटी मिलेगी या नहीं. क्या फसलों का रिजर्व प्राइस फिक्स होगा या फिर जो जैसा है वैसा ही चलता रहेगा.
सूत्रों का कहना है कि कुछ सदस्य चाहते हैं कि एमएसपी का दायरा बढ़े ताकि पंजाब, हरियाणा, पश्विम उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे सूबों के अलावा दूसरे राज्यों के किसानों को भी फायदा मिले. जैसे पूर्वोत्तर भारत के किसान एमएसपी के फायदे से वंचित ही रहते हैं. बिहार, महाराष्ट्र और पूर्वी उत्तर प्रदेश को भी उतना फायदा नहीं मिलता जितना कि हरियाणा और पंजाब को मिलता है. सवाल यह है कि आखिर एमएसपी का अधिकतम फायदा इन्हीं दो सूबों के ही किसानों को क्यों मिले.
किसान संगठन बार-बार एमएसपी गारंटी की बात करते हैं. मतलब कि निजी क्षेत्र भी एमएसपी से कम दाम पर खरीद न करे. लेकिन कमेटी गठन का जो नोटिफिकेशन है उसमें एमएसपी गारंटी जैसी कोई बात नहीं की गई है. इसलिए कुछ किसान संगठन इस कमेटी को खारिज करते हैं. जबकि सच तो यह है कि इस कमेटी में कुछ लोग वाकई ऐसे हैं जो चाहते हैं कि कुछ ऐसा हो जाए कि किसानों को घाटा सहकर अपनी उपज न बेचनी पड़े.
दरअसल, कमेटी के नोटिफिकेशन में लिखा गया है कि "देश के किसानों के लिए एमएसपी मिलने की व्यवस्था और अधिक प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने के लिए यह कमेटी सुझाव देगी. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की व्यवहार्यता तथा और अधिक वैज्ञानिक बनाने के उपाय सुझाएगी. यह कमेटी कृषि मार्केटिंग सिस्टम को मजबूत करने की व्यवस्था करेगी, जिससे कि देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार किसान घरेलू और एक्सपोर्ट के अवसरों का लाभ उठाएं. साथ ही उनकी उपज की लाभकारी कीमत सुनिश्चित की जा सके."
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जो किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे उनका एक भी सदस्य इस कमेटी में शामिल नहीं है. संयुक्त किसान मोर्चा इस कमेटी का विरोध कर रहा है. उसका कहना है कि इसमें सरकार समर्थित लोग हैं. जबकि असली बात यह है कि आपसी लड़ाई में यह मोर्चा अपने तीन नाम नहीं तय पाया. सरकार ने एसकेएम से तीन प्रतिनिधियों के नाम मांगे थे. उनकी जगह अब भी खाली है. बहरहाल, सरकार ने जिन लोगों के नाम तय किए थे वही इस कमेटी को चला रहे हैं.
पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल इस कमेटी के अध्यक्ष हैं. उन्हीं के कार्यकाल में तीन कृषि कानून लाए गए थे. दिलचस्प बात यह है कि अग्रवाल कृषि पर काम करने वाले एक इंटरनेशनल संगठन ICRISAT के सहायक महानिदेशक के तौर पर भी काम कर रहे हैं और यही इस कमेटी को भी हेड कर रहे हैं.
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