
दलहन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के नारों के बीच जमीन हालात कुछ अलग ही दिखाई दे रहे हैं. पिछले एक साल में ही अरहर दाल के अधिकतम दाम में 79 रुपये प्रति किलो की रिकॉर्ड वृद्धि हो चुकी है. अन्य किसी भी कृषि उपज के दाम में इतना उछाल नहीं है. उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 8 जनवरी 2023 को अरहर दाल का अधिकतम दाम 130 रुपये किलो था. जबकि 8 जनवरी 2024 को इसका भाव बढ़कर 209 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है. यह न सिर्फ उपभोक्ताओं के लिए बल्कि सरकार के लिए भी बड़ी चिंता का सबब है. क्योंकि आम चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में इसकी बढ़ती महंगाई सत्ताधारी पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है. भारत में शाकाहारी लोगों के लिए दालें ही प्रोटीन की महत्वपूर्ण स्रोत हैं.
बहरहाल, अगर अरहर दाल के औसत दाम की बात करें तो भी पिछले एक साल में 41.3 रुपये की रिकॉर्ड वृद्धि हो चुकी है. उपभोक्ता मामले विभाग के अनुसार 8 जनवरी 2023 को अरहर दाल का औसत दाम 109.94 रुपये प्रति किलो रही. जबकि 8 जनवरी 2024 को इसका भाव 151.24 रुपये किलो पहुंच गया. दरअसल, दालों का दाम इसलिए इतनी तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसकी घरेलू डिमांड पूरी करने में हमें दूसरे देशों की मदद लेनी पड़ रही है. वर्तमान सरकार अपने ही कार्यकाल में अब दूसरी बार दलहल फसलों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का नारा लगा रही है. दरहसल, दलहन फसलों से किसानों का मोहभंग हो चुका है. ऐसा क्यों हुआ उसे समझे बिना हम दलहन आयात पर निर्भरता खत्म नहीं कर पाएंगे.
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मैं जिस अवधि की बात कर रहा हूं उसमें चना दाल का अधिकतम दाम 17 रुपये प्रति किलो बढ़ गया है. एक साल पहले चना दाल का भाव 119 रुपये किलो था जो अब बढ़कर 136 रुपये किलो हो चुका है. उड़द दाल के भाव में 31 रुपये किलो का इजाफा हुआ है. इस साल उड़द की दाल का दाम 175 रुपये किलो है जो पिछले साल 144 रुपये था. मूंग दाल के दाम में 50 रुपये किलो की वृद्धि हुई है. इस साल 180 रुपये किलो दाम है जबकि पिछले साल भाव 130 रुपये किलो था. मसूर दाल का रेट साल भर में 29 रुपये किलो बढ़ा है. पिछले साल 124 रुपये किलो का रेट था और इस साल मसूर की दाल 153 रुपये किलो तक पहुंच गई है.
ये तो रही दलहन के दाम में इजाफे की बात. अब थोड़ा मांग और आपूर्ति का गुणा भाग भी समझ लेते हैं. भारत दुनिया का लगभग 25 फीसदी दाल का उत्पादन करता है. इसके बावजूद बड़ा आयातक भी है. क्योंकि दुनिया के कुल दाल उत्पादन के 28 प्रतिशत दालों की खपत यहीं होती है. मांग और आपूर्ति में इस तीन प्रतिशत के गैप को भरने में ही आयात 30 लाख टन पहुंचने वाला है. इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत का दलहन उत्पादन बढ़ा है. लेकिन खपत बढ़ने की रफ्तार को यह वृद्धि पूरा नहीं कर पा रही.
अब सवाल यह आता है कि आखिर किसान इसकी खेती बढ़ाने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहे हैं. जवाब यह है कि उन्हें इसकी खेती के लिए सपोर्ट और अच्छा दाम नहीं मिल रहा. यूपी जैसे कई राज्यों में आवारा पशुओं की वजह से काफी किसान दलहन फसलों की खेती छोड़ चुके हैं तो कई सूबों में अच्छा दाम न मिलने की वजह से किसान इसकी खेती बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. जबकि दलहन फसलें धान, गेहूं के मुकाबले पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाती हैं. दलहन फसलें तो वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर उसे मिट्टी में फिक्स करने का काम करती हैं. जिससे जमीन की उर्वरता सुधारने में मदद मिलती है.
दलहन फसलों के उत्पादन में मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड और तमिलनाडु भारत के प्रमुख दलहन उत्पादक हैं. वर्तमान रबी सीजन यानी 2023-24 में दलहन फसलों का एरिया 2022-23 के मुकाबले 7.97 लाख हेक्टेयर कम है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 5 जनवरी 2023 तक देश में 148.18 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई हुई है. जबकि इस अवधि में 2024 के दौरान 156.15 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी. यही नहीं, 2023 के खरीफ सीजन में भी दलहन फसलों का एरिया 2022 के मुकाबले 5.41 लाख हेक्टेयर कम था. इससे आने वाले दिनों में दालों का दाम और बढ़ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं.
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भारत अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मोजांबिक, कनाडा, तंजानिया, म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से 16 हजार करोड़ रुपये से अधिक की दाल आयात कर रहा है. वित्त वर्ष 2020-21 में भारत ने कुल 24.66 लाख टन दाल का आयात किया, जो 2021-22 में 27 लाख टन हो गया. वित्त वर्ष 2023-24 में इसे 30 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमाान है.
जहां तक उत्पादन की बात है तो भारत में 2022-23 में दलहन फसलों का रिकॉर्ड 278.10 लाख टन उत्पादन किया, जो 2021-22 के मुकाबले 5.08 लाख टन अधिक था. भारत ने ताजा दाल संकट से निपटने के लिए 2027 तक दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए किसानों से उनकी 100 फीसदी दलहन उपज खरीदने को कहा है, पहले उत्पादन की सिर्फ 40 फीसदी दाल खरीदने का नियम था.
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