तो इन 3 वजहों से यूपी, हरियाणा और राजस्‍थान में बिगड़़ गया खेल, हार गई बीजेपी! 

तो इन 3 वजहों से यूपी, हरियाणा और राजस्‍थान में बिगड़़ गया खेल, हार गई बीजेपी! 

  2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को काफी निराश किया है. बीजेपी को यूं तो इस बार 370 सीटों की उम्‍मीद थी लेकिन वह बहुमत तक जुटा न सकी और सिर्फ 240 पर ही सिमट गई. अब पार्टी के एक आंतरिक मूल्‍यांकन में सामने आया है कि उत्‍तर प्रदेश (यूपी), हरियाणा और राजस्‍थान में उसके खराब प्रदर्शन का क्‍या कारण हो सकता है. इन राज्‍यों में बीजेपी की सीटों में कमी आने के पीछे जाट, दलित और मुस्लिम वोटों के एकजुट होने और उम्मीदवारों के चयन समेत खराब चुनाव प्रबंधन को जिम्मेदार माना गया है.

Advertisement
तो इन 3 वजहों से यूपी, हरियाणा और राजस्‍थान में बिगड़़ गया खेल, हार गई बीजेपी! तीन राज्‍यों में बीजेपी को हुआ 45 सीटों का नुकसान

2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को काफी निराश किया है. बीजेपी को यूं तो इस बार 370 सीटों की उम्‍मीद थी लेकिन वह बहुमत तक जुटा न सकी और सिर्फ 240 पर ही सिमट गई. अब पार्टी के एक आंतरिक मूल्‍यांकन में सामने आया है कि उत्‍तर प्रदेश (यूपी), हरियाणा और राजस्‍थान में उसके खराब प्रदर्शन का क्‍या कारण हो सकता है. इन राज्‍यों में बीजेपी की सीटों में कमी आने के पीछे जाट, दलित और मुस्लिम वोटों के एकजुट होने और उम्मीदवारों के चयन समेत खराब चुनाव प्रबंधन को जिम्मेदार माना गया है. हालांकि बीजेपी ने अभी तक आधिकारिक तौर पर अपनी चुनाव समीक्षा प्रक्रिया शुरू नहीं की है.

कैसे हुआ 45 सीटों का नुकसान  

अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि केंद्रीय नेतृत्व को निष्कर्ष भेजे जाने से पहले कई स्तरों पर पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा और मूल्यांकन की जाएगी. इसमें कई महीनों का समय लग सकता है. अखबार ने कई सीनियर बीजेपी लीडर्स और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि लोकसभा चुनाव परिणामों के बीजेपी के शुरुआती मूल्यांकन में, यूपी में जमीन खोने के 3 संभावित कारण माने गए हैं. इन नेताओं ने कहा है कि कि बेरोजगारी और महंगाई के साथ ऊपर बताए गए तीन कारणों ने इन तीन राज्यों में पार्टी को 45 सीटों का नुकसान पहुंचाया. इस खराब प्रदर्शन की वजह से बीजेपी ने लोकसभा में अपना बहुमत गंवा दिया. 543 सदस्यों वाली लोकसभा में बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा जरूरी रहता है और उसमें बीजेपी की 32 सीटें कम रह गईं. 

यह भी पढ़ें-जो अहंकारी हो गए थे, उन्हें भगवान राम ने 241 पर रोक दिया...बीजेपी पर आरएसएस नेता का तंज  

कार्यकर्ताओं को किया नजरअंदाज! 

बीजेपी ने  साल 2019 में उत्तर प्रदेश में 62 सीटें जीतीं और इस बार वह राज्य में 33 सीटों पर ही सिमट गई. जबकि राजस्थान में उसे 25 में से 14 सीटें मिलीं तो हरियाणा में उसकी सीटें 10 से घटकर पांच ही रह गईं. बीजेपी के पदाधिकारियों की मानें एक ने कहा कि केंद्रीय और राज्य-स्तरीय नेतृत्व को भरोसा था कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या का उत्साह और पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पार्टी के सामने आने वाले हर सकंट को दूर कर देगी. राजस्थान के एक बीजेपी नेता के हवाले से अखबार ने लिखा कि इस वजह से पार्टी ने उम्मीदवारों को चुनते समय जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया.

यह भी पढ़ें-किसान आंदोलनों की 'कसौटी' पर कसा है 'शिव' राज! किस्‍मत में फिर कक्‍का जी से 'टकराव' ?

पार्टी से नाराज जाट?   

बीजेपी नेताओं ने कहा कि साल 2020-21 के किसान आंदोलन और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन से सरकार के निपटने के तरीके ने जाटों में नाराजगी और असंतोष था. पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि उनमें कांग्रेस के लिए कोई प्यार नहीं था बस वो बीजेपी के खिलाफ वोट करना चाहते थे. ऐसे में राजस्थान और हरियाणा में कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प नजर आई. इस बार बीजेपी के खिलाफ समुदाय की भावनाओं के कारण पार्टी को कई जाट-बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. हरियाणा में, बीजेपी अंबाला, सिरसा, हिसार, सोनीपत और रोहतक जैसी जाट-बहुल सीटों पर हार गई. 

यह भी पढ़ें-चुनावों में चुकाई प्‍याज के किसानों की नाराजगी की कीमत...महाराष्‍ट्र के डिप्‍टी सीएम अजीत पवार ने माना सच 

आरक्षित सीटों पर खराब प्रदर्शन 

देश भर में अनुसूचित जाति (एससी)-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भी पार्टी को झटका लगा. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से बीजेपी की संख्या 46 से घटकर 30 रह गई, जबकि पिछली बार सिर्फ छह सीटें जीतने वाली कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं. अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी की संख्या 31 से घटकर 25 रह गई, जबकि कांग्रेस की संख्या चार से बढ़कर 12 हो गई. बीजेपी नेताओं ने माना कि संविधान को खतरे के नाम पर विपक्ष के अभियान ने पार्टी के खिलाफ काम किया.  

खराब चुनावी मैनेजमेंट  

कुछ बीजेपी नेताओं के अनुसार, उत्साही कार्यकर्ताओं की कमी भी खराब प्रदर्शन का एक और कारण थी.  कई राज्यों में कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी थी जिसके कारण बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत कम रहा. नेताओं का अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में वोटों में 18 फीसदी की गिरावट आई है और इसका सीधा असर बीजेपी पर पड़ा है.  यूपी में पार्टी के एक गुट ने राज्य प्रशासन से सहयोग की कमी को दोषी ठहराया. जबकि कुछ और ने कहा कि पार्टी ने उम्मीदवारों का चयन गलत किया. 

यह भी पढ़ें-शपथ लेते ही पूरी हुई चंद्रबाबू नायडू की प्रतिज्ञा, चौथी बार बने आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री 

तीनों राज्यों में चयन प्रक्रिया की आलोचना हुई.  हरियाणा में बाकी दलों के नेताओं को शामिल करने और उन्हें मैदान में उतारने के फैसले ने कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया. सिरसा में बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल की जगह अशोक तंवर को मैदान में उतारा, जो आम आदमी पार्टी (आप) से आए थे. जबकि रणजीत सिंह चौटाला जो मार्च में पार्टी में शामिल हुए थे, उन्हें हिसार से मैदान में उतारा गया. दिलचस्‍प बात है कि ये दोनों ही चुनाव हार गए. 

 

POST A COMMENT