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Wheat Crop: नमी की कमी से इस साल घट जाएगी गेहूं की पैदावार? क्या कहती है ये विदेशी रिपोर्ट?

Wheat Crop: नमी की कमी से इस साल घट जाएगी गेहूं की पैदावार? क्या कहती है ये विदेशी रिपोर्ट?

मिट्टी में कम नमी और बारिश की कमी के कारण किसान चने और ज्वार जैसी कम पानी की फसलों की तरफ रुख करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इससे गेहूं जैसी फसल की पैदावार कम होने की आशंका बढ़ गई है. हालांकि सरकार का दावा है कि इस बार गेहूं का उत्पादन बंपर होने जा रहा है.

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गेहूं का उत्पादन गेहूं का उत्पादन

देश में एक बार फिर गेहूं की पैदावार में कमी आने की आशंका व्यक्त की जा रही है. कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत में वर्ष 2024-25 में गेहूं के उत्पादन में कमी आ सकती है. इसके कारण गेहूं की घरेलू कीमतें ऊंची बनी रहेंगी. इतना ही नहीं सरकार पर मौजूदा निर्यात प्रतिबंध को बढ़ाने का दबाव भी बढ़ेगा. गेहूं का उत्पादन बढ़ाने को लेकर तमाम तरह के उपाय किए जा रहे हैं पर आंशिक रूप से अल नीनो का प्रभाव गेहूं की खेती के लिए विलेन साबित होता दिख रहा है. उत्पादन कम होने के पीछे यह वजह बताई जा रही है कि मिट्टी में इस बार नमी की कमी है क्योंकि अल नीनो के प्रभाव से इस बार मॉनसून में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है. 

मिट्टी में कम नमी और बारिश की कमी के कारण किसान चने और ज्वार जैसी कम पानी की फसलों की खेती की तरफ रुख करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. गौरतलब है कि भारत गेहूं उत्पादन में दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है. पर यह पहले से कम आपूर्ति की से जूझ रहा है. Gro Intelligence की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान गेहूं के निर्यात में बड़ा उछाल आया है. इसके कारण देश में गेहूं का स्टॉक पिछले 15 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर है. 

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गेहूं के उत्पादन में आएगी कमी

राज्य के गेहूं उत्पादक क्षेत्रों के लिए जारी ग्रो के क्लाइमेट रिस्क नेविगेटर फॉर एग्रीकल्चर के अनुसार, देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में, मिट्टी की नमी कम हुई है जो 2010 के बाद से सबसे निचले स्तर पर है. ग्रो डिस्पले में यह भी दिखाया गया है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित अन्य गेहूं उत्पादक राज्यों को भी जून-सितंबर मॉनसून के दौरान अनियमित वर्षा का सामना करना पड़ा. इसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ने का आशंका जताई जा रही है. इस बीच चिंता की बात यह है कि वर्तमान में एक और अल-नीनो भारत में मंजबूत हो रहा है जो गेहूं की फसल के लिए एक और खराब मौसम ला सकता है. यह ज्यादा घातक इसलिए है क्योंकि यह मार्च तक रहेगा जब गेहूं की फसल का विकास होता है. भारत में गेहूं की फसल अक्टूबर और नवंबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है.

2015-17 में खराब हुई थी गेहूं की खेती

इससे पहले जब अल नीनो का प्रभाव भारत में पड़ा था, उस वक्त तापमान में बढ़ोतरी हुई थी. इसके कारण वर्ष 2015-16 और 2016-17 में गेहूं की पैदावार प्रभावित हुई थी. इसके कारण गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार को कई कदम उठाने पड़े थे. बता दें कि गेहूं की पैदावार अगर देश में कम होती है तो इसके कारण भारत की घरेलू खाद्य मूल्य महंगाई बढ़ सकती है, जो 2021 से बढ़ रही है. भारत ने कीमतों पर लगाम लगाने के प्रयास में पिछले साल गेहूं, गेहूं के आटे और चीनी के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था. इसके अलावा जुलाई में, इसने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया.

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बढ़ाई गई गेहूं और दाल की एमएसपी

हालांकि सरकार की तरफ से किए गए इन प्रयासों ने देश में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए बहुत काम किया है. इस बीच घरेलू गेहू की आपूर्ति भी कम हुई है. भारत सरकार ने हाल ही में किसानों को दोनों फसलें बोने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास में 2024-25 फसल वर्ष के लिए गेहूं और दाल के लिए अपना न्यूनतम समर्थन मूल्य 7 फीसदी से अधिक बढ़ा दिया है.