सिंघाड़े की खेती से छह महीने में 1.5 लाख की कमाई करते हैं बिंदेश्वर रावत, 100 क्विंटल तक लेते हैं पैदावार

सिंघाड़े की खेती से छह महीने में 1.5 लाख की कमाई करते हैं बिंदेश्वर रावत, 100 क्विंटल तक लेते हैं पैदावार

बिहार के मधुबनी जिले के किसान बिंदेश्वर रावत भी एक ऐसे किसान हैं जो सिंघाड़े की खेती के जरिए सफलता की कहानी लिख रहे हैं. वह मधबनी के बलियारी गांव के रहने वाले हैं जो कृषि विज्ञान केंद्र मधुबनी सुखेत के पास है. यह इलाका बाढ़ प्रभावित इलाका है. इसकी गिनती बिहार के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में होती है.

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सिंघाड़े की खेती से छह महीने में 1.5 लाख की कमाई करते हैं बिंदेश्वर रावत, 100 क्विंटल तक लेते हैं पैदावारसिंघाड़े की खेती (सांकेतिक तस्वीर)

सिंघाड़े की खेती किसानों के लिए काफी फायदे का सौदा होती है. कम लागत में इस खेती में किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. यह एक जलीय फसल है और कच्चे फसल के रूप में इसकी खेती की जाती है. इसकी खेती झील, तालाब के अलावा उन जगहों पर की जा सकती है जहां पर तीन फीट तक पानी का भराव होता है. तीन फीट तक जलभराव वाली जगह में आराम से सिंघाड़े की खेती की जा सकती है. यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है. पर्व त्योहार में इसके आटे का प्रयोग किया जाता है. इसके ताजे और हरे फलों के छिलके से सब्जी भी बनाई जाती है. इसके कई फायदे हैं. यही कारण है कि कई किसान इसकी खेती के जरिए सफलता की कहानी लिख रहे हैं.

बिहार के मधुबनी जिले के किसान बिंदेश्वर रावत भी एक ऐसे किसान हैं जो सिंघाड़े की खेती के जरिए सफलता की कहानी लिख रहे हैं. वह मधुबनी के बलियारी गांव के रहने वाले हैं जो कृषि विज्ञान केंद्र मधुबनी सुखेत के पास है. यह इलाका बाढ़ प्रभावित इलाका है. इसकी गिनती बिहार के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में होती है. बाढ़ के कारण इसके कई इलाकों में छह महीने तक जलभराव की स्थिति बनी रहती है. इसके कारण यहां पर सब्जियों और फसलों की खेती करना आसान नहीं होता है. अधिकांश समय तक जमीन पानी में डूबी रहती है. इसलिए यहां पर सिंघाड़े की खेती की तरफ किसान बढ़ रहे हैं.

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केवीके के वैज्ञानिकों से मिलती है सलाह

सिघाड़े की खेती की आधुनिक जानकारी हासिल करने के लिए बिंदेश्वर रावत लगातार कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के साथ संपर्क में रहते हैं. नई तकनीकों को सीखने बाद इसे वो अपनी खेती में अपनाते हैं और अच्छा उत्पादन भी हासिल करते हैं. बिंदेश्वर बताते हैं कि इलाके में जलभराव की समस्या होने के कारण उन्होंन सिंघाड़े की खेती की शुरुआत की. सिंघाड़े की दो प्रकार की प्रजातियां होती हैं. एक कांटे वाली और एक बिना कांटे वाली प्रजाति होती है. अधिकांश किसान खेती करने के लिए बिना कांटे वाली प्रजाति का चयन करते हैं क्योंकि कांटेदार प्रजातियों की तुड़ाई के दौरान काफी परेशानियों का  सामना करना पड़ता है. 

जनवरी महीने में तैयार होती है नर्सरी

बिंदेश्वर बताते हैं कि सिंघाड़े की खेती के लिए जनवरी महीने में नर्सरी तैयार की जाती है. इसके बाद एक मीटर लंबे बेल की रोपाई तालाब में जून-जुलाई के महीने में की जाती है. नर्सरी तैयार करते समय एक बात ध्यान रखना होता है कि फलों को जनवरी महीने में भिगोकर रखें और अंकुरण के पहले इन्हें फरवरी के महीने में ताराब में डाल दें. ध्यान रखें कि इसमें 2-3 फीट पानी बना रहे. फिर इसकी रोपाई जून-जुलाई में मॉनसून के समय करें. बिंदेश्वर रावत बताते हैं कि जब जनवरी फरवरी के महीने में खेत सूख जाते हैं उस वक्त खेत में वो उड़द और मूंग की बुवाई करते हैं. 

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सिंघाड़े की खेती से कमाई

बिदेश्वर रावत ने बताया कि सिंघाड़े की फसल में एक हेक्टेयर तालाब में लगभग 10 से 100 क्विंटल तक सिंघाड़े का उत्पादन होता है. छह से सात महीने में इसकी प्राकृतिक खेती से शुद्ध मुनाफा लगभग 1.5 लाख रुपये तक होता है. सूखे तालाब में दलहन फसल की खेती करने से ऊपर से नाइट्रोजन देने की जरूरत नहीं होती है. उन्होंने बताया कि अच्छी उपज पाने के लिए सुखेत मॉडल का वर्मी कंपोस्ट 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से डालते हैं और लगातार केवीके के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहते हैं.
 

 

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