जैतून की खेती से भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. राजस्थान के पिलानी में रहने वाले किसान मुकेश मंजू ने इसे साबित करके दिखाया है. मुकेश अपने खेत में जैतून की जैविक खेती करते हैं और देश की कई बड़ी कंपनियों को जैतून की पत्तियां, छाल और तेल बेचते हैं. इससे उन्हें अच्छी कमाई होती है. पूर्व एनएसजी कमांडो मुकेश मंजू को जैतून की खेती की खेती के बारे में उनके पिता ने बताया. उनके पिता ने 2014 में अखबार में छपी रिपोर्ट पढ़ी जिसमें जैतून की खेती के बारे में जानकारी दी गई थी. राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों को सस्ती दरों पर जैतून के पौधे उपलब्ध कराने के लिए इजरायल सरकार का सहयोग लेती है.
जब राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) में कमांडो के तौर पर कार्यरत मुकेश छुट्टियों में घर आए तो उनके पिता ने उन्हें जैतून की खेती के बारे में बताया. हालांकि मुकेश को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने इसके फायदे के बारे में जानने के लिए लूनकरनसर, बीकानेर में राजस्थान जैतून खेती लिमिटेड (आरओसीएल) फार्म का दौरा किया. मुकेश बताते हैं कि जब उन्होंने फार्म का दौरा किया तब उन्होंने वहां पर चार-पांच जैतून के पेड़ देखे जो बहुत मजबूत थे और राजस्थान की गर्म जलवायु में भी जीवित रह सकते थे. इसके बाद मुकेश में फार्म शुरू करने का फैसला किया और फिर अपने 20 एकड़ के फार्म में से 2 एकड़ में जैतून के 450 पेड़ लगाए.
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एक रिपोर्ट के अमुसार, जैतून के पेड़ लगाने में उन्हें सरकारी की सब्सिडी का लाभ मिला. जैतून के प्रत्येक पौधे की लागत 225 रुपये थी जिसमें से उन्हें 125 रुपये का भुगतान करना पड़ा. उन्होंने चार किस्मों के जैतून खरीदे. बार्निया, अर्बेक्विना, कॉर्टिना और कोरोनिकी. मुकेश बताते हैं कि चार किस्मों की खेती करने से परागण में मदद मिलती है और उत्पादन अच्छा होता है. आगे उन्होंने बताया कि अब उनके पेड़ 10 वर्ष के हो चुके हैं. हालांकि चौथे साल में ही जैतून के पेड़ों ने फल देना शुरू कर दिया था. मुकेश ने इसके बाद पूरी तरह से अपने फार्म पर ध्यान देने के लिए एनएसजी की सेवाओं से वीआरएस ले लिया.
मुकेश बताते हैं कि जैतून के फल, पत्ते और छाल से भी कमाई करते हैं और फिर इसका तेल भी बेचते हैं. अगस्त महीने में पत्ते की कटाई की जाती है. सितंबर महीने में इसकी छंटाई की जाती है. जैतून की ताजी पत्तियों को चाय कंपनियां 60 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से जबकि सूखी पत्तियों को 200 किलोग्राम की दर से खरीदती हैं. वहीं सूखी छाल को 1000 रुपये प्रति किलोग्राम और ताजा छाल को 500 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचते हैं. जैतून के पत्ते में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है और जैतून की चाय को ग्रीन टी का बेहतर विकल्प माना जाता है. छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है.
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उन्होंने बताया कि एक पेड़ से एक साल में 1000 रुपये की कमाई होती है. पिछले साल मुकेश के मंजू फार्म्स में 8000 किलोग्राम जैतून का उत्पादन किया गया था. वे ताजा जैविक जैतून के फलों को दिल्ली और चंडीगढ़ के कई बड़े होटलों में बेचते हैं. इसके अलावा बचे हुए जैतून का तेल निकालते हैं. तेल निकालने के लिए वो जैतून के प्रोसेसिंग यूनिट में भेज देते हैं. वे कई कॉस्मेटिक्स और खाद्य कंपनियों को जैतून का तेल बेचते हैं. उन्हें 1300 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से दाम मिलते हैं. जबकि खुदरा ग्राहक 1500 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीदते हैं. आज मुकेश बताते हैं कि लागत घटाने के बाद उन्हें प्रतिवर्ष शुद्ध मुनाफा 14 लाख रुपये का होता है.
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