आलू की खेती हमेशा से ही किसानों के लिए फायदे का सौदा रही है. क्योंकि पूरे साल इसकी मांग बनी रहती है. पर हाल के वर्षों में देखा गया है कि ऑफ सीजन में आलू की कीमतों में भी काफी बढ़ोतरी हो जा रही है. इससे किसानों को अधिक फायदा हो रहा है. स्टोरेज की सुविधा होने के कारण किसान लंबे समय तक आलू का भंडारण कर पा रहे हैं और अधिक दाम मिलने पर इसे बेच रहे हैं. इसका फायदा किसानों को हो रहा है. आलू की खेती में हो रहे फायदे को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक भी लगातार इसकी उन्नत किस्मों को विकसित करने में लगे हुए हैं. नई-नई आलू की किस्में विकसित की जा रही है जो पहले से बेहतर पैदावार दे रही है.
इसी क्रम में ICAR शिमला ने आलू की तीन नई किस्मों को जारी किया है. आलू की यह तीनों किस्में अधिक उपज देने वाली किस्में हैं. इसलिए इनकी खेती करके किसान अपनी कमाई को अधिक बढ़ा सकते हैं. भारत में आलू की खेती की महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चावल गेहूं और गन्ना के बाद सबसे अधिक क्षेत्रफल में आलू की ही खेती की जाती है. आलू की यह तीन वैरायटी देश के अलग-अलग राज्यों में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है. इनका स्वाद रंग और आकार भी अलग-अलग है. इसकी खेती से किसानों को फायदा होने वाला है.
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कुफरी चिप्सोना नाम की आलू की यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार इस किस्म को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है. इन राज्यों के किसान इस आलू की खेती कर सकते हैं. यह सफेद आलू की किस्म का रंग सफेद होता है. यह क्रीमयुक्त होता है. इसका आकार अंडाकार होता है. इस किस्म का भंडारण लंबे समय कर के लिए किया जा सकता है. इस आलू के तैयार होने की अवधि 90-100 दिनों की होती है. चिप्स बनाने के लिए यह आलू सबसे बेहतर मानी जाती है. इसकी उपज क्षमता 35 टन प्रति हेक्टेयर है. यह पछेती तुषार रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखता है.
आलू की यह किस्म गहरे बैंगनी रंग का होता है. जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है. इसका आकार आयताकार होता है. आलू की यह किस्म 90-100 दिनों के अंदर परिपक्व हो जाती है. आलू की यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसकी पैदावार 32-35 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है. आलू की यह किस्म खाने के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है. इसका भंडारण करना आसान होता है और इस किस्म के बाजार में अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है. इसमें काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के किसान इस किस्म की खेती कर सकते हैं.
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कुफरी भास्कर आलू की यह किस्म कम अवधि वाली किस्म है. यह 85-90 दिन में परिपक्व हो जाती है. इसका उत्पादन 30-35 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है. आलू की इस किस्म का भंडारण लंबे समय तक किया जा सकता है. इसका रंग सफेद क्रीम की तरह होता है. इसका आकार अंडाकार होता है. आलू की इस किस्म की खासियत यह है कि यह अधिक गर्मी सहन करने वाली किस्म है. जिससे यह माइट और हॉपर बर्न के प्रति सहनशील है. आलू की इस किस्म को भी लंबे समय तक के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है.
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