Rural Livelihood : सरकारी योजनाओं से मिल रहे काम की वजह से थमने लगा गांवों का पलायन

Rural Livelihood : सरकारी योजनाओं से मिल रहे काम की वजह से थमने लगा गांवों का पलायन

लगातार लागत बढ़ने से खेती लाभप्रद नहीं रह गई थी. इस कारण काम की तलाश में गांवों से शहरों की तरफ पलायन की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए खेती को मुनाफे का सौदा बनाने और गांव में ही स्वरोजगार के साधन मुहैया कराने वाली Govt Schemes का असर अब दिखने लगा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक Rural Youth का अब शहर जाने का सिलसिला थमने लगा है.

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Rural Livelihood : सरकारी योजनाओं से मिल रहे काम की वजह से थमने लगा गांवों का पलायनपशुपालन और डेयरी सहित अन्य क्षेत्रों में युवाओं को मिलने लगा गांव में ही काम (फाइल फोटाे)

सरकार ने Rural Development के अंतर्गत गांव में ही युवाओं को काम के अवसर मुहैया कराने वाली तमाम योजनाएं शुरू की हैं. इनमें केंद्र सरकार के स्तर पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) और राज्य सरकारों द्वारा State Rural Livelihood Mission (SRLM) के तहत महिलाओं के स्वयं सहायता समूह (SHGs) से लेकर किसानों को FPO बनाकर खेती करने और कृष‍ि उत्पादों का प्रसंस्करण करने सहित तमाम तरह के उद्यम शुरू कराए जा रहे हैं. सरकारी सहायता से गांवों में संचालित हो रहे मध्यम और लघु एवं कुटीर उद्योगों में गांव के युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिलने लगे हैं. ग्रामीण विकास से जुड़े तथ्यों एवं आंकड़ों का अध्ययन करने वाली सरकारी एजेंसी Development Intelligence Unit (DIU)की एक रिपोर्ट में यह बात उजागर हुई है. 'ग्रामीण युवा रोजगार रिपोर्ट 2024' के मुताबिक गांव के युवा अब शहरों में जाने के बजाए अपने गांव के आसपास ही काम करने के ज्यादा इच्छुक हैं.

महिलाएं चाहती हैं गांव में ही काम

इस रिपोर्ट में पिछले 10 सालों के दौरान ग्रामीण विकास और आजीविका मिशन के प्रभावों के अध्ययन पर आधारित तथ्य जुटाए गए हैं. इसके अनुसार गांव के युवा पुरुष और महिलाएं रोजगार की तलाश में शहर जाने के बजाए अपने गांव के आसपास ही काम करना चाहते हैं.

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अध्ययन में एक और रोचक बात यह भी सामने आई है कि Highly Qualified लोगों से इतर, सामान्य शिक्षा प्राप्त युवा गांव से पलायन करने पर जब शहरों में जा रहे हैं तो उन्हें कारखानों में मजदूर और गार्ड जैसी नौकरियां ही मिलती हैं. गांव से पलायन करने वाले ऐसे युवा अपने वर्तमान काम से कतई खुश नहीं हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण रोजगार की स्थिति में सुधार आने के कारण शहरों में काम कर रहे 70 से 85 फीसदी कामगार अपना काम बदलने पर विचार कर रहे हैं. नौकरी या करियर में बदलाव के बारे में सोच रहे युवाओं ने Small manufacturing business से लेकर खुदरा या अन्य व्यापारिक उद्यम शुरू करने में रुचि दिखाई है.

रोजगार में महिलाएं भी आगे

रिपोर्ट के अनुसार छोटे कस्बों और गांव की श‍िक्ष‍ित महिलाओं की पहली पसंद Teaching है. इसके तहत महिलाएं अपने गांव या कस्बे के स्कूलों में ही वेतन भोगी शिक्षक बनने को प्राथमिकता दे रही हैं. छोटे शहरों और कस्बों की श‍िक्ष‍ित महिलाओं की दूसरी प्राथमिकता डाटा एंट्री, क्लर्क या मार्केटिंग और बिक्री के क्षेत्र में नौकरी करने की है.

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश वाली महिलाओं के लिए एनआरएलएम और एसआरएलएम में SHGs से जुड़कर काम करने के भरपूर अवसर मिलने लगे हैं. इनमें डेयरी और पशुपालन से लेकर बीज बनाने और Food Processing सहित अन्य कामों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. ग्रामीण महिलाओं के लिए ही शुरू की गई बैकिंग सखी, लखपति दीदी और ड्रोन दीदी जैसी सरकारी योजनाओं ने ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वरोजगार और लघु एवं कुटीर उद्योग शुरू करने का मार्ग प्रशस्त किया है.

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राह में बाधाएं भी हैं

DIU की इस Study Report के लिए 21 राज्यों से रोजगार की उपलब्धता को लेकर आंकड़े जुटाए गए. इनके आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार युवाओं को गावं को स्वरोजगार के अवसरों की उपलब्धता तो बढ़ी है, मगर इस राह में कुछ बाधाएं अभी भी बरकरार हैं. इनमें सबसे बड़ी बाधा सरकारी तंत्र में कामकाज के रवैये को लेकर है.

युवाओं को रोजगार एवं स्वरोजगार मुहैया कराने वाली सभी सरकारी योजनाएं बहुत अच्छी हैं. इनके शुरूआती बेहतर परिणामों के आधार पर ही युवाओं ने इनकी तरफ अपना रुझान बढ़ाया है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ लक्ष‍ित वर्गों तक पहुंचने में सरकारी बाबुओं का उदासीन रवैया और लालफीताशाही के कारण बेहतर योजनाओं की मदद से जो युवा अपना उद्यम शुरू करना चाहते हैं, उन्हें वित्तीय सहायता पाने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

युवाओं की शिकायत है कि वित्तीय सहायता पाने में समान अवसर अभी भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इतना ही नहीं, 3 में से 1 युवा ने स्वीकार किया कि अभी भी गांवों में रोजगार पाने के सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं हैं.

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