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लेमनग्रास की खेती से होती है अच्छी कमाई, जानें इसकी छह उन्नत किस्में और विशेषताएं

लेमनग्रास की खेती से होती है अच्छी कमाई, जानें इसकी छह उन्नत किस्में और विशेषताएं

बदलते जलवायु और कम होते सिंचाई संसाधनों के बीच लेमनग्रास की खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है और इसके लिए अधिक पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. लेमनग्रास की खेती में किसानों को काफी मुनाफा होता है. इसके तेल की बहुत मांग होती है.

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लेमन ग्रास की खेती लेमन ग्रास की खेती

लेमनग्रास एक सुगंधित घास होती है. इसकी खेती पूरे साल की जाती है. स्थानीय भाषा में लोग इसे नींबू घास के नाम से भी जानते हैं. इस घास की मांग इसलिए बढ़ी है क्योंकि इससे तेल निकाला जाता है जो बेहद ही सुगंधित होता है और कई अलग-अलग कार्यों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. भारत में प्रतिवर्ष 700 टन लेमनग्रास ऑयल का उत्पादन किया जाता है. इसका अधिकांश हिस्सा निर्यात कर दिया जाता है. देश में अरोमा मिशन के तहत इसकी खेती का रकबा बढ़ा है. इससे किसानों की कमाई बढ़ी है. इसकी खेती खास कर उन क्षेत्रों में बढ़ी है जहां पर सिंचाई के अभाव में खेत खाली रह जाता थे. इतना नहीं इसकी खेती से महिला किसान अधिक संख्या में जुड़े हैं. 

लेमनग्रास एंटीऑक्सीडेंट्स का बेहतरीन स्रोत माना जाता है. इसलिए दुनिया की एक बड़ी आबादी इसके घास का चाय भी पीती है. इसमे प्रचुर मात्रा में विटामीन सी पाया जाता है. इसके तेल का अधिकांश इस्तेमाल इत्र और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में किया जाता है. इसलिए अब इसकी मांग खूब बढ़ रही है. इसकी खूबी यह है कि किसान इसकी खेती सूखा प्रभावित इलाके में भी कर सकते हैं. कम उपजाऊ जमीन में भी इसकी पैदावार बेहतर होती है. इसकी खेती से किसानों को होने वाले फायदे को देखते हुए इसकी कई उन्नत किस्में भी विकसित की गई हैं. इसकी खेती से किसानों को अधिक मुनाफा होता है. 

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लेमनग्रास की उन्नत किस्में

सुगंधी
लेमनग्रास के इस किस्म की खासियत है कि सभी प्रकार की मिट्टी में और जलवायु में इसकी खेती की जा सकती है. इस किस्म के घास से प्रति हेक्टेयर 80-100 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है. 

प्रगति
औषधीय एवं संगधीय संस्थान (सीमैप) लखनऊ द्वारा विकसित की गई यह किस्म काफी बेहतर मानी जाती है. इसमें 0.63 प्रतिशत तेल और 75-82 फीसदी सिट्रल पाया जाता है. 

प्रमाण
लेमनग्रास की यह किस्म सीमैप के क्लोनल चयन द्वारा विकसित की गई है. इस किस्म में तेल की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है. इसमें लगभग 82 फीसदी सिट्रल पाया जाता है. 

जामा रोजा
लेमनग्रास के इस किस्म की पत्तियों की उपज लगभग 30-35 टन प्रति हेक्टेयर होती है.इसमें 0.4 प्रतिशत तेल पाया जाता है. 

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आर.आर.एल.16
इस किस्म में पत्तियों की उपज लगभग 15-20 टन प्रति हेक्टेयर होती है. इसमें 0.6-0.8 प्रतिशत तेल पाया जाता है. इसके अलावा 80 प्रतिशत सिट्रल पाया जाता है. 

सी.के.पी.25
लेमनग्रास की यह किस्म उत्तर भारत के समतल एवं सिंचित क्षेत्रों में बुवाई के लिए अनुकूल मानी जाती है. इसमें प्रति हेक्टेयर 60 टन तक पत्तियों का उत्पादन होता है. इसमें लगभग 82-85 फीसदी सिट्रल पाया जाता है. 

कावेरी
लेमनग्रास की इस किस्म को अधिक नमी वाले क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है. इसकी खेती मुख्य रूप ने नदियों के किनारे की जाती है.