झींगा उत्पादक किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है. साथ ही अब झींगा एक्सपोर्ट करने वालों को भी अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव में नहीं आना पड़ेगा. उन्हें अपना झींगा मजबूरी में बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी. झींगा के दाम भी कम नहीं होंगे. झींगा एक्सपर्ट की मानें तो बीते चार साल में झींगा की घरेलू डिमांड दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है. देश के घरेलू बाजार में झींगा की खपत तेजी से बढ़ रही है. 80 फीसद वेजिटेरियन के शहर सूरत में ही हर रोज करीब 5 टन झींगा खाया जा रहा है.
अलग-अलग प्लेटफार्म पर लगातार झींगा के घरेलू बाजार की डिमांड करने वाले झींगा उत्पादक किसान और झींगा एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा का दावा है कि आने वाले तीन से चार साल में झींगा की डिमांड तीन लाख टन तक पहुंचने की पूरी उम्मीद है. उनका कहना है कि अब देश के करीब हर बड़े शहर में झींगा बिक रहा है और उसकी डिमांड बढ़ रही है.
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मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल में देश के घरेलू बाजार में एक लाख टन से ज्यादा झींगा बिका है. जबकि कोरोना से पहले साल 2019 में इसी झींगा की डिमांड 25 से 30 हजार टन सालाना तक थी. लेकिन कोरोना के बाद से अचानक डिमांड में तेजी आ गई है. मुम्बई में रोजाना 100 से 125 टन झींगा बिक रहा है. इसके साथ ही कोलकाता, मैसूर, बेग्लू रू, पुणे, दिल्ली , पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी झींगा बिक रहा है. और अच्छी बात ये है कि घरेलू बाजार में भी झींगा को 350 रुपये जैसा अच्छा रेट मिल रहा है.
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मनोज शर्मा का कहना है कि हमारे देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी खूब बिकती है. लेकिन झींगा को हमारे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ग्राहक नहीं मिल पाते हैं. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है.
जिसमे करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. जरूरत बस इतनी भर है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.
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