फूलों की खेती से भी करोड़ों का रोजगार किया जा सकता है और लोगों को रोजगार दिया जा सकता है. बस इसके लिए मेहनत करने का हौसला और जुनून चाहिए. तेलंगाना के निज़ामाबाद जिले में किसान परिवार में जन्मे और पले-बढ़े श्रीकांत ने इसे साबित करके दिखाया है. एक वक्त ऐसा भी था जब श्रीकांत बोलापल्ली बेंगलुरु में अपने रिश्तेदार के यहां 1000 रुपये की मासिक वेतन पर काम कर रहे थे. आज वहीं श्रीकांत एक साल में 70 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं. इतना नहीं, आज वे अपने साथ 200 लोगों को काम दे रहे हैं और उनका नेटवर्क देश भर में फैला हुआ है. हालांकि उन्होंने यह सफलता एक दिन में हासिल नहीं की है.
पारंपरिक किसान परिवार में जन्मे श्रीकांत का बचपन बेहद गरीबी में बीता. पर वे खुद को इससे बाहर निकालना चाहते थे. यही कारण है कि आज उनकी मेहनत रंग लाई है और 52 एकड़ में उनकी फूलों की खेती लहलहा रही है. पर यहां तक पहुंचने की राह उनकी इतनी आसान नहीं थी. 'द बेटर इंडिया' को श्रीकांत ने बताया कि उनका बचवन गरीबी में बीता. किसान परिवार में जन्म हुआ, हमेशा कर्ज में डूबे रहे. इससे निकलने के लिए वे पढ़ाई करना चाहते थे पर 10वीं के बाद माता पिता ने कह दिया कि अब उन्हें पढ़ाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं.
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गरीबी से जूझ रहे परिवार को आर्थिक सहयोग देने के लिए वे 16 साल की उम्र में ही अपने एक रिश्तेदार के यहां बेंगलुरु चले गए. वहां वे अपने रिश्तेदार के यहां फूल की खेती और उससे जुड़े कारोबार में मदद करने लगे. इसके लिए उन्हें प्रतिमाह एक हजार रुपये मिलते थे. श्रीकांत बताते हैं कि उन्हें जो पैसे दिए जा रहे थे वे काफी कम थे पर उनके पास कोई विकल्प नहीं था. एक साल तक वहां काम करने के बाद श्रीकांत ने फूलों की खेती करने के अलावा इसकी मार्केटिंग के बारे में भी पूरी जानकारी हासिल कर ली. इसके बाद उन्होंने देखा कि फूलों की खेती के क्षेत्र में सफलता की आपार संभावनाएं हैं.
इसे देखते हुए उन्होंने पूरे हिम्मत और हौसले के साथ अपना खुद का कुछ करने का फैसला किया. बिना किसी की वित्तीय मदद के बेहद कम पूंजी में किसानों से फूल लेना और उनका व्यापार करना शुरू कर दिया. इसके बाद 1997 में उन्होंने बेंगलुरू शहर में फूलों की एक छोटी सी दुकान खोली. लगभग 10 साल तक उन्होंने यह दुकान चलाई. हालांकि मुनाफा अच्छा था, इसके बाद भी उनके मन में कुछ बड़ा करने की इच्छा थी. वे फूलों की खेती करना चाहते थे. फूल के व्यापार से जुड़े संपर्क उनके पास थे. इसलिए उन्हें फूल की खेती में कोई परेशानी नहीं होगी, यह सोचकर श्रीकांत ने फूलों की खेती करने का फैसला किया.
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उन्होंने फैसला किया कि वे अपना फूलों का फार्म शुरू करेंगे. हालांकि उनका यह फैसला चुनौतियों भरा था और सबसे पहले चुनौती पूंजी की थी. फूलों की खेती में प्रति एकड़ निवेश पांरपरिक खेती से अधिक होती है. निवेश अधिक है इसलिए जोखिम भी अधिक होता है. हालांकि श्रीकांत के पास कुछ जमा बचत थी. बाकी सहायता के लिए उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से संपर्क किया. उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर 10 एकड़ जमीन में फूलों की खेती की शुरूआत की जो आज बढ़कर 52 एकड़ में हो गया है. श्रीकांत बताते हैं कि फार्म लगाते समय जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, वह अब नहीं है. अब हालात बदल गए हैं. अब हर कोई मदद के लिए आगे आना चाहता है.
आज बेंगलुरु के डोड्डाबल्लापुरा के पास अपने 52 एकड़ खेत में श्रीकांत 12 प्रकार के फूलों की खेती करते हैं. इन फूलों में गुलाब, जरबेरा, कारनेशन, जिप्सोफिला सहित अन्य फूल शामिल हैं जो ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस में जैविक रूप से उगाए जाते हैं. 40 साल की उम्र में, श्रीकांत अपने फूलों की खेती के उद्यम से अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. देश भर के ग्राहकों के साथ, श्रीकांत ग्रामीण कर्नाटक के 200 से अधिक लोगों की टीम के साथ काम करके एक साल में 70 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं.
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श्रीकांत बताते हैं कि वे पूरा प्रयास करते हैं कि जैविक और टिकाऊ खेती करें. इसलिए फूलों की कटाई के बाद जो भी अवशेष बचता है उससे वे वर्मी कंपोस्ट बनाते हैं और फिर खेतों में इस्तेमाल करते हैं. वे बताते हैं कि अधिकांश युवा अब नफा-नुकसान का विचार सोचकर खेती में नहीं आते हैं. लेकिन अगर आप सही तरीके से और सही रास्ते में मेहनत करते हैं तो इस उद्योग में भी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है. फूलों की खेती में इसी तरह से मेहनत करने की जरूरत होती है. तब जाकर ही अच्छी सफलता आपको मिलती है.
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