बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने वाले किसानों को लेकर टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने पंजाब सरकार से सवाल करते हुए कहा कि जबरन पराली जलाने वाले किसानों को गिरफ्तार करना चाहिए. कोर्ट ने आगे कहा कि किसान हमारे लिए स्पेशल हैं और हम उनकी बदौलत खा रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर सकते. सरकार से सवाल करते हुए कहा कि आप कुछ पेनाल्टी के बारे में क्यों नहीं सोचते? अगर कुछ लोग सलाखों के पीछे जाते हैं तो इससे सही संदेश जाएगा.
सर्वोच्च न्यालय की टिप्पणी के बाद किसानों में आक्रोश देखा गया. कई किसानों ने पराली प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं की बात कही. किसानों का मानना है कि ये टिप्पणी उनके हक में नहीं हैं. साथ ही वे सरकार पर भी जमकर बरसते नजर आए और कहा कि सरकार सिर्फ कॉर्पोरेट के लिए काम कर रही है. किसानों की पराली से ज्यादा तो उद्योग से प्रदूषण होता हैं, लेकिन उन पर कोई करवाई करने की बजाय किसानों पर की जा रही है.
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कोर्ट की टिप्पणी के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी मात्र का फायदा सरकार और अधिकारी गतल तरीके से उठाकर किसानों की गिरफ्तारी शुरू कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पराली और अन्य कृषि कार्यों से 5-6 फीसदी से अधिक प्रदूषण नहीं फैल सकता. जबकि फैक्ट्री, कारखानों, ट्रांसपोर्ट और कंट्रक्शन की वजह से 55-60 फीसदी प्रदूषण होता है. आपको उनको समझाने के लिए किसानों की गिरफ्तारी नहीं करना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने कहा कि साल 2019 में कोर्ट ने पराली प्रबंधन के लिए पंजाब, हरियाणा और यूपी सरकार को बोनस देने की बात कही थी लेकिन अब तक किसी सरकार ने उस बात पर अमल नहीं किया.
किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने भी इस बात कर जवाब देते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश के बाद भी 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस नहीं दिया गया और आज कोर्ट ने फिर एक टिप्पणी की जो हमें लगता है कि न्यायसंगत नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि NGT ने भी कहा है कि पराली के मैनेजमेंट के लिए जो मशीनें हैं
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उनपर भी राज्य सरकारों को सब्सिडी देनी चाहिए. इसके अलावा 2 एकड़ तक के किसानों को मशीनें फ्री में उपलब्ध कराई जाएं, 2-5 एकड़ वाले किसानों के लिए 5 हजार रुपये और 5 एकड़ से अधिक जोत वाले किसानों को 15 हजार रुपये की मदद दी जाए. इसके बाद भी कोई किसान पराली जलाता है तो उस पर मुकदमा होना चाहिए.
अभिमन्यु कोहाड़ आगे कहते हैं कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी उदाहरण देते हुए समझाया कि पंजाब-हरियाणा में जलाई पराली का धुआं दिल्ली में नहीं आता है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि कई एक्सपर्ट्स ने भी माना है कि पराली का धुआं प्रदूषण का कारण नहीं बनता है. उन्होंने आगे सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वे केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दें कि वे किसानों की पराली प्रबंधन में मदद करें.
फिरोजपुर जिले के सीमावर्ती गांवों के किसानों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर अपनी चिंता जताई. किसान बलबीर सिंह (गांव गट्टी राजकों) ने कहा, "यह टिप्पणी सही नहीं है. हम मजबूरी में पराली जलाते हैं, क्योंकि पराली निपटाने के हमारे पास कोई साधन नहीं हैं. प्राकृतिक आपदाओं और बाढ़ से फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है. हम शौक से पराली नहीं जलाते."
किसान सतनाम सिंह ने कहा, "पानी से फसलें खराब हो चुकी हैं. जिनके पास थोड़ी बहुत फसल बची है, उनके पास पराली हटाने के लिए न पैसे हैं, न ट्रैक्टर और न कोई मशीन. धुआं हमें भी परेशान करता है – हमारे घरों तक भी पहुंचता है. लेकिन क्या करें, मजबूरी है"
किसान जसबीर सिंह ने कहा, "हमें ये बताया जाए कि अगर पराली न जलाएं तो करें क्या? हम मानते हैं कि पराली से प्रदूषण होता है, लेकिन कोई विकल्प नहीं है."
पंजाब और हरियाणा के खेतों में जब ग्राउंड पर जाकर किसानों से बातचीत की गई, तो एक ही आवाज उभरी – "हमें टारगेट मत करो, हमें समाधान दो." किसानों की मांग है कि सरकारें पराली का समाधान दें, मशीनरी उपलब्ध कराएं, आर्थिक सहायता दें और सभी प्रदूषण स्रोतों पर बराबर ध्यान दें.
(चंडीगढ़ से अमन भारद्वाज, अमृतसर से अमित शर्मा, फिरोजपुर से अक्षय कुमार, गुरदासपुर से बिशम्बर बिट्टू, सोनीपत से पवन राठी का इनपुट)
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