कृषि ड्रोन के इस्तेमाल को झारखंड में बढ़ावा मिल रहा है, जिससे यहां की खेत, कृषि और किसानों का आधुनिकीकरण हो रहा है. हालांकि अभी शुरुआत है तो कई प्रकार की चुनौतियां भी हैं. पर इन चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य की ड्रोन दीदियां तैयार हैं, जो झारखंड के दूर दराज के गांवों से आती हैं और किसानों को कृषि ड्रोन से होने वाले फायदों के बारे में बता रही हैं. फायदों को जानने के बाद किसानों के मन में भी ड्रोन के लेकर उत्सुकता बढ़ रही है. इसका एक और फायदा यह हो रहा है कि ड्रोन दीदी अब आत्मनिर्भर बन रही हैं. उनके लिए रोजगार का एक बेहतर साधन मिल गया है.
झारखंड के हजारीबाग जिला अंतर्गत पदमा प्रखंड के चंपाडीह गांव की उषा कुमारी भी ऐसी ही ड्रोन दीदी हैं जो अपने गांव और प्रखंड के किसानों को ड्रोन की सेवाएं देने के लिए तैयार हैं. उषा कुमारी ने बताया कि उनके ड्रोन में कुछ तकनीकी खराबी आ गई है. इसके कारण वो अब तक सेवाएं नहीं दे पाई हैं. पर वो किसानों को ड्रोन के इस्तेमाल से होने वाले फायदों के बारे में बता रहीं हैं. उन्होंने कहा कि काम शुरू होने के बाद उन्हें उम्मीद है कि उन्हें अच्छी कमाई होगी.
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ड्रोन दीदी के तौर पर चयन होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनके गांव में संचालित महिला उत्पादक कंपनी की तरफ से उनका चयन किया गया. समूह की दीदियों की तरफ से उनके नाम का सुझाव दिया गया. इसके बाद रांची में लिखित परीक्षा ली गई. इस परीक्षा में पास होने के बाद उनका इंटरव्यू लिया गया. इसके बाद उनका चयन ड्रोन दीदी के लिए हुआ. फिर उन्हें ट्रेनिंग के लिए मोतीहारी और रांची भेजा गया. ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वो ड्रोन दीदी बन गईं.
उषा कुमारी बताती हैं कि ट्रेनिंग में पहली बार उन्हें कृषि ड्रोन देखने का और उसे जानने का मौका मिला. इससे पहले सोचती थीं कि कृषि ड्रोन भी वीडियो रिकॉर्डिंग करने वाले ड्रोन की तरह ही होगा. उन्होंने बताया कि पहले तो उन्हें लगा कि इसे वो नहीं उड़ा पाएंगी लेकिन ट्रेनिंग मिलने के बाद आत्मविश्वास आया और अब ड्रोन को आसानी से उड़ा लेती हैं. गांव के किसानों के लिए गांव में ही विशेष कैंप का आयोजन किया जाता है, जहां पर ड्रोन की जानकारी किसानों को दी जाती है.
उषा ने अपनी परेशानियों का भी जिक्र किया और कहा कि उनके गांव और आस-पास के गांवों में लोग बड़ी-बड़ी जमीनों में खेती करते हैं. छिड़काव करने के लिए ऑर्डर तो काफी आएंगे, लेकिन बैटरी एक बड़ी समस्या है क्योंकि एक बैटरी सिर्फ 20 मिनट चलती है और फिर उसके बाद चार्ज करना पड़ता है. इसके कारण बार-बार घर जाना या काम बंद करना पड़ता है. इसके अलावा ड्रोन को खेतों तक ले जाने में भी परेशानी होती है क्योंकि यह बड़ा है और वजन भी अधिक है. एक और समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय तौर पर ड्रोन के इंजीनियर उपलब्ध नहीं हैं. इसके कारण खराब होने पर इसे बनवाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है.
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चंपाडीह गांव में लगभग 80 फीसदी लोग खेती करते हैं. हजारीबाग का यह प्रखंड खेती के लिए जाना जाता है. यहां पर किसान बड़ी जमीनों को लीज पर लेकर खेती करते हैं. यहां प्रमुख तौर पर धान, गेहूं, मक्का, मूंग, अरहर और सब्जियों की खेती की जाती है. उषा देवी भी किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं और खुद भी खेती करती हैं. इसलिए ड्रोन दीदी बनने में उनका खेती का अनुभव भी काफी काम आया. उषा बताती हैं कि ड्रोन दीदी बनने के बाद उन्हें काफी गर्व महसूस होता है. साथी ही आत्मविश्वास भी आ गया है.
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