
कृषि ड्रोन के इस्तेमाल से किसानों को काफी लाभ होता है. झारखंड के सूदूरवर्ती जिलों के गांवों में रहने वाले किसान भी अब बात समझने लगे हैं और उन्हें भी ड्रोन की सेवाओं का लाभ मिल रहा है. शहर से दूर किसानों के खेतों में अगर आज ड्रोन उड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, खेतों में खाद और दवाओं का छिड़काव कर रहा है तो इसके पीछे मेहनत उन ड्रोन दीदियों की है, जो खुद उन गांवों से आती हैं. झारखंड के गढ़वा जिले के भवनाथपुर प्रखंड अंतर्गत सिंदुरिया गांव की रहने वाली रीता कुमारी भी एक ऐसी ही ड्रोन दीदी हैं जो अपने गांव, प्रखंड और जिले के किसानों को ड्रोन की सेवाएं देने के लिए तैयार हैं.
गढ़वा जैसे जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर ड्रोन दीदी बनना रीता कुमारी के लिए आसान नहीं था. पर उन्होंने अपनी मेहनत से इसे कर दिखाया है. रीता कुमारी का जन्म किसान परिवार में हुआ और शादी भी किसान परिवार में हुई. बचपन से खेती करते हुए देखा और खेतों में खुद भी काम किया. उनकी इसी जानकारी ने उन्हें ड्रोन दीदी बनने में मदद की. रीता कुमारी ने बताया कि ड्रोन दीदी बनने के लिए सबसे पहले उन्हें ऑनलाइन इंटरव्यू देना पड़ा. इसके बाद रांची में एक लिखित परीक्षा आयोजित की गई. दोनों परीक्षाओं को पास करने के बाद उनका चयन ड्रोन दीदी बनने के लिए किया गया.
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रीता कुमारी ने आगे बताया कि ड्रोन दीदी के लिए चयनित होने के बाद उन्हें सबसे पहले ट्रेनिंग के लिए बिहार के मोतीहारी भेजा गया. मोतीहारी पहुंचने के बाद पहली बार उन्होने ड्रोन देखा था और उसके बारे में जानकारी मिली थी. उससे पहले उन्हें कृषि ड्रोन के बारे में कुछ भी पता नहीं था. रीता बताती हैं कि ड्रोन देखने के बाद पहली बार तो उन्हें यही लगा था कि वे इसे कैसे उड़ा पाएंगी क्योंकि उन्होंने आज तक साइकिल के अलावा और कुछ नहीं चलाया था. पर दो से तीन दिनों की ट्रेनिंग के बाद वो आसानी से ड्रोन उड़ाने लगीं. यहां पर 15 दिनों की ट्रेनिंग चली.
रीता कुमारी ने बताया कि जब ट्रेनिंग पूरी हुई और गढ़वा आने के बाद उन्हें ड्रोन मिला, तब उन्हें विश्वास हुआ कि वो ड्रोन दीदी बन गई हैं. ड्रोन दीदी बनने के बाद अब उनके गांव और आसपास के गांवों में उनकी एक अलग पहचान है. पूरे जिले में सिर्फ दो ड्रोन दीदी हैं और उनके पास पूरे जिले से किसानों के फोन आते हैं. उन्होंने महिला समूहों और बीज दुकानों में अपना नंबर दिया है जहां से किसान उन्हें संपर्क करते हैं. रीता बताती हैं कि अभी तक उनके काम में तेजी नहीं आई है पर अब बारिश होने के बाद लोग खेती कर रहे हैं तो उनके काम में तेजी आएगी. एक एकड़ में ड्रोन से छिड़काव करने के लिए वो 500 रुपये लेती हैं.
रीता कहती हैं कि फिलहाल तो अच्छी कमाई नहीं हो रही है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में उन्हें अच्छी कमाई होगी. लेकिन इसमें भी कुछ परेशानियों का उन्हें सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि उन्हें दो बैटरी मिली है लेकिन इससे काम नहीं होता है. ड्रोन चलाने के लिए दूर खेतों में जाना पड़ता है. इसलिए कम से कम और दो बैटरी अगर मिल जाए तो ड्रोन दीदियों को काम करने में आसानी होगी. साथ ही उन्होंने कहा की ड्रोन को खेतों तक ले जाना उनके लिए एक बड़ी समस्या है. अगर सरकार की तरफ से ड्रोन को लाने और ले जाने के लिए ई रिक्शा मिल जाए तो उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.
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रीता कुमारी महिला समूह से जुड़ी हुई हैं. इसी के जरिए उनके ड्रोन दीदी बनने का विकल्प खुला. उन्होंने बताया कि पति की मौत के बाद दो बच्चों के पालन-पोषण में परेशानियां तो होती हैं पर अब ड्रोन दीदी बनने के बाद लगता है कि दोनों बच्चों को अच्छा भविष्य दे सकती हैं. उनके काम में उनके सास-ससुर भी पूरी तरह से सहयोग करते हैं. फिलहाल उन्होंने बीए पार्ट-1 का एक्जाम दिया है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में लगभग 500 किसान हैं. बारिश के मौसम में यहां पर धान, तिल, अरहर, मक्के और मूंगफली की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसके अलावा किसान सब्जियों की भी खेती करते हैं. रीता कुमारी किसानों को ड्रोन से छिड़काव के फायदों के बारे में भी बताती हैं.
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