बनासकांठा की महिलाएं अब पगभर हुई है अब सिर्फ़ घर काम नहीं लेकिन अपनी मेहनत से अछे रुपये कमा रही है साथ ही इलाके में उन्हें एक अलग पहचान भी मिल गई है. आशाबेन चौधरी ने मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. यही पढ़ाई ही उनके काम आई, क्योंकि इसी डिग्री के बदौलल उन्हें ड्रोन दीदी बनने का अवसर मिला. हालांकि शादी के बाद कोई रोजगार नहीं होने के कारण आशाबेन थोड़ी परेशान रहती थी और हमेशा अपने पति से कहती थी कि जब कोई काम नहीं करना है तो इतनी पढ़ाई लिखाई करने का उसका क्या फायदा होगा. वह कुछ करना चाहती थी.
उनके पति ने उनकी भावना को समझा और उनका साथ दिया. हालांकि इस बीच उन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन में जैविक खेती की थी, पर आशाबेन कुछ नया करना चाह रही थी. इस बीच उन्हें एक सरकारी योजना के बारे में पता चला, जिसके तहत खेतों में ड्रोन से छिड़काव करने के लिए ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. आशाबेन ने योजना की पूरी जानकारी हासिल की और संबंधिक अधिकारियों से बात करते ट्रेनिंग हासिल करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया. इसके बाद उनका इंटरव्यू हुआ और ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण लेने के लिए उनका चयन किया गया.
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इसके बाद आशाबेन चौधरी को ट्रेनिंग के तहत पुणे ले जाया गया. जहां पर उन्हें ड्रोन से दवाओं औऱ कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए 15 दिनों ती ट्रेनिंग दी गई. पुण से ट्रेनिंग मिलने के बाद उन्हें ड्रोन पॉयलट का सर्टिफिकेट मिल गया.इसके कुछ समय बाद उन्हें खेतों में छिड़काव करने के लिए लगभग 15 लाख रुपए का ड्रोन और उसे खेतों तक ले जाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक रिक्शा मुफ्त में दिया गया. इससे आशाबेन को काफी फायदा हुआ. साथ ही उनके गांव के आसपास के उन हजारों किसानों को फायदा हुआ जो मैनुअल मशीनों से खेतों में दवाओं का छिड़काव करते थे, इसमें उन्हें घंटों का समय लगता था.
इसके अलावा आशाबेन चौधरी को भी इससे काफी फायदा हो रहा है क्योंकि ड्रोने के जरिए छिड़काव करके वो रोजाना हजारों रुपए की कमाई कर रही हैं. इस तरह से वो अपने परिवार के सदस्यों की आर्थिक तौर से मदद भी कर पा रही है. आशाबेन बतातीं हैं कि अब उन्हें अपने या अपने बच्चों की शिक्षा और अन्य जरूरतों के लिए किसी और से पैसे नहीं मांगने पड़ते हैं. अब वह अपनी और अपनी बच्चों की जरूरतें अपनी कमाई से पूरा कर रही हैं. इसके साथ ही आस-पास के गांवों में अब उनकी एक अलग पहचान बन गई है. (परेश पढ़ियार की रिपोर्ट)
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