महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कपास की खेती की जाती है. पर पिछले कुछ समय से विदर्भ क्षेत्र के किसान फसल की पैदावार में लगातार गिरावट का सामना कर रहे हैं. दूसरी ओर किसानों को कम बिक्री मूल्य, सही समय से बीमा राशि का भुगतान नहीं होना जैसी और कई और परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है. उत्पादन में कमी आने के पीछे की बड़ी वजह कीटों के प्रकोप को बताया जा रहा है. स्थानीय किसानों के मुताबिक यहां पर कपास की फसल में एक नया कीट आ गया है जो पौधों को नुकसान पहुंचा रहा है. इसके कारण उत्पादन में भी कमी आ रही है. यह एक नया कीट है जिसपर कीटनाशकों का भी अधिक असर नहीं होता है.
'द टेलीग्राफ' की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्धा जिला अंतर्गत मोही गांव के किसान ने कहा कि एक दशक पहले तक वे एक एकड़ के खेत से 15 क्विंटल कपास का उत्पादन लेते थे. लेकिन एक नए कीट के प्रभाव के कारण इस साल उत्पादन गिरकर 10 क्विंटल हो गया है. उन्होंने बताया कि वे सबसे प्रभावी कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद भी कीट उनकी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. उन्होंने कहा कि एक नया कीट आया है जो पौधों को नुकसान पहुंचा रहा है. उत्पादन में कमी आने के कारण किसान परेशान हैं. उनका कहना है कि इस चुनाव में किसानों की इन बुनियादी समस्याओं पर किसी सरकार या पार्टी का ध्यान नहीं गया है, जिसके कारण किसानों को अफसोस है.
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विदर्भ के 11 जिलों के किसान मुख्य रूप से संकर बीटी कपास उगाते हैं. साल 2000 की शुरुआत में इस बीज की खेती की शुरू की गई ताकि उपज बढ़ाई जा सके और किसानों की आय बढ़ाई जा सके. शुरुआत में परिणाम काफी अच्छे आए और उपज दोगुनी से भी अधिक हो गई. उपज बढ़ने के कारण काफी संख्या में किसान बीटी कपास की खेती में लग गए. लेकिन आज वहीं बीज उनके लिए समस्या बन गई है. बुलढाणा जिले के अडोल गांव के किसान रामेश्वर काले ने कहा कि बीटी कपास की समस्या कीट हैं. अब उन्हें अधिक परेशानी हो रही है क्योंकि अब कपास के देशी पुराने बीज बाजार में उपलब्ध नहीं हैं.
भांडवलकर नाम के एक किसान ने कहा कि खेती अब पहले की तरह लाभ का पेशा नहीं रही है. अगर इसमें इसी तरह से नुकसान होता रहा तो किसान अपनी जमीन को निजी कंपनियों को बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे. किसानों को अपनी ही जमीन पर मजदूर बनकर काम करना पड़ेगा जबकि बड़ी कंपनियां मामूली किराए पर खेत को ले लेंगी. वहीं मोही गांव के एक अन्य किसाम ने कहा कि पीले मोजैक वायरस के कारण सोयाबीन किसान पहले से ही फसल पैदावार में कमी का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार होती थी, लेकिन अब उपज आधी हो गई है.
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मगन संग्रहालय समिति की अध्यक्ष विभा गुप्ता बताती हैं कि बीटी कपास के बीज भारतीय मिट्टी के लिए उपयुक्त नहीं हैं. उन्होंने कहा कि “भारतीय किसानों को स्वदेशी बीजों की ओर लौटना होगा. बीटी कॉटन को अधिक रसायन, अधिक पानी और अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है जिससे लागत बढ़ जाती है जो फसलों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है. विभा गुप्ता ने कहा कि विदर्भ में एक विदेशी कंपनी द्वारा बीटी कॉटन के अधिकांश बीज की आपूर्ति की गई थी. बीटी कॉटन को सफेद बॉलवॉर्म के हमले से बचाने के लिए विकसित किया गया था, जबकि भारत में गुलाबी बॉलवॉर्म पाए जाते हैं. इसलिए भारत में यह फसल विफल हो जाएगी.
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