फलों के राजा आम का नाम भले ही 'आम' है, लेकिन ये लोगों के लिए कितना ख़ास है, इसके किसी शौकीन से पूछकर देखिए, जो सालभर इसके फलों के बाजार में आने का इंतजार करता है. लेकिन, इस खास फल की बागवानी में खतरनाक कीट फल मक्खी या फ्रूट फ्लाई के कारण बहुत ज्यादा नुकसान होता है, जो भारत समेत दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या है. कृषि विशेषज्ञ डॉ. एसके सिंह ने बताया कि पिछले साल फल मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ा था, जिसके कारण करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ था. विगत साल की तरह इस साल भी वातावरण में नमी की अधिकता दिख रही है और इससे फल मक्खी की समस्या बढ़ने की संभावना है. इसलिए इसकी रोकथाम बहुत जरूरी है.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी पूसा-समस्तीपुर, बिहार में डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के हेड डॉ एसके सिंह ने बताया कि फल मक्खी कीट के कारण आम की उपज में 1 से लेकर 90 फीसदी या कभी-कभी शत प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है. उन्होंने बताया कि आम की फल मक्खी कीट अप्रैल से मई महीने में नुकसान करना शुरू कर देती है. उन्होंने कहा कि नवजात सुंडिया पहले छिलके को खाती है और इसके बाद सुंडिया आम के अंदर घुसकर गूदे को खाती हैं, जिससे फल खराब हो जाता है. फल मक्खी की वयस्क घरेलू मक्खी के बराबर होते हैं, जिनपर पीले रंग की धारियां होती हैं और इसकी मादा अपने जीवनकाल में 300 से अधिक अंडे देती है. फल मक्खी लगभग आम के आधे आकार के फल तैयार होने पर सफेद रंग के बिना पैर वाले इसे सुंडिया फल के गूदे को खाती हैं और फल को सड़ा देती हैं. इससे फल गिरने लगते हैं. इसके लार्वा फिर वापस मिट्टी में चले जाते हैं और फिर से वयस्क रूप में दिखाई देते हैं.
डॉ. एसके सिंह ने बताया कि इस घातक कीट के रोकथाम के लिए "फ्रूट फ्लाई ट्रैप" सबसे बढ़िया विकल्प है. अगर कोई खुद इस ट्रैप को बनाना चाहता है तो खुद भी बना सकते हैं. इसके लिए 15-20 फेरोमोन ट्रैपमिथाइल यूजेनॉल ट्रैप लगाकर फ्रूट फ्लाई मक्खी को रोका जा सकता है. इन ट्रैपों को निचली शाखाओं पर 4 से 6 फिट की ऊंचाई पर बांधना चाहिए. एक ट्रैप से दूसरे ट्रैप के बीच में 35 मीटर की दूरी रखनी चाहिए. ट्रैप को कभी भी सीधे सूर्य की किरणों में नहीं रखना चाहिए. ट्रैप को आम की बहुत घनी शाखाओं के बीच में नहीं बाधना चाहिए. ट्रैप को बाग में स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए कि कहां बाधा गया है.
विशेषज्ञ डॉ. सिंह ने बताया कि ट्रैप एक साधारण मेल एनीहिलेशन तकनीक (MAT) पर काम करता है. ट्रैप में एक छोटा प्लास्टिक कंटेनर होता है, जिसमें प्लाईवुड का एक टुकड़ा होता है, जिसे मिथाइल यूजेनॉल और डाइक्लोरोवोस से उपचारित किया जाता है, जिसे पेड़ पर लटका दिया जाता है. यह जाल नर फल मक्खी को आकर्षित करता है. नर की अनुपस्थिति में मादा प्रजनन करने में विफल हो जाती है और इसलिए आम के फल पर फल मक्खी का संक्रमण नहीं होता है. ट्रैप लगाने से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है, इसके साथ फल पर सीधे केमिकल के छिड़काव से बच जाते हैं. इस तकनीक को अपनाने से होने वाले नुकसान में काफी कमी आई है. इस तकनीक के अपनाने के केमिकल के कण फल में मिलने से आम के निर्यात में सुगमता होती है, केमिकल फ्री होने से संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों को आमों के निर्यात की सुविधा होती है, जिन्होंने पहले फल मक्खी के कारण भारतीय आमों पर प्रतिबंध लगा दिया था.
विशेषज्ञ के अनुसार जमीन पर गिरे हुए फल मक्खी से संक्रमित फलों को इकट्ठा करें और उन्हें 60 सेंटीमीटर गहरे गड्ढों में डंप कर दें. गर्मी के दिनों में बाग की गहरी जुताई करने से इस कीट के प्यूपा गर्म सूरज की किरणों के संपर्क में आ कर मर जाते हैं, परिपक्व फलों की समय पर तोड़ाई की जानी चाहिए. फलों को गर्म पानी के साथ 48 डिग्री सेल्सियस पर एक घंटे के लिए रखने से भी कीट मर जाता है.इस तरह आम के इस घातक कीट को बिना केमिकल कंट्रोल किए आम हेल्दी रखा जा सकता है, और आम को निर्यात करने में भी कोई बाधा नहीं होगी, और आम के उपभोक्ताओं के लिए भी बेहतर क्वालिटी के आम मिलेंगे जो केमिकल मुक्त होंगे.
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