झारखंड में बड़े पैमाने पर हो सकती है सेब की खेती, इस पायलट प्रोजेक्ट में मिली बड़ी कामयाबी

झारखंड में बड़े पैमाने पर हो सकती है सेब की खेती, इस पायलट प्रोजेक्ट में मिली बड़ी कामयाबी

बीएयू में सेब की खेती को लेकर एक प्रयोग किया गया था, जिसमें यह साबित हुआ है कि झारखंड में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती हो सकती है. यह सफलता उन किसानों के लिए खुशखबरी है जो राज्य में कमर्शियल तौर पर सेब की खेती करना चाहते हैं.

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झारखंड में बड़े पैमाने पर हो सकती है सेब की खेती, इस पायलट प्रोजेक्ट में मिली बड़ी कामयाबीसेब की खेती

झारखंड में सेब की खेती करने की इच्छा रखने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है, क्योंकि अब झारखंड में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती को हो सकती है. रांची स्थित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में सेब की खेती को लेकर किए गए पायलट एक्सपेरीमेंट में वैज्ञानिकों को यह सफलता मिली है. यूनिवर्सिटी में सेब की खेती को लेकर एक प्रयोग किया गया था, जिसमें यह साबित हुआ है कि झारखंड में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती हो सकती है. यह सफलता उन किसानों के लिए खुशखबरी है जो राज्य में कमर्शियल तौर पर सेब की खेती करना चाहते हैं. इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों ने बताया है कि रांची में फलों की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी अनुकूल है. 

बता दे की पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कमर्शियल तौर पर सेब की खेती की जाती है. अब बीएयू में हुए प्रयोग में यह बात साबित हुई है कि रांची में भी किसान बिजनेस के लिहाज से इसकी खेती कर सकते हैं. सेब की खेती पर प्रयोग करने के लिए साल 2022 में बीएयू के हार्टिकल्चरल बायोडायवर्सिटी पार्क में सेब के तीन प्रभेदों स्कारलेट स्पर, जेरोमिन और अन्ना के पौधे लगाए गए थे. अन्ना प्रभेद के 18 पौधे फिलहाल बीएयू में लगे हुए हैं. इस साल अन्ना प्रभेद के पेड़ों में अच्छा फलन हुआ है. पिछले साल भी इन पेड़ों में अच्छे फल हुए थे. 

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अन्ना किस्म के पौधों का बेहतर प्रदर्शन

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बीएयू के वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान अन्ना किस्म के पेड़ों का अच्छा प्रदर्शन रहा है. इसके पौधों का विकास सही तरीके से हुआ है. लगातार दो वर्षों में हुए बेहतर फलन से वैज्ञानिक काफी खुश हैं.  इस सफलता से किसानों को भी काफी फायदा होने वाला है. अन्ना किस्म के इन पौधों को डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश से लाया गया था. हालांकि इनमें से कुछ पौधे मर गए थे. इस किस्म के पौधों में फरवरी के माह में फूल आते हैं जुलाई-अगस्त के महीने में फल परिपक्व होते हैं. 

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अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की जरूरत

बीएयू के बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी विज्ञानी डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी ने बताया यह पायलट प्रयोग में यह पाया गया है कि अन्ना किस्म के सेब की रांची में अच्छी पैदावार हो सकती है. रांची में इसकी सफल खेती हो सकती है. उन्होंने कहा कि अब प्रति हेक्टेयर उपज, इसके स्वाद और गुणवत्ता को लेकर शोध किए जा रहे हैं. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा. किसानों को इसकी खेती करने की सलाह दी जाएगी. डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी ने कहा कि सेब की खेती के लिए खेत की ऊपरी भूमि में जल निकासी की अच्छी क्षमता होती चाहिए. बुलई दोमट मिट्टी में इसकी खेती अच्छे से हो सकती है. 

 

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