देश के ज्यादातर राज्यों के किसान धान की रोपाई कर चुके हैं. या अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल की रोपाई अभी कर रहे हैं. वहीं, धान की फसल में जड़िया धान एक बहुत बड़ी समस्या है. यह धान में उगने वाली खतरनाक घास या खरपतवार है. यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया गया तो फसलों को काफी नुकसान होता है. जड़िया धान पैदावार में कमी के साथ-साथ धान में लगने वाले रोग और कीटों को भी आश्रय देता है. धान की फसल में जड़िया धान के कारण 15-50 प्रतिशत तक नुकसान होता है, वहीं, कभी-कभी यह नुकसान काफी अधिक भी हो जाता है. इसलिए सही समय पर इसका नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. इसी को देखते हुए बिहार के कृषि विभाग ने किसानों को धान की फसल में लगने वाले जड़िया धान के नियंत्रण के लिए एक एडवाइजरी जारी की है.
जड़िया धान का वैज्ञानिक नाम एचिलोना कोलोना है. यह एक प्रकार की जंगली घास है. दरअसल, धान की खेती करते समय इसके बीज भी खेतों में जम जाते हैं. इसके बीज धान की फसल पकने से पहले जमीन पर गिर जाते हैं. इसलिए इसको जड़िया धान के नाम से जाना जाता है. साथ ही इसे कई लोग जंगली धान भी कहते हैं.
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किसान अगर इस धान से होने वाले नुकसान से बचना चाहते हैं, तो जड़िया धान के नियंत्रण के लिए खेत में सिंचाई करके इसको जल्दी से उगाएं. ताकी जमीन में पड़े हुए सारे बीज उग जाएं. इसके उगने के बाद ग्लाइफोसेट और पैराकोट के आधे प्रतिशत घोल का छिड़काव करें. वहीं, जिन किसानों ने अभी तक धान की बुवाई नहीं की है, वे खेतों में तृण नाशक के छिड़काव के 10-15 दिनों के बाद धान की रोपाई करें.
धान की फसल में कई प्रकार के खरपतवार लग जाते हैं. इसमें खिरखां, पारा घास और भोसी, धान की फसल के लिए प्रमुख खरपतवार हैं. ये सभी खरपतवार फसलों में काफी तेजी से फैलते हैं. इनके पौधे 15-60 सेमी लंबे होते है और पत्तियां अंडाकार होती हैं. इन खरपतवारों के लगने से उत्पादन में कमी आती है.
खिरखां, पारा घास और भोसी खरपतवार को धान की फसल से नष्ट करने के लिए पेन्डिमेथालिन 1330 मिली 400 ग्राम प्रति एकड़, आग्जाडायरजिल 50 ग्राम प्रति एकड़ और प्रोपानिल 800 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इन दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं. इसके प्रयोग से ये सभी खरपतवार खत्म हो जाते हैं.
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