लगातार 3 साल से कपास की फसल को चौपट कर रहा कीट पिंक बॉलवर्म से छुटकारा मिलने का रास्ता साफ हो गया है. कीट पिंक बॉलवर्म के हमले से पंजाब के किसान परेशान चल रहे हैं, लेकिन इस बार इस कीट को पकड़ने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ICAR ने AI तकनीक के इस्तेमाल से फेरोमोन ट्रैप सिस्टम विकसित किया है. इसकी मदद से कीट को ट्रैक कर पकड़ा जा सकेगा. यह ट्रैप सिस्टम किसान के मोबाइल से भी कनेक्ट हो सकेगा और किसानों को कीट के संक्रमण की जानकारी भी देगा.
पंजाब के किसान लगातार 3 वर्षों तक गुलाबी बॉलवर्म (PBW) कीट से कपास की फसल की बर्बादी देख रहे हैं. कीट से निजात दिलाने के लिए कई बार सरकार से मदद की गुहार भी लगाई गई है. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार इस बार लगातार चौथी बार इस कीट के हमले को रोकने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने पहली बार में कीट को ट्रैक करने के लिए एआई आधारित तकनीक को तैनात किया है.
पिंक बॉलवर्म के चलते फसल खो चुके किसान आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. पिछले साल कीट की वजह से उत्पादन घट गया था और भारी नुकसान उठाना पड़ा था. इस साल किसान कीट की वजह से कपास की बुवाई से भी बच रहे हैं. वे बासमती चावल की बुवाई कर रहे हैं.
सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (CICR) के निदेशक वाईजी प्रसाद ने कहा कि इस बार पिंक बॉल वर्म के उभरने पर एआई आधारित फेरोमोन ट्रैप सिस्टम लगा रहे हैं. एआई के इस्तेमाल के जरिए कीटों को पौधों से निकलते ही पकड़ने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि सीआईसीआर ने मानसा, मुक्तसर और बठिंडा जैसे 18 स्थानों पर एआई स्मार्ट ट्रैप लगाए हैं. यह स्मार्ट ट्रैप सिस्टम किसान के मोबाइल से कनेक्ट हो जाता है और कीटों के संक्रमण की सारी जानकारी देता है.
एक्सपर्ट ने कहा कि किसान फसल के अवशेष रखते हैं और जिससे इस कीट को पनपने में मदद मिलती है. यही वजह है कि पंजाब और राजस्थान में कीट संक्रमण का पहला स्रोत बन जाता है. किसानों को अपने खेत, फसल की निगरानी करने की सलाह दी गई है. कीट का पता लगते ही फेरोमोन ट्रैप सिस्टम को खेत में लगाया जा. सीआईसीआर ने पिछले कुछ महीनों में पंजाब और हरियाणा में कीट प्रबंधन को लेकर कई जागरूकता अभियान चलाए हैं.
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