एक वक्त था जब बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता था. बहुत सारी जगहों पर तो संपन्न लोग बकरी पालन को अपनी तौहिन समझते थे. लेकिन आज गरीबों की वही गाय उनका एटीएम बन चुकी है. यही वजह है कि केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा में बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने आने वालों में बिना पढ़े-लिखे भी होते हैं तो बीए-बीएससी, पीएचडी और बीटेक डिग्री होल्डर भी शामिल होते हैं. बकरी के दूध और मीट की डिमांड को देखते हुए 100 बकरे-बकरियों से लेकर पांच-पांच हजार बकरे-बकरियों के फार्म खुल रहे हैं. जब जरूरत हो तो बकरी का दूध निकाल लो, और जब जरूरत पड़े तो बकरे-बकरी को बाजार में बेचकर नकद रुपये ले लो.
सरकार भी अपनी तमाम योजनाओं से बकरी पालकों की मदद कर रही है. करोड़ों रुपये रिसर्च पर खर्च किए जा रहे हैं. नस्ल सुधार के लिए दूसरे देश हमारे यहां से बकरे और बकरियां ले जा रहे हैं. खाड़ी के देश हमारे यहां पलने वालीं कुछ खास नस्ले के बकरों के मीट के दीवाने हैं. हालांकि आमतौर पर बकरे-बकरी का पालन मीट और दूध के लिए होता है. लेकिन कुछ ठंडी और पहाड़ी इलाकों में बकरी महंगे पश्मीना (रेशे) के लिए चांगथांगी और गद्दी नस्ल के बकरे-बकरी भी पाली जाती हैं.
इसे भी पढ़ें: Dairy Export: दुनिया के 136 देश खाते हैं दूध उत्पादन में नंबर वन भारत का बना घी-मक्खन
मीट के लिए पाले जाने वाले बकरे वजन के हिसाब से बिकते हैं. इसके लिए जखराना एक अच्छी नस्लज है. अलवर, राजस्थांन में एक गांव है जखराना. इसी गांव के नाम पर बकरे-बकरी की एक नस्ल को जखराना के नाम से जाना जाता है. इस नस्ल को खासतौर पर दूध और मीट के लिए ही पाला जाता है. देखने में जखराना के बकरे ही नहीं बकरियां भी ऊंची और लम्बी-चौड़ी नजर आती हैं. जखराना के बकरे 55 से लेकर 58 किलो वजन तक के तो पाए जाते ही हैं,
लेकिन कभी-कभी 60 किलो और उससे ज्यादा वजन तक के भी मिल जाते हैं. जखराना की पहचान उसकी लम्बाई-चौड़ाई तो है ही, साथ में इनका काला रंग और मुंह समेत कान पर सफेद रंग के धब्बे भी होते हैं. देश में करीब 9 लाख के आसपास इनकी संख्या है. इसके अलावा बरबरे, जमनापरी, बीटल और ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे भी पाले जा सकते हैं.
गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना के वाइस चांसलर डॉ. इन्द्रजीत सिंह ने किसान तक से बात करते हुए बताया कि बीटल नस्ल की बकरी प्रति दिन पांच लीटर तक दूध देती है. जबकि देसी गाय के दूध का एवरेज 2.5 लीटर प्रति दिन है. गाय को रोजाना सात से आठ किलो सूखा चारा चाहिए, जबकि बकरी के लिए दिनभर में ज्यादा से ज्यादा दो किलो बहुत हो जाता है. बीटल बकरी साल में दो बार बच्चे देती है. एक बार में बकरी दो से तीन बच्चे तक देती है. जबकि गाय बकरी के इस मुकाबले में कहीं नहीं ठहरती है.
इसे भी पढ़ें: World Goat Day: ‘दूध नहीं दवाई है’ तो क्या इसलिए बढ़ रहा है बकरी के दूध का उत्पादन
सीआईआरजी के मुताबकि गाय-भैंस और पोल्ट्री-सूकर के मुकाबले बकरी पालन आसान और सस्ता तरीका है. जरूरत बस वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की है. साथ ही बकरी पालक को अपनी बकरियों की तंदरुस्ती के लिए अलर्ट पर रहते हुए हर वक्त उनकी निगरानी करनी होगी. बकरी पालन की इकलौती और बड़ी कमी बस यही है कि गाय-भैंस के दूध के मुकाबले लोग स्मेल के चलते जल्दी इसके दूध को नहीं पीते हैं.
1 बकरी पालन पोल्ट्री और सूकर पालन के मुकाबले कम पैसों में शुरू किया जा सकता है.
2 गाय-भैंस के 100 रुपये के मुकाबले बकरे-बकरी का चारा 20 रुपये तक का पड़ता है.
3 बकरी का चारा पोल्ट्री के दाने जैसा इंसानी खानपान से मिलता-जुलता नहीं है, इसलिए यह सस्ता पड़ता है.
4 बकरी एक ऐसा जानवर है जो दो से तीन और कभी-कभी चार बच्चे तक देती है.
5 बकरे-बकरी में गाय, सूकर और पोल्ट्री के मुकाबले बीमारी कम लगती हैं. इसलिए इलाज का खर्च भी कम आता है.
6 बकरी का दूध मेडिशनल और जल्दी हजम होने वाला होता है.
7 बकरी की खाल के लैदर का मूल्य ज्यादा होता है. ब्लैक बंगाल बकरी के लैदर की बहुत डिमांड रहती है.
8 बकरे का मीट बहुत स्वादिष्ट, गुणवत्ता वाला और हैल्दी होता है.
9 बकरी के पश्मीना की इंटरनेशनल मार्केट में बहुत डिमांड रहती है.
10 बकरी की मेंगनी और उसका यूरिन मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने में बहुत मूल्यवान होता है.
11 पोल्ट्री और डेयरी की तरह से बकरी के लिए उसका बाड़ा बनाने में कोई तामझाम नहीं करना होता है.
12 बकरियां आसानी से मिल जाती हैं और हर तरह की कृषि वाले वातावरण में अपने को ढाल लेती हैं.
13 कारोबार के लिहाज बकरी पालन अच्छा क्षेत्र है. इसमे दूसरों को नौकरी देने के साथ ही खुद भी मोटी इनकम कर सकते हैं.
14 एक बकरी तीन तरह से फायदा देती है. पहले दूध, फिर मीट और उसके बाद लैदर के लिए खाल.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today