बाग- बगीचा : भारत में बेल का फल अनादि काल से वर्णन में मिलता है. इसका वर्णन प्राचीन भारतीय साहित्य, वेद, रामायण, उपायन विनोद और बृहत् संहिता जैसे ग्रंथों में किया गया है. श्रीफल के नाम से भी जानी जाने वाली बेल को भारत सहित श्रीलंका, उत्तरी मलाया, जावा के शुष्क क्षेत्रों और फिलीपींस के लूजोन द्वीप के कुछ हिस्सों में एक पवित्र वृक्ष के रूप में मान्यता प्राप्त है.आयुर्वेद में बेल एक ऐसा पेड़ है जिसके हर हिस्से का इस्तेमाल स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जाता है. इसकी व्यावसायिक बेल की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल,ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, गुजरात में होती है. अगर बंजर भूमि से मुनाफा कमाना चाहते हैं तो बेल की बागवानी शुरू कर सकते हैं. इसकी बागवानी से बेहतर लाभ मिल सकता है. इसके लिए आपको नई विकसित किस्मों का चयन करना होगा. बाग -बगीचा सीरीज में जानेंगे बेल की बेहतर किस्मों के बारे में.
डॉ बीपी शाही कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के हेड और बागवानी विशेषज्ञ ने किसान तक को बताया कि बेल के बीजू पौधे में रोपण के सात से आठ साल बाद फूल और फलन शूरू होती है. जबकि कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि सस्थानों द्वारा नई विकसित किस्मों जो कलमी और बडेड होती हैं, उन पौधों से चार-पांच साल में ही फल मिलने शुरू हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि मई-जून के महीनों में शाखाओं की नई वृद्धि के साथ ही फूल प्रारंभ हो जाता है. मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई तक फल लगते हैं. फल एक साल पुरानी शाखाओं पर लगते हैं और लगभग 10-11 महीनों में पक जाते हैं. इसी प्रकार सामान्यतः मई -जून फूल आने के अगले में अप्रैल-मई में फल तैयार हो जाते हैं.
बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार बेल की लोकल और स्थानीय किस्में पहले से उगाई जा रही थीं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बेल की कई उन्नत किस्मों का विकास हुआ है. इनमें कई अच्छे गुण जैसे-पेड़ का बौना आकार, फलों का मध्यम वजन, कम रेशा, कम बीज, बेहतर स्वाद हैं. इसी के साथ इन उन्नत किस्मों में फल फटने और गिरने की समस्या भी कम हुई है. व्यावसायिक फलोत्पादन के लिए सघन बागवानी में बेल का रोपण 6 × 6 मी. या 5 × 7 मी. आयताकार विधि की दूरी पर कर सकते हैं.
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सीआईएसएच बेल-1 सीआईएसएच लखनऊ द्वारा मध्यम देरी से पकने वाली किस्म है. इसके फल अप्रैल-मई में तैयार होते हैं. इसके पेड़ लंबे, सीधे बढ़ने वाले, औसत फल वजन लगभग 1.0 किग्रा. होता है. फलों का छिलका पतला, गूदा गहरा पीला, गूदे में कम बीज, प्रति फल 35-40 बीज और गूदा अधिक जो कि लगभग 65 प्रतिशत होता है. पकने पर फलों का रंग नींबू जैसा पीला हो जाता है. इसके पेड़ रोपने के पांच साल में फल देने लगते है. 08-10 वर्ष की आयु वाले पूर्ण विकसित पेड़ों से लगभग 50-80 किग्रा. तक फल मिलते हैं.
सीआईएसएच बेल-2 किस्म भी सीआईएसएच, लखनऊ द्बारा बीजू पौधों से चयनित कर विकसित की गई है. इसके पेड़ बौने और कम फैलाव वाले होते हैं. फलों का औसत वजन लगभग 2.25 किग्रा. होता है. फलों में बीज और रेशे की मात्रा कम होती है और बीजों की संख्या लगभग 50 प्रति फल होती है. गूदे की कुल मात्रा लगभग 61 प्रतिशत होती है. फलों का स्वाद अच्छा और सुगंध उत्कृष्ट होती है. 08-10 साल की आयु वाले पूर्ण विकसित पेड़ से लगभग से 60-90 किग्रा. फल प्राप्त हो जाता है.
नरेंद्र बेल-7 अचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, अयोध्या (एएनडी कृषि विश्वविद्यालय) द्वारा विकसित की गई किस्म है. इस किस्म के पेड़ मध्यम ऊंचाई और कम फैलाव वाले होते हैं. फलों की आकृति गोलाकार और दोनों शिरे चिपटे होते हैं. फलों का औसत वजन 3.0 से 4.5 किग्रा. होता है. गूदे में बीजों की संख्या और रेशे की मात्रा कम और मिठास अधिक होती है. 08-10 साल की आयु वाले पूर्ण विकसित पेड़ों से लगभग 70-80 किग्रा. फल मिलते है.
नरेंद्र बेल-5 एएनडी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किस्म है. इस किस्म के पेड़ मध्यम ऊंचाई के होते हैं और उनमें फल जल्दी लगते हैं. फल का औसत वजन एक किग्रा. होता है. 08-10 वर्ष की आयु वाले पूर्ण विकसित वृक्षों से लगभग 50-60 किग्रा. फल प्राप्त होते हैं.
नरेंद्र बेल-9 किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई के और फैलाव वाले होते हैं. फल आकार में मध्यम और बहुत मीठे होते हैं. गूदा नारंगी पीला और सुगंधयुक्त कम बीज वाला होता है. पर्ण विकसित पेड़ो से लगभग 70-80 किग्रा. फल प्राप्त होते हैं ये भी किस्म एएनडी कृषि विश्वविद्यालय अयोध्या द्वारा विकसित की गई है.
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नरेंंद्र बेल-17 एएनडी कृषि विश्वविद्यालय, अयोध्या द्वारा विकसित किस्म है. इस किस्म के पेड़ फैलाव वाले होते हैं. इसके फलों में बीज थोड़ा अधिक लगभग 100 बीज/फल होते हैं. फलों का औसत वजन लगभग 2.0 किग्रा होता है और मिठास अधिक होती है.
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