सरकारों की तरफ से बार-बार किसानों को अपील की जा रही है कि पराली को आग न लगाई जाए. पर फिर भी कुछ किसानों की तरफ से पराली में आग लगाई जा रही है, जिससे काफी प्रदूषण फैला नजर आ रहा है. जालंधर के कस्बा भोगपुर में पराली को आग लगाने का मामला सामने आया है. यहां किसान अपनी पराली में में आग लगा रहे हैं. इसके बारे में किसानों से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि किसान की मजबूरी है पराली को आग लगाना. क्योंकि इसकी मशीनरी बहुत महंगी है और एक खेत में पराली को नष्ट करने के लिए 5000 से 8000 रुपये का डीजल लग जाता है.
वहीं किसानों ने कहा कि छोटे किसानों की मजबूरी हो जाती है पराली को आग लगाना. पराली पर छोटे किसानों पर सरकारों को ध्यान देना चाहिए.
एक तरफ जहां किसान काफी दिनों से बाढ़ के दौरान हुए नुकसान के मुआवजे की मांग कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मंगलवार 03 अक्टूबर को अंबाला के गांव फतेहगढ़ साहिब में पराली जलाने वाले किसानों का चालान करने के लिए टीमें पहुंची. जिन्हें किसानों ने बंधक बना लिया. वहीं इस मामले में गुस्साए किसना बुधवार को उपायुक्त कार्यालय पहुंचे और उन्होंने कृषि विभाग के एडिशनल एसडीओ सुनील मान के खिलाफ अभद्र व्यवहार करने और किसानों के बारे में गलत बोलने के आरोप लगाए.
वहीं उन्होंने अंबाला डीसी पर भी ये आरोप लगाए की जो उन्होंने वादे किए वो आज तक पूरे नहीं हुए , जिस किसान की टांग कटी थी आज तक उन्हे मुआवजा नहीं मिला. वहीं किसानों का साफ तौर पर ये कहना है की उनके पास पराली जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. अगर कोई अधिकारी आया तो उनका विरोध किया जाएगा. इस प्रदर्शन में किसानों का समर्थन करने के लिए आशा वर्कर्स भी पहुंची और पूरा डीसी ऑफिस किसान आशा वर्कर्स एकता जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा.
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करनाल में कृषि विभाग प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे कार्यों की बदौलत पराली जलाने की घटनाओं में काफी हद तक कंट्रोल हुआ हैं, अभी तक मात्र 10 केस पराली जलाने के सामने आए हैं. पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ नियम अनुसार जुर्माना लिया गया. कृषि विभाग द्वारा ग्रामीण स्तर से लेकर जिला स्तर तक बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इनमें 300 कार्यक्रम ग्रामीण स्तर पर, 6 खंड स्तर और एक जिला स्तर पर आयोजित किया गया. इन कार्यक्रमों में भारी संख्या में किसानों ने भाग लिया. कृषि विभाग से मिले आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार जिले में चार लाख 25 हजार एकड़ में धान की फसल लगाई हुई हैं. इसमें से करीब 01 लाख 60 हजार एकड़ में बासमती तो बाकी में गैर बासमती की फसल लगी हुई है.
कृषि अधिकारी ने बताया पराली जलाने से जहां प्रदूषण बढ़ता है, वहीं मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं. सरकार प्रति एकड़ एक हजार का अनुदान भी दिया जा रहा है. आग लगने की घटनाओं में काफी कमी आई हैं, किसानों से अनुरोध है कि इनसीटू या एक्ससीटू के माध्यम से फसल अवशेष प्रबंधन करें. उन्होंने कहा कि अब तो आईसीयूएल भी पराली की गांठों को ले रहा है, जो कि प्रति मीट्रिक टन 1290 रुपए रेट निर्धारित किया है.
सरकार द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन को चलाई जा रही योजनाओं का असर किसानों पर दिखाई देने लगा हैं, जहां किसान तेजी से फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों को अपना रहे हैं. उसी तेजी से जिले में पराली में आग लगने की घटनाओं में काफी कमी दर्ज की जा रही है. अगर 2021 में पराली में आग लगने की घटनाओं की बात करें तो मामले 957 दर्ज किए गए थे, वहीं 2022 में मामले घटकर 309 तक पहुंच गए.
(जालंधर से ANI, अंबाला से कमलप्रीत और करनाल से कमलदीप की रिपोर्ट)
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