यह एक बेल वाली कद्दूवर्गीय सब्जी हैं, जिसको बड़े खेतों के अलावा छोटी गृह वाटिका में भी उगाया जा सकता हैं. कद्दूवर्गीय फसलों में तोरई की खेती को लाभकारी खेती में माना जाता है और तोरई की खेती को व्यावसायिक फसल भी कहा जाता है किसान अगर इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से करें तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. जिसे अच्छी कमाई की जा सकती हैं. तोरई की खेती पुरे भारत में की जाती है. तो वही महाराष्ट्र में 1147 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती हैं.
इसकी खेती ग्रीष्म और वर्षा खरीफ दोनों ऋतुओं में की जाती हैं. इसकी खेती को नगदी के तौर पर व्यावसायिक फसल के रूप में किया जाता है.इसकी सब्जी की भारत में छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों में बहुत मांग है क्योंकि यह अनेक प्रोटीनों के साथ खाने में भी स्वादिष्ट होती है. इस सब्जी की बाजारो में हमेशा मांग रहती है.
किसान तोरई की खेती मानसून और गर्मी के इसकी खेती कर सकते हैं. तोरोई को ठंड के मौसम में भी ज्यादा उगता है इसकी रोपण अच्छी जल निकासी वाली भारी मध्यम मिट्टी में किया जाना चाहिए. तोरई की अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मध्यम और भारी मिट्टी अच्छी मानी जाती है जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए.
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पूसा नस्दार : इस किस्म के फल एक समान लंबे और हरे रंग के होते हैं. यह किस्म 60 दिनों के बाद फूलती है. प्रत्येक विलो में 15 से 20 फल लगते हैं.
Co-1: यह एक हल्की किस्म है और फल 60 से 75 सेमी लंबे होते हैं. प्रत्येक व्हेल को 4 से 5 किलो फल की आवश्यकता होती है.
तोरई की खेती करने से पहले मृदा एवं जल का परीक्षण किसानों को जरूर कर लेना चाहिए. मृदा परीक्षण से खेत में पोषक तत्वों की कमी का पता चल जाता है एवं किसान परीक्षण रिपोर्ट के हिसाब से खाद और उर्वरक का प्रयोग कर उचित पैदावार ले सकता है. रोपण के समय 20 किग्रा एन/हे 30 किग्रा पी एवं 30 किग्रा के प्रति हेक्टेयर डालें तथा 20 किग्रा एन की दूसरी खुराक फूल आने के समय डालें.साथ ही 20 से 30 किलो एन प्रति हेक्टेयर, 25 किलो पी और 25 किलो के रोपण के समय डालें. 25 से 30 किग्रा एन की दूसरी किश्त 1 माह में देनी होगी.
तोरई की फसले मुख्य रूप से केवड़ा और भूरी रोगों से प्रभावित होती हैं. तोरई फसल को रोगों से बचाने और अच्छा उत्पादन पाने के लिए लिए इसके बीजों को बुवाई से पहले थाइरम नामक फंफुदनशक 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए.1 लीटर पानी का छिड़काव करें और केवड़ा के नियंत्रण के लिए डायथीन जेड 78 हेक्टेयर में 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें.
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