Punjab: गेहूं-धान फसली चक्र के बीच किसान कर रहे हैं मक्के की खेती, एग्रीकल्चर एक्सपर्ट को यह पसंद नहीं, जानें क्यों?

Punjab: गेहूं-धान फसली चक्र के बीच किसान कर रहे हैं मक्के की खेती, एग्रीकल्चर एक्सपर्ट को यह पसंद नहीं, जानें क्यों?

पंजाब के कई जिलों में जलस्तर काफी नीचे जा चुका है. वहीं पिछले कुछ सीजन से यहां के किसान गेहूं की कटाई के तुरंत बाद अप्रैल-जून की अवधि में ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती कर रहे हैं. जिसे एग्रीकल्चर एक्सपर्ट धान की दूसरी फसल उगाने जैसा मान रहे हैं.

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Punjab: गेहूं-धान फसली चक्र के बीच किसान कर रहे हैं मक्के की खेती, एग्रीकल्चर एक्सपर्ट को यह पसंद नहीं, जानें क्यों?पंजाब के किसान गेहूं-धान फसली चक्र के बीच कर रहे हैं मक्के की खेती, सांकेतिक तस्वीर

ग्रीष्मकालीन मक्का किसान व्यापारियों द्वारा उनकी उपज का सही मूल्य नहीं दिए जाने से भले ही नाराज हो सकते हैं. लेकिन कृषि विशेषज्ञ दो फसली धान-गेहूं चक्र में तीसरी फसल लेने की बढ़ती प्रवृत्ति के तहत फसल बोने के विचार के खिलाफ हैं. वहीं, पंजाब के कई जिलों में जमीन में पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है लेकिन इसके बावजूद, डेयरी फार्मिंग के लिए साइलेज की मांग के कारण ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती में तेजी आई है. दरअसल, पिछले कुछ सीज़न में, यहां के किसानों ने गेहूं की कटाई के तुरंत बाद अप्रैल-जून की अवधि में ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती शुरू कर दी है. 

ग्रीष्मकालीन मक्के की फसल के बाद किसान पीआर-126 या बासमती जैसी कम अवधि वाली धान की किस्मों की बुवाई कर देते हैं. वहीं कम अवधि की धान की इन किस्मों की उपलब्धता ने तीसरी फसल लेने की प्रवृत्ति में बड़ा योगदान दिया है.

धान की दूसरी फसल उगाने जैसा है मक्के की खेती 

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक अजमेर सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि पीएयू ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती की प्रैक्टिस या पद्धति का समर्थन नहीं करता है. यह बिल्कुल धान की दूसरी फसल उगाने जैसा है. इसमें बहुत अधिक पानी की खपत होती है और इससे बचना चाहिए. यदि चारे की मांग को पूरा करना है तो यह बरसात के मौसम में भी किया जा सकता है. मक्के का पारंपरिक मौसम जून से सितंबर तक होता है.

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उन्होंने कहा कि किसानों को इसके बजाय वसंत मक्के का विकल्प चुनने की सलाह दी गई है, जो जनवरी-फरवरी की अवधि में बोया जाता है. उन्होंने कहा “इस अवधि में भी आलू, वसंत मक्का और धान के लिए एक अलग फसल चक्र है. लेकिन, किसान सोचते हैं कि वे गेहूं और धान के बीच दो महीने के अंतर का उपयोग कर सकते हैं और ग्रीष्मकालीन मक्का का विकल्प चुन सकते हैं. हालांकि, हमने सिफारिश की है कि इस अवधि में खेतों को सौरीकरण के लिए परती छोड़ दिया जाए ताकि कीटों के चक्र को तोड़ा जा सके.” 

धान की उन्नत किस्म पीआर-126 क्यों गया था विकसित?

संगरूर के एक प्रगतिशील किसान सतिंदर सिंह ने कहा, “2016 में पीआर-126 जैसी जल्दी पकने वाली धान की किस्मों को विकसित करने के पीछे का मकसद भूजल का संरक्षण करना था. लेकिन किसान अब इसका इस्तेमाल दूसरी फसल उगाने के लिए कर रहे हैं."

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रोपड़ के एक किसान प्रीतिंदर सिंह ने कहा, चारे के लिए मक्के का उपयोग एक अच्छा विकल्प है और प्रति एकड़ 40,000 रुपये तक मिलते हैं. प्रीतिंदर ने कहा,“डेयरी किसान मक्का और पौधे सहित पूरी उपज खरीदते हैं. इसे एक गड्ढे में एकत्र किया जाता है और पूरे वर्ष मवेशियों को खिलाने के लिए उपयोग किया जाता है. यह दूध की पैदावार और मवेशियों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है.” 

किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर बेचना पड़ रहा मक्का 

आमतौर पर किसान मक्का साइलेज क्षेत्र के अलावा बाजार में भी व्यापारियों को बेचते हैं. हालांकि, इस सीजन में निराशा हाथ लगी है. दरअसल, वर्तमान में ग्रीष्मकालीन मक्के की कटाई चल रही है. हालांकि, किसानों का दावा है कि उन्हें सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इस वर्ष मक्के के लिए एमएसपी 2090 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले, व्यापारी सूखा मक्का, जो खरीद नियमों को पूरा करता है, 1,500-1,550 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीद रहे हैं. जबकि, अधिक नमी वाली ताजी कटी मक्का किसानों से 950-1,100 रुपये प्रति क्विंटल खरीद रहे हैं.

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