आगरा का आलू देशवासियों को ही नहीं विदेशियों को भी भाता है. आगरा के आलू के दीवाने अरब देशों से लेकर रूस और मॉरिशस तक हैं. लेकिन बीते दो साल से इन्हें आगरा का आलू खाने को नहीं मिल पा रहा है. जानकारों की मानें तो एक कागज के टुकड़े की वजह से आगरा का आलू विदेशों की उड़ान नहीं भर पा रहा है. जो आलू अच्छी कीमत पर विदेशों में बिक सकता है उसे भी देश में ही खपाया जा रहा है. जबकि दो साल पहले तक आगरा से बड़ी मात्रा में आलू दूसरे देशों को बेचा जा रहा था.
युवराज का कहना है कि कुफरी संगम वैराइटी का आलू मल्टीपरपज होता है. कहने का मतलब है कि आप इसे सब्जी में भी इस्तेमाल कर सकते हैं और चाहें तो प्रोसेसिंग में भी ले सकते हैं. मतलब दो काम के लिए दो अलग वैराइटी का आलू खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. कुफरी संगम आलू आगरा में होता है, लेकिन इसकी मात्रा कम है. क्योंकि कुफरी संगम का तो बीज भी ढंग से नहीं मिल पाता है. जबकि आगरा की मिट्टी कुफरी संगम के लिए बेहद उपयोगी है. यहां की मिट्टी में पैदावार भी खूब होती है.
देश के बड़े आलू एक्सपोर्टर और प्रगतिशील किसान युवराज परिहार का कहना है, ‘साल 2020 से पहले बिना किसी परेशानी के आलू दूसरे देशों को जा रहा था. किसी भी तरह की कागजी खानापूर्ति और अड़चन भी नहीं थी. अरब देशों के साथ ही रूस आगरा के आलू के बड़े खरीदार हैं. लेकिन कोरोना के बाद से हालात थोड़े बदल गए. अरब देश हों या फिर रूस और मॉरिशस सभी ने जांच के बाद ही आलू खरीदने की शर्त लगा दी. हालांकि जांच में आगरा के आलू को कोई खतरा नहीं है. आलू की जिस बीमारी का डर दूसरे देशों को होता है, वो आगरा के आलू में है ही नहीं. लेकिन यह कहने भर से काम नहीं चलेगा. इसके लिए सर्टिफिकेट चाहिए. और सर्टिफिकेट देने का काम सरकारी एजेंसियों का है. लेकिन तीन-चार एजेंसियों में से कोई भी हमारी सुनने को तैयार नहीं है.’
युवराज परिहार ने बताया कि जांच के लिए आगरा के आलू को महाराष्ट्र या पश्चिम बंगाल ले जाना पड़ता था. वहां से सर्टिफकेट लेने के बाद आलू विदेशों में जाता था. यह उल्टी चाल चलने पर भी आगरा का करीब 20 लाख पैकेट (एक पैकेट 25 किलो) एक्सपोर्ट हो जाता था. अगर यही सर्टिफिकेट आगरा में ही मिल जाए तो आलू एक्सपोर्ट की यह मात्रा बढ़ सकती है. क्योंकि विदेशों में जिस आलू की डिमांड है वो आगरा में खूब होता है. आगरा में 70 से 75 हेक्टे्यर जमीन पर आलू की खेती होती है.
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