...और फिर रुलाई फूट पड़ी. काफी देर तक अपने आंसू रोकने की कोशिश की. शायद इस संकोच से कि कहीं मैं कुछ गलत ना समझ जाऊं या सोचा कुछ यूं होगा कि आखिरकार कोई तो है जो 15 दिन से दिल में दबे दर्द को सुनने आया. लेकिन यह तकलीफ़ इतनी ज्यादा थी कि आखिरकार उनका रुआंसा मन मेरे कंधे पर आ टिका. और अब तक कोरों से टपके आंसू मेरे कंधे को भिगा चुके थे. ये आंसू हैं सुनील भाई के. गुजरात के पालनपुर जिले में डीसा से अपने परिवार सहित हर साल राजस्थान आते हैं. आने की वजह ये है कि इन्होंने सिरोही जिले के पीथापुरा गांव में आम के बागों को ठेके पर ले रखा है. एक बार में ही पांच साल के लिए 2500 केसर आम के पेड़ों का बाग 80 लाख रुपये में ठेके पर लिया था. ये तीसरा साल था. लेकिन मई के अंत और जून के पहले हफ्ते में आई बारिश और आंधी ने इस बार की पूरी फसल ही खराब कर दी.
सुनील, इनके कई परिवार और रिश्तेदारों ने आपस में मिलकर रेवदर तहसील के पीथापुरा गांव में आम का बाग ठेके पर लिया हुआ है. सुनील कहते हैं, “हम केसर आम के बाग ठेके पर लेते हैं. इसमें करीब 2500 पेड़ आम और एक हजार पेड़ चीकू के हैं. इस बार आमों में सबसे अच्छा फूल और फल आया था. उम्मीद थी कि फल से आमदनी भी अच्छी होगी, लेकिन अंधड़ ने सब बर्बाद कर दिया. फसल का करीब 75 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो चुका है. बाकी 25 प्रतिशत का भी भाव अच्छा नहीं मिल रहा. क्योंकि वो माल भी बारिश और अंधड़ से सैकेंड क्वालिटी का हो चुका है.”
इस साल ठेके पर लिए बाग का यह तीसरा साल था. जो नुकसान हुआ, वो पिछले दो सालों में हुए मुनाफे से कहीं ज्यादा है. इस नुकसान से हम अगले पांच क्या 10 साल में भी नहीं उबर पाएंगे. चूंकि हमने बाग पांच साल के लिए लिया है, इसीलिए अगले दो साल भी हम इसे करने आएंगे, लेकिन मुनाफे की उम्मीद अब हमने छोड़ दी है.
सुनील और इनके साथ आए बाकी लोगों ने 15 लाख रुपये डीसा में किसी साहूकार से उधार लिए थे. ताकि यहां आम के बाग के मालिक को बतौर एडवांस दे सकें. इस पर ब्याज डेढ़ रुपये सैंकड़ा है. आम के बाग में सुनील के साथ पार्टनर महेश भाई किसान तक से कहते हैं, “हमारा भले कितना ही नुकसान हुआ हो, लेकिन बाग के मालिक को तो पूरा पैसा देना पड़ेगा. वो हमें किसी भी तरह की रियायत नहीं देगा.”
महेश के साथ ही बागों की देखरेख में आई मीना बेन कहती हैं, “अगर बगीचे के मालिक का पैसा वक्त पर नहीं दिया तो वो हमें घर भी नहीं जाने देगा. हमें बगीचे में ही सालभर काम करना होगा.”
महेश कहते हैं, “पांच साल के लिए 80 लाख रुपये सिर्फ बाग के मालिक को देने हैं. इसके अलावा हमारा हर साल 2-3 लाख रुपये देखरेख और आम को बाजार तक ले जाने में होती है. इस तरह पीथापुरा का यह बाग हमें करीब 90 लाख रुपये में पड़ेगा. देखरेख में खाद, पानी, दवाइयां शामिल होती हैं.”
महेश बताते हैं कि आम के साथ-साथ हजार पौधों का चीकू का बगीचा भी पूरी तरह खराब हो चुका है. चीकू थोक में पहले ही काफी कम भाव में जाता है, लेकिन इस बार तो हमें इससे कुछ हजार रुपये भी नहीं मिलेंगे.
दाना भाई भी सुनील, महेश और अन्य परिवारों के साथ ही पीथापुरा आए थे. बीते दिनों आए अंधड़ से एक आम का पेड़ टूटकर इनके पैर पर गिर गया. तब से दाना भाई के पैर पर पट्टी बंधी है. वे किसान तक को बताते हैं कि उनके पास अब ड्रेसिंग कराने के भी पैसे नहीं बचे हैं. क्योंकि आम बेचकर कुछ पैसे रोजाना आते थे, अब वे भी नहीं आ पा रहे हैं. पांच दिन से तो हालत ज्यादा ही खराब है. बच्चों के खाने-पीने के भी लाले पड़ गए हैं.
रेवदर जंगली इलाका है. इसीलिए बगीचे में भालू, नीलगायों का आना आम बात है. इन्हीं खतरों के बीच सुनील, महेश, मीना बेन सहित 10-10 लोगों के पांच परिवार टीन शेड के नीचे रहते हैं. सुनील कहते हैं कि एक बार तो यहां रात में बघेरा भी आ गया था. इसीलिए आम की खेती इसके स्वाद की तरह मीठी और सरल नहीं है.
गुजरात से आए ये परिवार अभी नाउम्मीदी में जी रहे हैं. परेशान हैं और बेहद कष्ट में हैं. तकलीफ कम होने की बजाय बढ़ रही है. नया तनाव लेकर आया है चक्रवाती तूफान ‘बिपरजॉय’. मौसम विभाग के मुताबिक 15 जून को यह तूफान गुजरात के तट से टकराएगा. सिरोही गुजरात के बॉर्डर पर बसा हुआ जिला है. इसीलिए इनकी चिंता और बढ़ गई हैं. सुनील कहते हैं कि अगर इस तूफान से हमारा नुकसान हुआ तो जिंदगीभर इससे उबर नहीं पाऊंगा.
इन सभी 10 परिवारों को अब सरकार से मदद की उम्मीद है. सुनील हाथ जोड़कर कहते हैं कि हमारा इतना नुकसान हो चुका है कि इसकी पूर्ति नहीं होगी. इसीलिए अब हमें सरकार और प्रशासन से ही मदद की उम्मीद है.
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