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चावल के एक्सपोर्ट से सरकार की हो रही अच्छी कमाई, अभी निर्यात शुल्क हटाने के पक्ष में नहीं हैं कारोबारी

चावल के एक्सपोर्ट से सरकार की हो रही अच्छी कमाई, अभी निर्यात शुल्क हटाने के पक्ष में नहीं हैं कारोबारी

विदेशों में भारतीय चावल की मांग अच्छी है. 20 परसेंट निर्यात शुल्क लगने के बावजूद विदेशी कारोबारी भारतीय चावल की मांग अधिक कर रहे हैं. इससे सरकार की कमाई बढ़ रही है. इसे देखते हुए भारत के निर्यातक संघ ने सरकार से अभी निर्यात शुल्क को नहीं हटाने की बात कही है.

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विदेशी बाजारों में देसी अनाज का जलवा, फोटो साभार: freepik विदेशी बाजारों में देसी अनाज का जलवा, फोटो साभार: freepik

विदेशों में चावल की मांग लगातार बनी हुई है. इससे भारतीय व्यापारियों और निर्यातकों को भी बेहतर लाभ मिल रहा है क्योंकि उनकी सप्लाई विदेशों में जा रही है. हालांकि देश में चावल के दाम बढ़ने के बाद सरकार ने निर्यात शुल्क लगाया था. उसके बारे में चावल निर्यातक संघ (TREA) का कहना है कि वे अभी इस पक्ष में नहीं हैं कि सरकार निर्यात शुल्क को वापस ले क्योंकि इससे सरकार की भी अच्छी कमाई हो रही है. निर्यातक संघ का मानना है कि जब विदेशों में मांग घटेगी तब सरकार से निर्यात शुल्क हटाने या कम करने की मांग की जाएगी. अभी जैसा चल रहा है, वैसा ठीक है. 

टीआरईए के अध्यक्ष बीवी कृष्णा राव ने कहा कि भारतीय चावल निर्यातक सरकार से 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क को वापस लेने की मांग तब तक नहीं करेंगे जब तक कि शिपमेंट की मात्रा कम नहीं हो जाती. निर्यात शुल्क के बावजूद भारतीय चावल की मांग बढ़ी है. कुछ विदेशी खरीदार सफेद कच्चे चावल को खरीदने के बजाय हल्का उबला चावल खरीद रहे हैं. इससे निर्यात शुल्क ने सरकार की मदद की है. 8 सितंबर 2022 को, केंद्र ने कम बारिश से फसल प्रभावित होने की आशंका के बाद घरेलू कीमतों को कम रखने के लिए सफेद और भूरे चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया है. यह कदम ऐसे समय में आया जब वैश्विक बाजार में भारतीय चावल की मांग अधिक थी. उस वक्त थाइलैंड और वियतनाम जैसे देश चावल को बहुत अधिक कीमतों पर बेचने की पेशकश कर रहे थे.

राव ने कहा कि अगर किसी तिमाही में निर्यात की मात्रा में गिरावट आती है तो हम किसी उपाय के लिए सरकार से संपर्क कर सकते हैं. तब तक हम ड्यूटी में कटौती की मांग नहीं कर सकते.

भारतीय चावल की बनी हुई है मांग

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जनवरी अवधि के दौरान गैर बासमती निर्यात 14.56 मिलियन टन था, जो कि एक साल पहले की अवधि में 14.01 मिलियन टन था. सितंबर और जनवरी के बीच, निर्यात एक साल पहले के 5.8 मिलियन टन से मामूली रूप से 5.48 मिलियन टन कम था. एम मदन प्रकाश, अध्यक्ष कृषि निर्यातक संघ (एसीईए) के अनुसार, भारतीय चावल की मांग तेज बनी हुई है. 

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बल्क लॉजिक्स के निदेशक वीआर विद्या सागर ने कहा कि भारतीय चावल की मांग बनी हुई है, खासतौर पर उबले चावल की.  उन्होंने कहा कि गिरावट के बाद कीमतें अब स्थिर हो गई हैं, फ़ीड के रूप में उपयोग के लिए वियतनाम से 25 प्रतिशत टूटे सफेद चावल की अच्छी मांग है.

उबले चावल की मांग अच्छी

भारतीय उबले चावल की कीमत लगभग 390 डॉलर प्रति टन है. जबकि सफेद चावल की कीमत 400 डॉलर प्रति टन से अधिक है. 25 प्रतिशत सफेद चावल की बिक्री 380 से 410 डॉलर के बीच चल रही है. दाम इस बात पर निर्भर है कि चावल की क्वालिटी कैसी है. वहीं कोटोनौ, कैसाब्लांका और जॉर्डन में आधे उबले चावल की मांग अच्छी है.