Ethanol: असम में पहली बार बांस से बनेगा एथेनॉल, हर साल होगी पांच लाख टन की जरूरत

Ethanol: असम में पहली बार बांस से बनेगा एथेनॉल, हर साल होगी पांच लाख टन की जरूरत

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रोहित जोशी ने बताया कि लम्बे, ठोस और मोटे बांस की एथेनॉल बनाने में बहुत डिमांड रहेगी. इसके अलावा अब बांस से बहुत सारे ऐसे आइटम बनाए जा रहे हैं जो पहले प्लास्टिक के बनते थे. इस तरह की इंडस्ट्री से भी बांस का जो वेस्ट निकलेगा उसका इस्तेमाल एथेनॉल बनाने में किया जा सकेगा. 

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Ethanol: असम में पहली बार बांस से बनेगा एथेनॉल, हर साल होगी पांच लाख टन की जरूरतपालमपुर में लगे बांस के पेड़. फोटो क्रेडिट-किसान तक

पेट्रोल की निर्भरता को कम करने के लिए केन्द्र सरकार एथेनॉल बनाने पर जोर दे रही है. बहुत सारे अनाज के साथ ही गन्ने का इस्तेमाल भी एथेनॉल बनाने में किया जा रहा है. सरकारी चाहती है कि साल 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसद एथेनॉल की ब्लेंडिंग की जाए. लेकिन ये पहला मौका होगा जब बांस का इस्तेमाल एथेनॉल बनाने में किया जाएगा. बांस से एथेनॉल बनाने के लिए असम में एक प्लांट बनाने का काम चल रहा है. नुमालीगढ़ रिफाइनरी, गोलाघाट, असम ने एक आरटीआई में ये जानकारी दी है. 

प्राइवेट कंपनी के साथ मिलकर खुद नुमालीगढ़ रिफाइनरी बांस से एथेनॉल बनाएगी. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक एथेनॉल बनाने के लिए रिफाइनरी को हर साल करीब पांच लाख टन बांस की जरूरत होगी. इतना ही नहीं बांस की खेती करने वाले किसान और बांस से दूसरे प्रोडक्ट बनाने वालों को अब आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलेंगे. देश में इस वक्त 1.60 लाख स्क्वायर किमी के एरिया में बांस की खेती होती है. ये विशवा के कुल बांस उत्पादन एरिया का 80 फीसद है. 

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नार्थ-ईस्ट ही नहीं उत्तर भारत में भी होगी बांस की खेती 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के सीनियर साइंटिस्ट  और बैम्बू एक्सपर्ट डॉ. रोहित जोशी ने किसान तक को बताया कि बांस की खेती करने वालों के लिए ये एक बड़ी खुशखबरी है. क्योंक‍ि अगर असम में बांस से एथेनॉल बनाने का प्लांट शुरू हो रहा है तो दूसरे राज्यों में भी जरूर होगा. नार्थ-ईस्ट के राज्यों के अलावा भी देश के दूसरे राज्यों में बांस की खेती हो रही है. बांस की 100 से ज्यादा वैराइटी हैं. और सबसे बड़ी बात ये कि एथेनॉल के लिए जिस तरह का बांस चाहिए होगा वो कहीं भी, किसी भी जमीन पर हो सकता है. उत्तर भारत के कई राज्यों में भी बांस की खेती की तैयारी की जा रही है.

और एक खास बात ये है कि साल 2017 तक बांस फारेस्ट क्रॉप में शामिल था. इसे काटने के लिए अनुमति लेनी होती थी. लेकिन 2017 में ही वन विभाग ने अपने एक्ट में बदलाव कर इसे कमर्शियल क्रॉप में शामिल कर दिया है. इसके चलते खेती करने वाले किसान ही नहीं अब बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसमे शामिल हो गई हैं.

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तेल कंपनियों ने एक साल में खरीदा 433 करोड़ लीटर एथेनॉल

हाल ही में तेल मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि साल 2021-22 में एथेनॉल की ब्लेंडिंग करते हुए 433.6 करोड़ लीटर पेट्रोल की बचत की गई है. यानि की एक साल में ही इतना एथेनॉल खरीदा गया था. वहीं एक अन्य़ रिपोर्ट के मुताबिक यूपी, महाराष्ट्र , तमिलनाडू, कर्नाटक और गुजरात में सबसे ज्यादा एथेनॉल पेट्रोल में मिलाया जा रहा है. 

 

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