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Shrimp: झींगा का सीड तैयार करने के लिए अब जरूरी नहीं होगा समुद्री पानी, जानें वजह

Shrimp: झींगा का सीड तैयार करने के लिए अब जरूरी नहीं होगा समुद्री पानी, जानें वजह

केंद्रीय खारा जल जलकृषि संस्थान (सीबा), मुम्बई की आर्टिफिशल समुद्री पानी तैयार करने की इस तकनीक से गैर समुद्री तटीय राज्यों में झींगा हैचरी की स्थापना होगी, स्थानीय स्तर पर ही गुणवत्तापूर्ण बीजों के उत्पादन में मदद मिलेगी और उत्पादकता बढ़ेगी. किसानों और कारोबारियों को फायदा होगा. 

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झींगा मीठे पानी का हो या फिर खारे पानी का, उसे अपना जीवनचक्र पूरा करने के लिए खारे पानी की जरूरत ही पड़ती है. जैसे मीठे पानी के झींगा को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 12 पीपीटी स्तर के खारे पानी की जरूरत होती है. यही वजह है कि जो गैर समुद्री तट वाले राज्य हैं वहां झींगा का पालन और झींगा की हैचरी बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है. एक्सपर्ट की सलाह पर ऐसे इलाकों में मीठे पानी का झींगा पालन किया जाता है. लेकिन कम वक्त के लिए ही सही लेकिन खारे समुद्री पानी की जरूरत फिर भी पड़ती है. 

खासतौर पर हैचरी के लिए समुद्री पानी चाहिए होता है. इनलैंड मछली पालन करने वाले ऐसे ही कुछ राज्यों की परेशानी को दूर करने के लिए केंद्रीय खारा जल जलकृषि संस्थान (सीबा), मुम्बई ने लैब में समुद्र का खारा पानी तैयार किया है. कुछ जरूरी प्रक्रिया अपनाकर इस पानी को तीन साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है. 

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लैब ही नहीं घर पर ऐसे तैयार कर सकते हैं समुद्री पानी 

सीबा के जानकारों की मानें तो विशाल ताजे पानी के झींगा के जीवन चक्र को पूरा करने के लिए खारे पानी की जरूरत को सात तरह की चीजों से पूरा किया जाता है. ये पूरी तरह से एक रासायनिक फार्मूला है. क्योंकि खारे पानी वाले ज्यादातर खनिज और सूक्ष्म लवण प्राकृतिक मीठे पानी में मौजूद होते हैं, इसलिए सात प्रमुख लवणों के साथ एक सरल फार्मूला तैयार किया गया है. रिसर्च की शुरुआत में आर्टिफशल समुद्री पानी तैयार करने के लिए लैब के ग्रेड कैमिकल का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन बाजार को देखते हुए ये थोड़ा महंगा पड़ रहा था. इसी को ध्यान में रखते हुए फिर इस फार्मूले से 12 पीपीटी का खारा पानी तैयार करने के लिए वाणिज्यिक ग्रेड नमक का इस्तेमाल किया गया. 

आर्टिफिशल खारा पानी तैयार करने का तरीका ये है कि पहले एक अच्छी तरह से साफ किए गए टैंक में जरूरत के मुताबिक फिल्टर किया हुआ ताज़ा पानी भर लें. टैंक का आकार और पानी की मात्रा हैचरी की उत्पादन क्षमता पर निर्भर करती है. पानी भरने के बाद विभिन्न लवणों की जरूरत वाली मात्रा की गणना अंदाजे के वजाय तौल कर करें. लवणों को एक के बाद एक अच्छी तरह से मिलाकर कम से कम दो से तीन दिन के लिए रख दें. तीन दिन के बाद दोबारा से पानी को फिल्टर करें. और इस तरह से झींगा की हैचरी के लिए आर्टिफिशल समुद्री पानी तैयार हो जाता है.   

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तीन साल तक पानी को ऐसे कर सकते हैं इस्तेमाल 

एक्सपर्ट का कहना है कि आर्टिफिशल समुंद्री पानी से संचालित होने वाली हैचरी को फ्लो थ्रू या रिसर्कुलेटरी सिस्टम का पालन करके संचालित किया जा सकता है. सिस्टम के माध्यम से प्रवाह में, पानी का किफायती उपयोग करने के लिए साइफन किए गए पानी को उपचार के लिए एक अलग टैंक में जमा किया जाता है और हैचरी संचालन के लिए दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. पानी से अमोनिया और नाइट्रेट को हटाने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी के टैंक की सतह पर तैरने वाले पानी को एक सप्ताह तक रीसर्क्युलेटरी सिस्टम से जुड़े जैविक फिल्टर से लैस एक अलग टैंक में पंप किया जाता है. यह इस्तेमाल किए गए पानी से अमोनिया और नाइट्राइट को हटा देता है. अगर पानी की गुणवत्ता ठीक से बनाए रखनी है और लगातार इस्तेामाल करना है तो इसी पानी में ताजा पानी और तैयार फार्मूला मिलाकर तीन साल या उससे भी ज्यादा वक्त तक किया जा सकता है.

यहां बनी हैं आर्टिफिशल समुद्री पानी की हैचरी

केंद्रीय खारा जल जलकृषि संस्थान (सीबा), मुम्बई की इस तकनीक का इस्तेमाल करके महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, कर्नाटक, उड़ीसा, केरल, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में डेमो दिया जा चुका है. वहीं आर्टिफिशल समुद्री पानी का इस्तेमाल करके मीठे पानी की झींगा हैचरियां त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर में संचालित की जा रही हैं. असम में तीन झींगा हैचरी की स्थापना के लिए मत्स्य पालन विभाग, असम सरकार और सीबा के बीच समझौता भी हो चुका है. जल्द ही बिहार और यूपी में भी एक-एक हैचरी स्थापित की जाएगी.