अगर आप नॉन वेजिटेरियन थे, लेकिन अब आपने पूरी तरह से नॉनवेज खाना छोड़ दिया है. लेकिन नॉनवेज छोड़ने के बाद आपको वेजिटेरियन खाने में मजा नहीं आ रहा है. कभी-कभी आपका दिल नॉनवेज के उस स्वाद को लेने का करता है तो शिटाके मशरूम इसमे आपकी मदद करेगा. इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्ट का दावा है कि शिटाके मशरूम का स्वाद एकदम नॉनवेज के जैसा ही है. यही वजह है कि स्वाद और उसमे मौजूद कुछ खास तत्वों के चलते इसके रेट भी हजारों रुपये किलो में हैं.
भारत में इसकी डिमांड को देखते हुए बड़ी मात्रा में यह आयात किया जा रहा है. नॉर्थ-ईस्ट में इसका उत्पादन भी खूब हो रहा है और वहां के स्थानीय बाजारों में इसकी डिमांड भी बहुत है. यही वजह है कि शिटाके मशरूम का उत्पादन बढ़ाने के लिए आईएचबीटी और सरकार का एमएसएमई विभाग स्थानीय लोगों को इसकी ट्रेनिंग भी दे रहा है. किसानों को इसका बीज तैयार करने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. लेकिन बारिश के अलावा भी दूसरे महीनों में इसका उत्पादन सभी जगह हो इसके लिए आईएचबीटी रिसर्च कर रहा है.
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आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रक्षक कुमार ने किसान तक को बताया कि सबसे बड़ी बात तो ये है कि वेजिटेरियन लोगों के लिए विटामिन डी लेने के सोर्स बहुत कम हैं. जबकि शिटाके मशरूम में विटामिन डी खूब है. इसके अलावा प्रोटीन की मात्रा तो इसमे भरपूर है. अगर आप 100 ग्राम शिटाके मशरूम खाते हैं तो आपको उसमे 24 ग्राम प्रोटीन मिलेगा. इसमे मेडिसिनल वैल्यू भी है. इसके अंदर कैंसर से लड़ने वाला तत्व है. साथ ही 11 तरह के ऐसेंशियल अमाइनो एसिड भी हैं. और जैसा आप जानते हैं कि इसके नॉनवेज वाले स्वाद के चलते इसे बहुत सारे लोग पसंद करते हैं.
डॉ. रक्षक ने बताया कि डिमांड और सप्लाई के चलते शिटाके मशरूम के रेट काफी महंगे हो गए हैं. बाजार में इसके दाम 2.5 हजार रुपये किलो से लेकर तीन हजार रुपये किलो तक हैं. जबकि सामान्य बटन मशरूम बाजार में 250 से 300 रुपये किलो तक बिक रहा है. भारत में इसकी डिमांड को पूरा करने के लिए चीन, मलेशिया, जापान और थाइलैंड से इस मशरूम का आयात किया जा रहा है. जबकि नॉर्थ-ईस्ट के मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम में खासतौर पर इसका उत्पादन किया जा रहा है.
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बाजार की डिमांड को देखते हुए सिक्किम में किसानों के तीन क्लस्टर बनाए गए हैं. एक क्लस्टकर में 250 किसान रखे गए हैं. इसके साथ ही नागालैंड में भी एक क्लस्टर बनाया जा रहा है. क्लस्टर बनाने के बाद आईएचबीटी और एमएसएमई मिलकर किसानों को ट्रेनिंग देते हैं.
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