बढ़ता प्रदूषण न सिर्फ इंसानों के लिए घातक है बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार है. समय के साथ प्रदूषण का स्तर इस हद तक बढ़ गया है कि अगर इसे रोका नहीं गया तो यह निकट भविष्य में गैस चैंबर का रूप ले सकता है. जो देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन सकता है. ऐसे में देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां के प्रदूषण की कहानी किसी से छिपी नहीं है. दिल्ली सरकार प्रदूषण कम करने और दिल्ली को हरा-भरा बनाने की कोशिश कर रही है ताकि दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को रोका जा सके.इसी प्रयास में जुटी दिल्ली सरकार ने राजधानी में हरियाली बढ़ाने के लिए हर घर के दरवाजे पर मुफ्त पौधे और गमले देने की योजना बनाई है.
दिल्ली पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इस बात की घोषणा की कि दिल्ली सरकार राजधानी में हरियाली की मात्रा बढ़ाने के लिए निवासियों के दरवाजे पर मुफ्त पौधे और गमले देगी. गोपाल राय ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि पौधों की प्रजातियों की पहचान करने के लिए एक टीम तैयार की जा रही है, ताकि पौधों की रोपाई के बाद जो पौधे मर जाते हैं उनकी जीवित रहने की दर को बढ़ाया जा सके इसलिए मिट्टी और अन्य कारकों की जांच के लिए एक टीम बनाई जा रही है.
ये भी पढ़ें: Kharif Special: अच्छे बीज के साथ ही बहुत जरूरी है स्वस्थ मिट्टी, जांच के लिए खेत से ऐसे लें नमूना
हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली का हरित आवरण यानि ग्रीनरी के क्षेत्रफल में बढ़त देखी गई है. यह आंकड़ा 21.88 प्रतिशत से बढ़कर 23.06 प्रतिशत हो गया है. राय ने कहा, हालांकि, सरकार हरियाली की मात्रा बढ़ाने के लिए शहरी खेती सहित अन्य तरीकों पर भी काम कर रही है. उन्होंने कहा, "वन विभाग और दिल्ली नगर निगम लोगों को उनके दरवाजे पर मुफ्त में पौधे और गमले उपलब्ध कराने के लिए एक पायलट परियोजना शुरू करने जा रहा है."
उन्होंने कहा, "हम वार्ड-वार सर्वेक्षण कर रहे हैं, लोगों से पूछ रहे हैं कि उन्हें किस प्रकार के पौधे चाहिए. मेरे विधानसभा क्षेत्र (पूर्वोत्तर दिल्ली में बाबरपुर) के एक वार्ड में सर्वेक्षण चल रहा है." आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में, प्रति वार्ड लगभग 10,000 आवास हैं. हालांकि यह योजना कब से लागू होगी इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है, मगर इस पहल की सराहना हर तरफ हो रही है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today