किसानों को उनकी मेहनत का फल तब बेहतर मिलता है, जब वह खेती के लिए फसलों के सहीं बीजों का चयन करता है, लेकिन ये भी सच है कि बेहतर बीज भी तब ही बेहतर उत्पादन दे पाएंगे, जब खेतों की मिट्टी स्वस्थ्य हो. असल में खेतों की मिट्टी का स्वस्थ्य होना बेहद ही जरूरी होता है, लेकिन किसान मिट्टी की सेहत की चिंता किए बिना ज्यादा उपज के चक्कर में अंधाधुंध केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग करके खेती करते हैं. इससे धीरे-धीरे खेत की उर्वरता कम होती जाती है. कुल मिलाकर मिट्टी बीमार हो जाती है. ऐसे में जरूरी है कि खेती से पहले मिट्टी का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए. किसान तक की खरीफनामा सीरिज के दूसरे भाग में आज मिट्टी के स्वास्थ्य से जुड़ी पूरी जानकारी...
मिट्टी की जांच की जरूरत को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर के मृदा विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डॉ एसएस प्रसाद बताते हैं कि मिट्टी की सेहत में सुधार के लिए उसकी जांच जरूरी है. जांच से ही पता चलता है कि मिट्टी में आखिर किन तत्वों की कमी या अधिकता है, जिससे खेती को कितना नफा या नुकसान जैसी बातें पता चल सकती हैं. उन्होंने बताया कि मिट्टी की जांच के लिए इसके नमूने प्रयोगशाला में भेजने होंते हैं. इस तरह की जांच के लिए सरकारी स्तर पर तो लैब हैं ही, लेकिन अब सहकारी क्षेत्र की संस्थाएं और प्राइवेट संस्थाए भी आगे आ रही हैं. जहां किसान अपने खेतों की मिट्टी के नमूने भेज कर खेतों में किस पोषक तत्व की कमी है या अधिकता इसके बारे में जानकारी ले सकते है .
किसान तक से बातचीत में डॉ एसएस प्रसाद ने जानकरी देते हुए बताया कि मिट्टी जांच में मिट्टी के पीएच, ईसी, कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, आयरन, जिंक,और मैंग्नीज का प्रतिशत, टेस्ट कर उसके अनुसार खाद-फर्टीलाइज़र और उसकी मात्रा की सिफारिश की जाती है. मिट्टी जांच की प्रकिया में खेतों से मिट्टी के सही नमूने लेने से लेकर मिट्टी के नमूने को स्वायल टेस्ट लैब तक सही तरीके से पहुंचाना होता है, इस काम को बड़ी सावधानी पूर्वक निपटाना चाहिए. क्योंकि अगर आपने मिट्टी का गलत नमूना लिया है तो,परिणाम भी गलत मिलेंगे. परीक्षण के लिये खेत में मृदा का नमूना सही होना चाहिए उसके लिए फसल कटाई के बाद मिट्टी का नमूना लेना चाहिए.
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डॉ एसएस प्रसाद के मुताबिक एक एकड़ खेत में कम से कम 10-15 अलग अलग जगह से मिट्टी का नमूना लेना चाहिए, खेत की कोई जगह छूटे न इसके लिए जिग-जेग पॉइंट बना कर मिट्टी का नमूना लेना चाहिए. अगर खेत में फसल खड़ी है या खेत में खाद का इस्तेमाल किया गया है तो सैम्पल नहीं लेना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिय कि छाया वाली जगह से सैम्पल नही लिया जाए. खेत में मिट्टी का सैम्पल लेने के लिए जमीन की ऊपरी तह की मिट्टी को थोड़ा खुरचकर हटा लेना चाहिए.
एक खेत से 10 से 15 जगह से मिट्टी का सैम्पल लेने के बाद किसान के पास अधिक मात्रा में मिटटी इकठ्ठी हो जाती हैं . इसलिए सभी जगह के मिट्टियों को एक साथ मिक्स कर दें, जिसके बाद उसे 4 हिस्से में बांटे और 2 हिस्से को हटा दें. फिर मिक्स करें फिर 4 हिस्सों में बांटे फिर 2 हिस्से को हटा दीजिए. ये प्रक्रिया तब तक अपनाएं जब तक की मिट्टी का नमूना आधा किलोग्राम का ना हो जाए, जो पूरे खेत का नमूना होगा. हर नमूने के साथ अपने नाम, पते और खेत के नंबर का लेबल लगाएं. किसान अपनी सहूलियत के मुताबिक अपने इलाके की नजदीकी मिट्टी जांच प्रयोगशाला में अपने खेतों की मिट्टी के सही नमूने की जांच करवा सकते हैं, थैली में बांधे गए नमूने को प्रयोगशाला में भेज कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सेहत की पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में डॉ एसएस प्रसाद ने बताया कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत किसान काे मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जाता है. इस कार्ड में किसानों के खेतों की मिट्टी की सारी जानकारी दर्ज की जाती है. खेत की मिट्टी के प्रकार के आधार पर सभी किसान मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार फसल लगा सकते हैं. मृदा स्वास्थ्य कार्ड में किसान के खेतों की मिट्टी की जांच करने के बाद सॉइल हेल्थ कार्ड पर मृदा से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है. इस कार्ड पर मिट्टी की सेहत, खेत की उर्वरक / उत्पादक क्षमता बढ़ाने, पोषक तत्वों से जुडी जानकारी, मिटटी में नमी / पानी की मात्रा के संबंध में खेतों की गुणवत्ता के संबंध में आवश्यक दिशा निर्देश दिए होते है.
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एक बार मिट्टी की जांच कराने के बाद करीब 3-4 साल के अंतराल पर अपने खेत की मिट्टी की जांच दोबारा करा लेनी चाहिए.इस तरह आप भी किसी अच्छी लैब में अपने खेतों की मिट्टी की जांच करवा कर उसके तत्वों का सही-सही अंदाज़ा ले लें. तभी उपयुक्त खाद फर्टीलइजर देकर अपनी उपज में वृद्धि कर पाएंगे. साथ ही खेतों को स्वस्थ रखने में भी मदद मिलेगी.
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