एक्सपर्ट की मानें तो बीते पांच साल से झींगा किसान बेधड़क होकर झींगा उत्पादन बढ़ा रहे हैं. हर साल बढ़ते-बढ़ते झींगा उत्पादन सालाना 10 लाख टन पर आ गया. उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट होता है. घरेलू बाजार न के बराबर है. लेकिन एक-दो लोगों को छोड़ दें तो इस ओर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. यहां तक की झींगा एक्सपोर्टर और प्रोसेसिंग यूनिट वालों ने भी. अब झींगा एक्सपोर्ट के सामने संकट खड़ा हो गया है. भारत का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका एंटी डंपिंग डयूटी बढ़ाने समेत झींगा एक्सपोर्ट पर तमाम शर्त लगाने की तैयारी कर रहा है.
दूसरा बड़ा खरीदार चीन अपना घरेलू उत्पादन बढ़ाने में लगा हुआ है. ऐसे में किसान ही नहीं झींगा से जुड़े तमाम 1.5 करोड़ लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. अगर जल्द ही इसका कोई रास्ता नहीं निकाला गया तो झींगा के तालाब सुखाने की नौबत भी आ सकती है.
डॉ. मनोज शर्मा ने बताया कि बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे कुछ लोगों की वजह से ही आज इंटरनेशनल मार्केट में झींगा की ये हालत हो रही है. डिमांड से ज्यादा झींगा बाजार में उतारने का ही असर है कि आज उसके रेट कम हो गए हैं. इसी के चलते अमेरिका ऐसी शर्तें लगाने की तैयारी में है जिसका कोई जमीनी आधार नहीं है. जैसे एंटी डंपिंग डयूटी बढ़ाने की बात कही जा रही है. जबकि अमेरिका में झींगा उत्पादन नहीं होता, सिवाए थोड़े से समुंद्री झींगा के. अमेरिका आज कह रहा है कि आने वाले 50 फीसद झींगा में दवाईयों की जांच की जाएगी. जबकि इससे पहले तक ये नियम नहीं था तो अब क्यों.
ये भी पढ़ें: Good News: चार राज्यों में 58 हजार एकड़ खराब जमीन से बदलेगी किसानों की किस्मत, जानें कैसे
झींगा एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा ने बताया कि विश्व स्तर पर 60 लाख टन झींगा का उत्पादन हो रहा है. इसमे से 30 लाख टन झींगा बाजार में आता है. विश्व में झींगा का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वालों में इक्वाडोर 15 लाख टन और भारत 10 लाख टन है. अगर खरीदारों की बात करें तो बाजार में अमेरिका 60 फीसद और चीन 30 फीसद झींगा की खरीदारी करता है. चीन अपना झींगा उत्पादन भी करता है. ऐसे में भारत और इक्वाडोर दोनों ही एक्सपोर्ट पर निर्भर हैं. खासतौर पर भारत में झींगा का नाम मात्र का घरेलू बाजार है.
झींगा एक्सपर्ट और झींगालाला फूड चेन के संचालक डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि हमारे देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी खूब बिकती है. लेकिन झींगा को हमारे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ग्राहक नहीं मिल पाते हैं. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है. जिसमे करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है.
ये भी पढ़ें: Shrimp: मंदी में चल रहे झींगा को अमेरिका ने दिया झटका, 50 हजार करोड़ के कारोबार पर संकट
ऐसे में अगर हमारे देश में झींगा की भी खपत हो जाए तो भारत झींगा के मामले में विश्व में नंबर वन होगा. जरूरत बस इतनी भर है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today